(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक भावनात्मक पत्र “परदेश में कोरोना पर दौहित्र को एक नाना की खुली चिट्ठी”। मानवता के अदृश्य शत्रु से युद्ध में हम सभी परिवार के सदस्य / मित्र गण तकनीकी रूप (ऑडियो / वीडियो ) से पहले से ही नजदीक थे किन्तु भौतिक रूप से ये दूरियां बढ़ गई हैं । हम अपने घर /देश में कैद हो गए हैं। आशा है कोई न कोई वैज्ञानिक हल शीघ्र ही निकलेगा और हम फिर से पहले जैसा जीवन जी सकेंगे। यह पत्र उन कई लोगों के लिए प्रारूप होगा जो अपने परिवार के सदस्यों को ईमेल पर अपनी भावनाएं प्रकट करना चाह रहे होंगे। श्री विवेक रंजन जी को इस बेहतरीन रचना / पत्र के लिए बधाई। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 40 ☆
☆ परदेश में कोरोना पर दौहित्र को एक नाना की खुली चिट्ठी ☆
हमारे आल्हाद के केंद्र प्यारे रुवीर बेटा
नानी नाना का बहुत सारा दुलार,
हमारा यह पत्र तुम शायद पांच, छः साल बाद पढ़कर कुछ समझ सकोगे. तुम्हारे आने से हम सबके जीवन में खुशियों की नई फुहार आई है. हम सबने तुम्हारे आने की खूब खुशियां मनाई थी, और पल पल तुम्हें बढ़ते हुये महसूस किया था. समय बीतता गया,तुम्हारे पहली करवट लेने,खुद बैठ पाने, घुटनो के बल चलने, तुम्हारा पहला दांत निकलने, और पहला कदम चल लेने के हर पल की गवाह तुम्हारी मम्मी बनी रहीं. फोटो, वीडीयो काल्स के जरिये हम सब हर दिन तुम्हें लेकर खुश होते रहे हैं. इस बीच तुम्हारे पापा मम्मी ने हर पल तुम्हें बढ़ते देखा, दादी, नानी बारी बारी से तुम्हारे पास आती जाती रहीं.
कल तुम एक वर्ष के हो जाओगे. तुम्हारे पहले जन्म दिन को धूमधाम से सब साथ साथ पहुंचकर मनाने के लिये हम सबकी बहुत सारी प्लानिंग थी. पेरिस से लेकर स्विटजरलैंड, लंदन से लेकर हांगकांग कई प्लान डिस्कस हुये थे. तुम्हारे दादा जी कीनिया के जंगलों में या जयपुर के पैलेस में पार्टी देना चाहते थे तो कोई कहीं और. अंततोगत्वा पेरिस फाईनल हुआ और तुम्हारे पापा ने तो पेरिस की फलाईट टिकिट्स भी बुक कर दी थी. यह वर्ष २०२० के शुरूवाती दिनों की बात थी. किन्तु बेटा समय के गर्भ में क्या होता है यह किसी को भी नही पता होता.
पिछले दो महीनों में चीन से शुरू हुआ करोना वायरस का संक्रमण इस तेजी से पूरी दुनियां में फैला कि मानव जाति के इतिहास में पहली बार सारी दुनियां बिल्कुल थम गई है. हर कहीं लाकडाउन है. सब घरों में कैद होने को विवश हैं, जो नासमझी से घरों में स्वयं बन्द नहीं हो रहे हैं, सरकारें उन्हें घरों में रहने को मजबूर कर रही हैं.क्योकि यह संक्रमण आदमी से आदमी के संपर्क से फैलता है. अब तक इस सब के मूल कारण करोना कोविड २०१९ वायरस का कोई उपचार नही खोजा जा सका है. दुनियां भर में संपन्न से संपन्न देशों में भी इस महामारी के लिये अब तक चिकित्सा सुविधायें अपर्याप्त हैं. अब तेजी से इस सब पर बहुत काम हो रहा है. तुम्हारे अमिताभ मामा भी न्यूयार्क में एम आई टी के एक प्रोजेक्ट में सस्ते इमरजेंसी वेंटीलेटर्स बनाने और ऐसे ब्रेसलेट बनाने पर काम कर रहे हैं जो दो लोगों के बीच एक मीटर की दूरी से कम फासले पर आते ही वाइब्रेट करेंगे, क्योकि इस फासले से कम दूरी होने पर इस वायरस के संक्रमण का खतरा होता है. मतलब यह ऐसा अजब समय आ गया है कि इंटरनेट के जरिये दूर का आदमी पास हो गया है पर पास के आदमी से दूरी बनाना जरूरी हो गया है. तुम्हारे पापा दुबई में तुम्हारे पास घर से ही इंटरनेट के जरिये आफिस का काम कर रहे हैं, मौसी हांगकांग में घर से ही उसके आफिस का काम कर रही है. मैं यहा जबलपुर में बंगले में बंद हूं. दुनिया भर की सड़कें सूनी हैं, ट्रेन और हवाई जहाज थम गये हैं. सोचता हूं सब कुछ घर से तो नही हो सकता, खेतो में किसानो के काम किये बिना फल, सब्जी, अनाज कुछ नही हो सकता, मजदूरों और कारीगरो की मेहनत के बिना ये मशीनें सब कुछ नहीं बना सकती. पर समय से समझौता ही जिंदगी है.
