श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक के व्यंग्य”  में हम श्री विवेक जी के चुनिन्दा व्यंग्य आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्री विवेक जी के चुनिन्दा व्यंग्यों को “विवेक के व्यंग्य “ शीर्षक के अंतर्गत पढ़ सकेंगे।  आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का व्यंग्य “रेल्वे फाटक के उस पार ”)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक के व्यंग्य – # 10 ☆ 

 

 ☆ रेल्वे फाटक के उस पार ☆

 

मेरा घर और दफ्तर ज्यादा दूर नहीं है, पर दफ्तर रेल्वे फाटक के उस पार है. मैं देश को एकता के सूत्र में जोड़ने वाली, लौह पथ गामिनी के गमनागमन का सुदीर्घ समय से साक्षी हूँ. मेरा मानना है कि पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक देश को जोड़े रखने में, समानता व एकता के सूत्र स्थापित करने मे, भारतीय रेल, बिजली के नेशनल ग्रिड और टीवी सीरीयल्स के माध्यम से एकता कपूर ने बराबरी की भागीदारी की है.

राष्ट्रीय एकता के इस दार्शनिक मूल्यांकन में सड़क की भूमिका भी महत्वपूर्ण है, पर चूँकि रेल्वे फाटक सड़क को दो भागों में बाँट देता है, जैसे भारत पाकिस्तान की बाघा बार्डर हो, अतः चाहकर भी सड़क को देश की एकता के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित नहीं किया जा सकता. इधर जब से हमारी रेल ने बिहार का नेतृत्व गृहण किया है, वह दिन दूनी रात चौगिनी रफ्तार से बढ़ रही है. ढ़ेरों माल वाहक, व अनेकानेक यात्री गाड़ियां लगातार अपने गंतव्य की ओर अग्रसर हैं, और हजारों रेल्वे फाटक रेल के आगमन की सूचना के साथ बंद होकर, उसके सुरक्षित फाटक पार हो जाने तक बंद बने रहने के लिये विवश हैं.

मेरे घर और दफ्तर के बीच की सड़क पर लगा रेलवे फाटक भी इन्हीँ में से एक है, जो चौबीस घंटों में पचासों बार खुलता बंद होता है. प्रायः आते जाते मुझे भी इस फाटक पर विराम लेना पड़ता है. आपको भी जिंदगी में किसी न किसी ऐसे अवरोध पर कभी न कभी रुकना ही पड़ा होगा जिसके खुलने की चाबी किसी दूसरे के हाथों में होती है, और वह भी उसे तब ही खोल सकता है जब आसन्न ट्रेन निर्विघ्न निकल जाये.

खैर ! ज्यादा दार्शनिक होने की आवश्यकता नहीं है, सबके अपने अपने लक्ष्य हैं और सब अपनी अपनी गति से उसे पाने बढ़े जा रहे हैं अतः खुद अपनी और दूसरों की सुरक्षा के लिये फाटक के उस पार तभी जाना चाहिये, जब फाटक खुला हो. पर उनका क्या किया जावे जो शार्ट कट अपनाने के आदि हैं, और बंद फाटक के नीचे से बुचक कर,वह भी अपने स्कूटर या साइकिल सहित,निकल जाने को गलत नहीं मानते.नियमित रूप से फाटक के उपयोगकर्ता जानते हैं कि अभी किस ट्रेन के लिये फाटक बंद है,और अब फिर कितनी देर में बंद होगा. अक्सर रेल निकलने के इंतजार में खड़े बतियाते लोग कौन सी ट्रेन आज कितनी लेट या राइट टाइम है, पर चर्चा करते हैं. कोई भिखारिन इन रुके लोगों की दया पर जी लेती है, तो कोई फुटकर सामान बेचने वाला विक्रेता यहीं अपने जीवन निर्वाह के लायक कमा लेता है.

जैसे ही ट्रेन गुजरती है, फाटक के चौकीदार के एक ओर के गेट का लाक खोलने की प्रक्रिया के चलते, दोनो ओर से लोग अपने अपने वाहन स्टार्ट कर, रेडी, गेट, सेट, गो वाले अंदाज में तैयार हो जाते हैं. जैसे ही गेट उठना शुरू होता है, धैर्य का पारावार समाप्त हो जाता है. दोनो ओर से लोग इस तेजी से घुस आते हैं मानो युद्ध की दुदंभी बजते ही दो सेनायें रण क्षेत्र में बढ़ आयीं हों. इससे प्रायः दोनो फाटकों के बीच ट्रैफिक जाम हो जाता है ! गाड़ियों से निकला बेतहाशा धुआँ भर जाता है, जैसे कोई बम फूट गया हो ! दोपहिया वाहनों पर बैठी पिछली सीट की सवारियाँ पैदल क्रासिंग पार कर दूसरे छोर पर खड़ी, अपने साथी के आने का इंतजार करती हैं. धीरे धीरे जब तक ट्रैफिक सामान्य होता है, अगली रेल के लिये सिग्नल हो जाता है और फाटक फिर बंद होने को होता है. फाटक के बंद होने से ठीक पहले जो क्रासिंग पार कर लेता है,वह विजयी भाव से मुस्कराकर आत्म मुग्ध हो जाता है.

फाटक के उठने गिरने का क्रम जारी है.

स्थानीय नेता जी हर चुनाव से पहले फाटक की जगह ओवर ब्रिज का सपना दिखा कर वोट पा जाते हैं. लोकल अखबारों को गाहे बगाहे फाटक पर कोई एक्सीडेंट हो जाये तो सुर्खिया मिल जाती हैं. देर से कार्यालय या घर आने वालों के लिये फाटक एक स्थाई बहाना है. फाटक की चाबियाँ सँभाले चौकीदार अपनी ड्रेस में, लाल, हरी झंडिया लिये हुये पूरा नियँत्रक है, वह रोक सकता है मंत्री जी को भी कुछ समय फाटक के उस पार जाने से.

 

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव 

ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो. ७०००३७५७९८

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments