हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 1 ☆ फूटी मेड़ें बही क्यारी ☆ – श्री संतोष नेमा “संतोष”
श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. हम श्री संतोष नेमा जी के ह्रदय से अभारी हैं जिन्होंने हमारे आग्रह को स्वीकार कर “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” के लिए रचनाएँ प्रेषित करना स्वीकार किया है. हमें पूर्ण विश्वास है कि “इंद्रधनुष” को पाठकों का स्नेह /प्रतिसाद मिलेगा और उन्हें इस स्तम्भ में हिंदी के साथ ही बुंदेली रचनाओं को पढनें का इंद्रधनुषीय अवसर प्राप्त होगा. आज प्रस्तुत है वर्षा ऋतु पर एक सामयिक बुंदेली कविता “फूटी मेड़ें बही क्यारी “. अब आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़ सकेंगे . )
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष #1 ☆
☆ फूटी मेड़ें बही क्यारी ☆
फूटी मेड़ें बही क्यारी ।
जा साल भई बरखा भारी ।।
गरज गरज,बादर डरा रये ।
बिजली भी,अब कौंधा रये ।।
जा बरस की बरखा न्यारी ।
फूटी मेड़ें बही क्यारी ।।
नाले नरवा भी इतरा रए ।
गांव कस्बा डूब में आ गए ।।
बहकी नदियां भरे खुमारी ।
फूटी मेड़ें बही क्यारी। ।।
नदी सीमाएं लांघ गई हैं ।
छलक रए अब बांध कईं हैं ।।
परेशान है जनता सारी ।
फूटी मेड़ें बही क्यारी ।।
मंदिरों के शिखर डूब गये ।
हम सें भगवन भी रूठ गये ।।
अति वृष्टि सें दुनिया हारी ।
फूटी मेड़ें बही क्यारी ।।
हैरां हो रये ढोर बछेरु ।
ठिया ढूंडे पंक्षी पखेरू ।।
अब “संतोष”करो तैयारी ।
फूटी मेड़ें बही क्यारी ।।
जा साल भईं बरखा भारी ।।
कछु अपनी भी जिम्मेदारी ।
जा साल भई बरखा भारी ।।
फूटी मेड़ें बही क्यारी। ।।
———————-
@संतोष नेमा “संतोष”
@ संतोष नेमा “संतोष”
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)
मोबा 9300101799