डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी एक समसामयिक लघुकथा “आ अब लौट चलें”। यह लघुकथा हमें जीवन के उस कटु सत्य से रूबरू कराती है जिसे हम जीवन की आपाधापी में मशगूल होकर भूल जाते हैं। फिर महामारी के प्रकोप से बच कर जो दुनिया दिखाई देती है वह इतनी बेहद खूबसूरत क्यों दिखाई देती है ? वैसे तो इसका उत्तर भी हमारे ही पास है। बस पहल भी हमें ही करनी होगी। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को इस बेहद खूबसूरत रचना रचने के लिए सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद – # 23 ☆
☆ लघुकथा – आ अब लौट चलें ☆
वही धरती, वही आसमान, वही सूरज, वही चाँद, हवा वही, इधर- उडते पक्षी भी वही, फिर क्यों लग रहा है कि कुछ तो अलग है ? आसमान कुछ ज़्यादा ही साफ दिख रहा है, सूरज देखो कैसे धीरे- धीरे आसमान में उग रहा है, नन्हें अंकुर सा, पक्षियों की आवाज कितनी मीठी है ? अरे ! ये कहाँ थे अब तक ? अहा ! कहाँ से आ गईं इतनी रंग – बिरंगी प्यारी चिडियाँ ? वह मन ही मन हँस पडा.
उत्तर भी खुद से ही मिला – सब यहीं था, मैं ही शायद आज देख रहा हूँ ये सब ! प्रकृति हमसे दूर होती है भला कभी ? पेड – पौधों पर रंग- बिरंगे सुंदर फूल रोज खिलते हैं, हम ही इनसे दूर रहते हैं ? जीवन की भाग – दौड में हम जीवन का आनंद उठाते कहाँ हैं ? बस भागम -भाग में लगे रहते हैं,कभी पैसे कमाने और कभी किसी पद को पाने की दौड, जिसका कोई अंत नहीं ? रुककर क्यों नहीं देखते धरती पर बिखरी अनोखी सुंदरता को ? वह सोच रहा था —–
-अरे हाँ, खुद को ही तो समझाना है, हंसते हुए एक चपत खुद को लगाई और फिर मानों मन के सारे धागे सुलझ गये. कोरोना के कारण 21 दिन घर में रहना अब उसे समस्या नहीं समाधान लग रहा था. बहुत कुछ पा लिया जीवन में, अब मौका मिला है धरती की सुंदरता देखने का, उसे जीने का —–
अगली अलसुबह वह चाय की चुस्कियों के साथ छत पर खडा पक्षियों से घिरा उन्हें दाना खिला रहा था. सूरज लुकाछिपी कर आकाश में लालिमा बिखेरने लगा था. उसके चेहरे पर ऐसी मुस्कान पहले कभी ना आई थी.
© डॉ. ऋचा शर्मा
अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.
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