(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है श्री हरीश कुमार सिंग जी के व्यंग्य -संग्रह “आप कैमरे की नजर में हैं ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 35 ☆
☆ पुस्तक चर्चा – व्यंग्य-संग्रह – आप कैमरे की नजर में हैं ☆
पुस्तक – आप कैमरे की नजर में हैं ( व्यंग्य-संग्रह)
व्यंग्यकार – श्री हरीश कुमार सिंग
पृष्ठ संख्या – 128
☆ व्यंग्य– संग्रह – आप कैमरे की नजर में हैं – श्री हरीश कुमार सिंग – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆
इस सप्ताह व्यंग्य के सशक्त सुस्थापित हरीश सिंग की नई व्यंग्य कृति नजर अपनी अपनी पढ़ने का अवसर मिला . अखबारो, पत्र पत्रिकाओ सोशल मीडिया में इनमें से अधिकांश पर मेरी नजर पड़ चुकी हैं . जो व्यंग्यकार केवल १२८ पृष्ठो में ४८ प्रभावी व्यंग्य लिखने की क्षमता रखता है उसे पढ़ना कौतुहल से भरपूर होता है . बड़े कम शब्दो में टू द पाईंट व्यंग्य लिखना हरीश जी की खासियत समझ आती है . वे व्यंग्य समूहो, टेपा सम्मेलन जैसे आयोजनो से जुड़े हुये लोकप्रिय व्यक्तित्व हैं .संपादको व पाठको को उनके समसामयिक व्यंग्य पसंद आते हैं .
संग्रह के व्यंग्य विषय देखिये मार्निग वाक, ओपनिंग आफ न्यू हास्पिटल, बच्चों हम शर्मिंदा हैं, अफसर कल्चर, संकट में विचारधारा, व्हाट्सएप, मी टू, आप कैमरे की नजर में हैं, रिश्वत ड़िश्तेदार और राजनीति, हिंदी की विनती, लिव इन रिलेशन, शीर्षक व्यंग्य नजर अपनी अपनी, काव्य गोष्ठी, बिन बाबा चैन कहां, हनी ट्रैप, ये सारे ऐसे विषय हैं जो हमारे परिवेश या बाक्स न्यूज के रूप में हम सबकी नजरों से गुजरे हैं . इन विषयो को अपने मन के डार्करूम में डेवेलप कर एक चित्रमय व्यंग्य झांकी दिखाने का काम घटना के तीसरे चौथे दिन ही हरीश जी की कलम करती रही . फिर संकलित होकर पुस्तक बन गई .
सीमित शब्द सीमा में सहज घटनाओ से उपजी मानसिक वेदना को वे प्रवाहमान संप्रेषण देते हैं, पाठक जुड़ता जाता है, सरल कटाक्षो का मजा लेता है, जो समझ सकता है वह व्यंग्य में छिपा अंतर्निहित संदेश पकड़ लेता है, व्यंग्य पूरा हो जाता है .
चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८
अच्छा प्रयास