हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 3 ☆ रिश्ते और दोस्ती ☆ हेमन्त बावनकर
हेमन्त बावनकर
(माँ सरस्वती तथा आदरणीय गुरुजनों के आशीर्वाद से “साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति” प्रारम्भ करने का साहस/प्रयास कर रहा हूँ। अब स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा और रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा। इस आशा के साथ ……
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति #3 ☆
☆ रिश्ते और दोस्ती ☆
सारे रिश्तों के मुफ्त मुखौटे मिलते हैं जिंदगी के बाजार में
बस अच्छी दोस्ती के रिश्ते का कोई मुखौटा ही नहीं होता
कई रिश्ते निभाने में लोगों की तो आवाज ही बदल जाती है
बस अच्छी दोस्ती में कोई आवाज और लहजा ही नहीं होता
रिश्ते निभाने के लिए ताउम्र लिबास बदलते रहते हैं लोग
बस अच्छी दोस्ती निभाने में लिबास बदलना ही नहीं होता
बहुत फूँक फूँक कर कदम रखना पड़ता है रिश्ते निभाने में
बस अच्छी दोस्ती में कोई कदम कहीं रखना ही नहीं होता
जिंदगी के बाज़ार में हर रिश्ते की अपनी ही अहमियत है
बस अच्छी दोस्ती को किसी रिश्ते में रखना ही नहीं होता
© हेमन्त बावनकर, पुणे