(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है श्री धर्मपाल जैन जी के व्यंग्य -संग्रह “दिमाग वालों सावधान ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा । )
दिमाग वालों सावधान
व्यंग्यकार धर्मपाल जैन
किताबगंज प्रकाशन गंगापुर सिटी
ISBN 9789389352634
किसी भी किताब में सर्वप्रथम जो चीज पाठक को आकर्षित करती है, वह होता है उसका नाम. व्यंग्य की किताबों के लिये अनेक व्यंग्य लेखो में से एक नाम के आधार पर किताब का नाम रखना सहज परम्परा है. इसी लीक पर चलते हुये व्यंग्यकार धर्मपाल जैन जी ने अपनी नई पुस्तक का नाम दिमाग वालों सावधान रखा है. नाम ध्यान आकर्षित करता है. प्रकाशक ने बिना त्रुटि सम्यक आवरण डिजाइन करवाकर, अच्छे गेटअप में पुस्तक प्रस्तुत की है. पेपरबैक का मूल्य मात्र २५० रु है. कहने का मतलब है कि बुक स्टाल पर मुँह दिखाई में तो पाठक किताब से रिश्ता बना ही सकता है.
अब जब कृति घर आ जाये और तकिये के नीचे तक पहुंच जाये तो उसके कलेवर पर कुछ चर्चा हो जाये.
बैक कवर पर बिंदु रूप लेखक परिचय से समझ आता है कि यह लेखक की दूसरी व्यंग्य की किताब है. किसी की कोई भूमिका नही, कोई आत्मकथन नही. सीधी बात. कुल जमा ५१ सनसनाती व्यंग्य रचनायें समेटे हुये है पुस्तक.
दिमाग चाटने वालो पर है शीर्षक व्यंग्य. छोटे छोटे वाक्य, समझ आने वाली भाषा, प्रभावी शैली का अच्छा व्यंग्य है. कई व्यंग्य ऐसे हैं जिन शीर्षको से मै कई व्यंग्यकारो के लेख पढ़ चुका हूं, बल्कि कई शीर्षको पर तो स्वयं मेरे भी लेख हैं, जैसे झंडा ऊंचा रहे हमारा, अस मानुस की जात, कबिरा खड़ा बाजार में, हिन्दी डे, इन टापिक पर मैं भी व्यंग्य लिख चुका हूं. मतलब साफ है कि व्यंग्यकारों की पीड़ा समान होती है.
“एल्लो सरपंच जी क्या सांड से कम होवे हैं ” ऐसा लेखन केनेडा में बसे हुये व्यंग्यकार लिखे तो समझ लें कि वह जमीन से जुड़ा हुआ आदमी है. यूं भी विदेश में रहकर वहाँकी चकाचौंध से भ्रमित हुये बिना देश से, हिन्दी से, व्यंग्य से सरोकार बनाये रखने के चलते धर्मपाल जी अपने रचना धर्म का पालन करते नजर आते हैं.
चंद्रयान ३ से भारत प्रधानमंत्री से संवाद शैली में मारक व्यंग्य है. किस तरह चुनाव जीतने में हर तरह की उपलब्धियों का राजनीति उपयोग करती है, यह उजागर करता व्यंग्य है. कमियो की बात करें तो इतना ही कहूंगा कि अनेक स्थानो पर अमिधा में बातें कहने की जगह प्रतीको में बात की जाने की संभावना है, अगले संग्रहों में जैन साहब से व्यंग्य को ओर उम्मीदें हैं.
सबकी हो सबरीमाला, साहित्य की सही रेसिपी, अब मेरे घर में देवता रहते हैं, बापू का आधुनिक बंदर आदि रचनायें मुझे बड़ी पसंद आई. कुल जमा किताब पढ़े जाने के बाद तकिये के नीचे से निकलकर, बुकशैल्फ में शोभायमान करने योग्य है.
चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८