श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  आपकी अतिसुन्दर सजल  बैर नहीं पाला जीवन भर….। 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 36 ☆

☆ सजल – बैर नहीं पाला जीवन भर…. ☆

हो  जाती वाणी  कठोर जब प्रेम न दिल में पलता है।

बैर नहीं पाला जीवन भर अपनी यही सफलता है।

 

नीम-करेला-सी कड़वाहट  बोली का संकेत यही

है मस्तिष्क रुग्ण चिंतन में पली हुई दुर्बलता है।

 

योगेश्वर भगवान सदा ही मेरी रक्षा  करते हैं।

इसका कारण मेरे मन की एक मात्र निश्छलता है।

 

आस लगाए रहतीं हूँ प्रभु चरणों में चातक जैसी

नहीं जानती पूजन-विधि पर भावों में  निर्मलता है।

 

करता है व्यवहार शत्रु-सा क्रूर पड़ोसी राष्ट्र सदा

और सहन करता है भारत यह कैसी दुर्बलता है।

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

image_print
4 2 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Shyam Khaparde

अच्छी रचना