हेमन्त बावनकर
(स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा और रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा। अब आप प्रत्येक मंगलवार को मेरी रचनाएँ पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है मेरी एक प्रिय कविता कविता “अंधविश्वास के ताले ”।
इस कविता के सन्दर्भ में मेरे जीवन के अनमोल क्षण जुड़े हुए हैं। इस कविता को 2014 की यूरोप यात्रा के दौरान लिखा है किन्तु इसका सन्दर्भ इससे भी पूर्व 2012 की यूरोप यात्रा से जुड़ा है। कविता के साथ लगा चित्र इटली के वेरोना शहर का है जिसमें सपत्नीक जूलियट की प्रतिमा के साथ हूँ। जूलियट की प्रतिमा के पीछे बाड़ में प्रेमियों के अनगिनत ताले लगे हैं। हमने भी एक ताला जोड़ा था यह सोचकर कि- पता नहीं कब दोबारा आना होगा और हमारा प्रेम भी वैसा ही बना रहे जैसा सब सोचते हैं। आज वह सब स्वप्न सा लगता है। मैं नहीं जानता वे अनगिनत जोड़े कहाँ हैं जिन्होंने इन प्रेमी स्मारकों पर ताले लगाए थे ।
आज इटली के सन्दर्भ में अनायास ही यह कविता स्मृति से निकल कर बाहर आ गई । मेरी पुस्तक ” शब्द और कविता “ से यह कविता उद्धृत कर रहा हूँ। ईश्वर इटली और सारे विश्व में महामारी पीड़ितों के परिवारों को सम्बल प्रदान करे तथा दिवंगतों को विनम्र श्रद्धांजलि । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 14 ☆
☆ अंधविश्वास के ताले ☆
वेरोना
जूलियट की बालकनी
बालकनी के नीचे
जूलियट की प्रतिमा
और
प्रतिमा के पीछे
जंगले में टंगे
अनगिनत ताले।
पेरिस
सीयेन नदी के ऊपर
लवर्स ब्रिज पर
पुल की बाड़ के तारों पर टंगे
अनगिनत ताले।
बेम्बर्ग का पुराना शहर
शहर के बीचों बीच
रेनिट्ज़ नदी का पुल
और
पुल की बाड़ के तारों पर टंगे
अनगिनत ताले।
पुल के नीचे
शांत रेनिट्ज़ नदी की सतह पर
अठखेलियाँ करती
बदक की जोड़ियाँ
अनजान हैं
आधुनिक पश्चिमी संस्कृति के
अंधविश्वास से।
उन्हें भ्रम है
कि बन्द टंगे तालों की तरह
उनकी जोड़ियाँ
हो जाएंगी
‘अटूट’ और ‘अमर’।
मैंने सुना है कि –
अक्सर
ताले टंगे रहते हैं।
जोड़े टूट जाते हैं।
जूलियट वही रहती है
और
रोमियो बदल जाते हैं।
थोड़े बहुत अंधविश्वासी तो
हम भी हैं ।
हम भी जाते हैं
गाहे बगाहे
मंदिर – मस्जिद में
चर्च – गुरुद्वारे में
पीर – पैगंबर कि मजार पर।
जाने अनजाने
बाँध आते हैं धागे ।
अपनी औलादों की
सलामती के लिए
माँग आते हैं दुआ।
इस आस के साथ
कि – यदि
औलाद नेक
और
सलामत रहे
तो जोड़े ही क्या
भला
घर भी कैसे टूट सकते हैं ?
© हेमन्त बावनकर, पुणे
बेम्बर्ग 28 मई 2014
बहुत सुन्दर कविता है
Thanks