(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है श्री बुलाकी शर्मा जी के व्यंग्य संग्रह “५ वां कबीर ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 40 ☆
पुस्तक – ५ वां कबीर
व्यंग्यकार – श्री बुलाकी शर्मा
पृष्ठ – ११२
मूल्य – १०० रु
☆ पुस्तक चर्चा – व्यंग्य संग्रह – ५ वां कबीर – व्यंग्यकार – श्री बुलाकी शर्मा ☆
व्यंग्य यात्रा में हर सप्ताह हमें किसी नई व्यंग्य पुस्तक, किसी नये व्यंग्य लेखक को पढ़ने का सुअवसर मिलता है.. जाने माने व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा के व्यंग्य उनके मुख से सुन चुका हूं. पढ़ने तो वे प्रायः मिल ही जाते हैं. प्रकाशन के वर्तमान परिदृश्य के सर्वथा अनुरूप ११२ पृष्ठीय ” ५ वां कबीर ” में बुलाकी जी के कोई ४० व्यंग्य संग्रहित हैं. स्पष्ट है व्यंग्य ८०० शब्दो के सीमित विस्तार में हैं. इस सीमित विस्तार में अपना मंतव्य पायक तक पहुंचाने की कला ही लेखन की सफलता होती है. वे इस कला में पारंगत हैं.
जितने भी लोग नये साल को किसी कारण से जश्न की तरह नही मना पाते वे नये साल के संकल्प जरूर लेते हैं, अपने पहले ही लेख में लेखक भी संकल्प लेते हैं, और आत्मनिर्भरता के संकल्प को पूरा करने के आशान्वित भरोसे के साथ व्यंग्य पूरा करते हैं. जरूर यह व्यंग्य जनवरी में छपा रहा होगा, तब किसे पता था कि कोरोना इस बार भी संकल्प पर तुषारापात कर डालेगा. दुख के हम साथी, फिर बापू के तीन बंदर पढ़ना आज २ अक्टूबर को बड़ा प्रासंगिक रहा, जब बापू के बंदर बापू को बता रहे थे कि वे न बुरा देखते, सुनते या बोलते हैं, तो टी वी पर हाथरस की रपट देख रहा मैं सोच रहा था कि हम तो बुरा मानते भी नहीं हैं…… पांचवे कबीर के अवतरण की सूचना पढ़ लगा अच्छा हुआ कि कबीर साहब के अनुनायियों ने यह नहीं पढ़ा, वरना बिना कबीर को समझे, बिना व्यंग्य के मर्म को समझे केवल चित्र या नाम देखकर भी इस देश में कट्टरपंथियो की भावनाओ को आहत होते देख शासन प्रशासन बहुत कुछ करने को मजबूर हो जाता है. लेकिन वह व्यंग्यकार ही क्या जो ऐसे डर से अपनी अभिव्यक्ति बदल दे. बुलाकी जी कबीर की काली कम्बलिया में लिखते हैं ” मन चंचल है किंतु बंधु आप अपने मन को संयमित करने का यत्न कीजीये. ” प्याज ऐसा विषय बन गया है जिसका वार्षिक समारोह होना चाहिये, जब जब चुनाव आयेंगे, प्याज, शक्कर, स्टील, सीमेंट कुछ न कुछ तो गुल खिलायेगा ही.उनका प्याज व्यंग्यकार से कहता है कि वह बाहर से खुश्बूदार होने का भ्रम पैदा करता है पर है बद्बूदार. अब यह हम व्यंग्यकारो पर है कि हम अंदर बाहर में कितना कैसा समन्वय कर पाते हैं.
अस्तु कवि, साहित्य, साहित्यिक संस्थायें आदि पर खूब सारे व्यंग्य लिखे हैं उन्होने, मतलब अनुभव की गठरी खोल कर रख दी है. बगावती वायरस बिन्दु रूप लिखा गया शैली की दृष्टि से नयापन लिये हुये है. डायरी के चुनिंदा पृष्ठ भी अच्छे हैं.
मेरी रेटिंग, पैसा वसूल ।
समीक्षक .. विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