डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं। आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी स्त्री पर विमर्श करती लघुकथा माँ दूसरी तो बाप तीसरा । यह अक्सर देखा गया है कि प्रथम पत्नी के बाद बच्चों के देखभाल के नाम से दूसरी पत्नी ब्याह लाता है। इस कटु सत्य को बेहद संजीदगी से डॉ ऋचा जी ने शब्दों में उतार दिया है। डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को जीवन के कटु सत्य को दर्शाती लघुकथा रचने के लिए सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 39 ☆
☆ लघुकथा – माँ दूसरी तो बाप तीसरा ☆
कभी कुछ बातें खौलती हैं भीतर ही भीतर, इतना तर्क – वितर्क दिल दिमाग में कि आग विचारों का तूफान- सा ला देती है। ऐसे ही एक पल में पति के यह कहने पर कि करती क्या हो तुम दिन भर घर में ? वह कह गई – हाँ ठीक कह रहे हो तुम, औरतें कुछ नहीं करतीं घर में, बिना उनके किए ही होते हैं पति और बच्चों के सब काम घर में। लेकिन जब असमय मर जाती हैं तब तुरंत ही लाई जाती है एक नई नवेली दुल्हन फिर से, घर में कुछ ना करने को ?
एक बार नहीं बहुत बार यह वाक्य उसके कानों में गर्म तेल के छींटों – सा पड़ा था, जब दिन भर घर के कामों में खटती माँ या दादी को घर के पुरुषों से कहते सुना था – करती क्या हो घर में सारा दिन ? वे नहीं दे पातीं थीं हिसाब घर के उन छोटे – मोटे हजार कामों का जिनमें दिन कब निकल जाता है, पता ही नहीं चलता। नहीं कह पाती थीं वे बेचारी कि हम ही घर की पूरी व्यवस्था संभाले हैं खाने से लेकर कपडों तक और बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक की। जिसका कोई मोल नहीं, कहीं गिनती नहीं। हाँ,शरीर लेखा जोखा रखता उनके दिन भर के कामों का, पिंडलियों में दर्द बना ही रहता और कमर दोहरी हो जाती थी काम करते करते उनकी।
सोचते – सोचते कड़वाहट- सी घुल गई मन में, आँखें पनीली हो आई। उभरी कई तस्वीरें, गड्ड – मड्ड होते थके, कुम्हलाए चेहरे माँ, दादी और – सच ही तो है, एक विधवा स्त्री अपने बच्चों के पालन पोषण के लिए माता- पिता बन संघर्ष करती पूरा जीवन बिता देती है। लेकिन पुरुष घर और बच्चों की देखभाल के नाम पर कभी – कभी साल भर के अंदर ही दूसरी पत्नी ले आता है। पहली पत्नी इतने वर्ष घर को संभालने में खटती रही, वह सब दूसरी शादी के मंडप तले होम हो जाता है। बच्चों की देखभाल के लिए की गई दूसरी शादी के बारे में दादी से सुना था कि माँ दूसरी तो बाप तीसरा हो जाता है ?
© डॉ. ऋचा शर्मा
अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.
122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005
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आपका अति सराहनीय कार्य है जी । गद्य विधाओं पर लेखन भाषा के अधिकार बिन सम्भव नहीं। आपके लिए मंगल कामनाएँ ।??
सुशील जी ,धन्यवाद आप जैसे सृजनशील पाठकों की प्रतिक्रिया बहुत महत्वपूर्ण होती है .
अच्छी रचना
श्याम जी नमस्कार आप हमेशा मेरी लघुकथा पढते और प्रतिक्रिया देते हैं ,हार्दिक धन्यवाद
आपकी सभी रचनाएँ बहुत ही दिलचस्प और दिल की तह तक पहुँचने वाली होती हैं।