हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 1 ☆ धड़कता अहसास ☆ – श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है बुंदेलखंडी भाषा की चाशनी में लिपटा एक व्यंग्य “धड़कता अहसास”। अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 1 ☆
☆ धड़कता अहसास ☆
भगतराम बद्रीनाथ धाम की यात्रा पर गए थे कल ही सकुशल लौटे, जैसे ही घर में प्रवेश किया प्रश्नों की झड़ी लग गयी। भाई पुरोहित जी जो हैं, कालोनी के लोगों में इनकी अच्छी पैठ है। कम दक्षिणा में भी ग्रह व गृह दोनों शान्ति करवा देते हैं।
सबकी एक ही शिकायत थी आप फोन क्यों नहीं उठा रहे थे … ???
उन्होंने कहा वहाँ नेटवर्क नहीं आता है, तथा चार्ज करने की समस्या भी रही, समझा भी तो करिए आप लोग,भगवान से सीधी मुलाकात करके आये हैं अब तो चुटकियों में आप सभी की समस्या यूँ निपट जायेगी जैसे……. कहते – कहते पंडित जी चुप हो गए।
जैसे क्या गुरूजी ……अकेले लड्डू खाय आए, कुछू परसाद भी लाएँ हैं या कोई और बहाना …? सुना है संगम भी नहाय आए, सबके लिए कुछ माँगा भगवान बद्दरीनाथ से?
भगतराम जी ने मुस्कुराते हए कहा अवश्य माँगा वत्स …. *सर्वे भवन्तु सुखिनः,सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्ति- – –
संगम सब को पार उतार देता है, यहीं तैरना सीखो और भव सागर पार करो, कुछ को सीधे मोक्ष भी देते हैं संगम के पंडे कहते हुए भगत राम जी कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए चुप हो गए।
सुवीर ने कहा बुन्देलखण्ड में कहावत है
*कुंआ की माटी*
*कुअई मैं लगत*
संगम के साथ
ज्ञान की गंगा
यत्न की यमुना
और सरस्वती विलुप्त होकर समाहित है पंडित जी ने कहा।
परम सत्य आदरणीय जय हो नर्मदा की पवित्रता,महानदी की स्वतंत्रता और ब्रह्मपुत्र का विस्तार आपकी वाणी में समाहित है भावेश ने कहा।
*सौ डंडी एक बुंदेलखंड़ी* किसी ने सही ही कहा है गुरुदेव सुवीर ने कहा।
अरे भाई कहावते सुनाना छोड़ो अब, आराम करने दो गुरुदेव को बिहारी काका ने कहा।
*ऐसो है आग को छड़को लडैया बिजली खों डरात* बोलते हुए पंडित जी ने सबको प्रणाम कर आगे के कार्यक्रम की तैयारी में जुट गए।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1
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मो. 7024285788