आज बाजार, कारखाने धर्मस्थल सब बंद हैं. पर कुछ धर्मांध कट्टर लोग जो इस एकाकी रहने के आदेश को मानने तैयार नही है, और यह कुतर्क देते हैं कि उन्हें उनका भगवान या खुदा बचा लेगा, उन्हें मैं यह कहानी बताना चाहता हूं. हुआ यूं कि एक बार बाढ़ आने पर किसी गांव में सब लोग अपने घरबार छोड़ निकल पड़े पर एक इंसान जो स्वयं को भगवान का बहुत बड़ा बक्त मानता था, अपने घर से हटने को तैयार ही नही था, उसे मनाने पास पडोसियो से लेकर सरपंच तक सब पहुंचे पर वह यही रट लाये रहा कि उसे तो भगवान बचा लेंगें क्योकि वह उनका भक्त है, प्रशासन ने हेलीकाप्टर भेजा पर हठी इंसान नही माना और आखिरकार बाढ़ में बहकर मर गया , जब वह मरकर भगवान के पास पहुंचा तो उसने भगवान से कहा कि मैं तो आपका भक्त था पर आपने मुझे क्यो नही बचाया ? भगवान ने उसे उत्तर दिया कि मैं तो तुम्हें बचाने कभी पडोसी, कभी सरपंच, कभी हेलीकाप्टर चालक बनकर तुम तक पहुंचता रहा पर तुम ही नही माने. आशय मात्र इतना है कि वक्त की नजाकत को पहचानना जरुरी है, आज डाक्टर्स के वेश में भगवान हमारी मदद को हमारे साथ खड़े हैं. और यह समय भी बीत ही जायेगा. दुनियां के इतिहास में पहले भी कठिनाईयां आई हैं. दो विश्वयुद्ध हुये, प्लेग, हैजा, जैसी महामारियां फैलीं, जगह जगह बरसात न होने से अकाल पड़े, पर ये सारी मुसीबतें कुछ देशों या कुछ क्षेत्रो तक सीमित रहीं. महात्मा गांधी ग्राम स्वराज की इकानामी की परिकल्पना करते थे जिसका अर्थ यह था कि देश का हर गांव अपने आप में आत्मनिर्भर इकाई होता. पर विकास ने इतने पांव फैलाये हैं कि अब दुनियां इंटरनेटी वैश्विक मंच बन गया है. इसी साल २०२० के सूर्योदय की खुशियां हमने हांग कांग में मौसी के संग शुरू कर भारत, दुबई, लंदन, न्यूयार्क में तुम्हारे मामा के साथ उगते सूरज को देखकर, मतलब लगभग २४ घंटो तक महसूस की हैं.
हम सब हमेशा तुम्हारे लिये क्षितिज की सीमाओ के सतरंगे इंद्रधनुष की रंगीनियों की परिकल्पना करते हैं. तुम्हें खूब पढ़ लिख कर, गीत संगीत, खेलकूद जिसमें भी तुम्हारी रुचि हो उसमें बढ़चढ़ कर मेहनत करना और मन से बहुत अच्छा इंसान बनना है. आज हर देश अपने वीसा अपने पासपोर्ट अपनी सीमा के बंधनो में सिमटे हुये हैं, पर सोचता हूं शायद तुम उस दिन के साक्षी जरूर बनो जब कोई भी कहीं भी स्वतंत्र आ जा सके. हर वैज्ञानिक प्रगति पर सारी मानव जाति का बराबरी का अधिकार हो. बस यही कामना है कि इंसानी दिमाग में ऐसा फितूर कभी न उपजे कि न दिखने वाले परमाणु बम अथवा किसी वायरस की विभीषिका से हम यूं दुबकने को मजबूर होवें.
दिल से सारा आशीर्वाद
तुम्हारी नानी और नाना
विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .
ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८