श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एकअतिसुन्दर समसामयिक रचना “बदलता दौर”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को नमन ।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 15 ☆
☆ बदलता दौर ☆
ऑन द वे, ऑन द स्पॉट तो सुना था अब ऑन लाइन भी बहुचर्चित हो रहा है सारे कार्य इसी तरीके से हो रहे । ई शिक्षा का बढ़ता महत्व; आखिरकार हम लोग इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं । मंगल पर मंगल करने की योजना तो धरी की धरी रह गयी ; साथ ही साथ अंतरिक्ष में भी उसी तरह भ्रमण करना है जैसे सात समंदर पार करते रहे हैं ; इस पर भी कुछ समय के लिए रोक लग गयी ।
चूँकि सब चीज हम लोग ब्रांडेड व इम्पोटेड चाहते हैं इसलिए अब की बार बीमारी भी परदेश से ही आ गयी ; सुंदर सा नाम धर के । तरक्क़ी का इससे बड़ा सबूत और क्या दिया जाए ?
हम लोग हमेशा कहते रहते अच्छा सोचो अच्छा बनो पर ये क्या…. पॉजिटिव लोगों का साथ छोड़ निगेटिव लोगों के बीच रहना ही आज की आवश्यकता है । खैर जब बीमारी बाहरी होगी तो उल्टी विचारधारा तो फैलायेगी ही । ऐसा उल्टा -सीधा परिवर्तन करने का माद्दा तो कोरोना जी के पास ही है । जब से इनका आगमन हुआ तभी से *वर्क फ्रॉम होम विथ वर्क फॉर होम* की संकल्पना उपजी । बीबी बच्चों के साथ पति घरेलू प्राणी बन गया । घर में रहने का सुख ,साथ ही साथ एक प्रश्न का उत्तर जो हमेशा ही अपनी धर्म पत्नी चाहता था कि आखिर तुम दिनभर करती क्या हो ; वो भी उसे मिल गया । अब तो कान पकड़ लिए कि तौबा – तौबा कोई प्रश्न नहीं करेंगे । वरना ऐसे उत्तर मिलेंगे इसकी कल्पना भी नहीं की थी ।
खैर जब पुराना दौर ज्यादा नहीं चल सका तो ये भी बीत जायेगा आखिर बदलाव ही तो जीवन की पहचान है इसके साथ जो जीना सीख गया समझो सफलता की सीढ़ी चढ़ गया ।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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