हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 6 ☆ आसमान से आया फरिश्ता ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

 विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”  शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।  अब आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी  की पुस्तक चर्चा  आसमान से आया फरिश्ता। 

हाराष्ट्र राज्य का हिन्दी साहित्य अकादमी पुरस्कार  से पुरस्कृत इस पुस्तक की चर्चा , मात्र पुस्तक चर्चा ही नहीं अपितु हमारे समाज को एक सकारात्मक शिक्षा भी देती है और हमें धर्म , जाति और सम्प्रदाय से ऊपर उठ कर विचार करने हेतु विवश करती है. कालजयी गीतों के महान गायक मोहम्मद रफ़ी जी , संगीतकार नौशाद जी  एवं  गीतकार शकील बदायूंनी जी  को नमन और सार्थक पुस्तक चर्चा के लिए श्री विवेक रंजन जी को हार्दिक बधाई.)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 6 ☆ 

 

पुस्तक – आसमान से आया फरिश्ता

 

पुस्तक चर्चा

पुस्तक – आसमान से आया फरिश्ता

लेखक –  धीरेंद्र जैन

प्रकाशक – ई ७ पब्लिकेशन मुम्बई

मूल्य –  299 रु

 

☆ पुस्तक  – आसमान से आया फरिश्ता – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

 

☆ आसमान से आया फरिश्ता ☆

 

धीरेंद्र जैन सिने पत्रकारिता  के रूप में जाना पहचाना नाम है. उन्हें “मोहम्मद रफी.. एक फरिश्ता था वो ” किताब के लिये महाराष्ट्र राज्य का हिन्दी साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल चुका है. रफी साहब के प्रति उनकी दीवानगी ही है कि वे उन पर ४ किताबें लिख चुके हैं. आसमान से आया फरिश्ता एक सचित्र संस्मरणात्मक पुस्तक है जो रफी साहब के कई अनछुये पहलू उजागर करती है.

दरअसल अच्छे से अच्छे गीतकार के शब्द तब तक बेमानी होते हैं जब तक उन्हें कोई संगीतकार मर्म स्पर्शी संगीत नही दे देता और जब तक कोई गायक उन्हें अपने गायन से श्रोता के कानो से होते हुये उसके हृदय में नही उतार देता. फिल्म बैजू बावरा का एक भजन है मन तड़पत हरि दर्शन को आज,  इस अमर गीत के संगीतकार नौशाद और गीतकार शकील बदायूंनी हैं.  इस गीत के गायक मो रफी हैं. रफी साहब की बोलचाल की भाषा पंजाबी और उर्दू थी, अतः इस भजन के तत्सम शब्दो का सही उच्चारण वे सही सही नही कर पा रहे थे. नौशाद साहब ने बनारस से संस्कृत के एक विद्वान को बुलाया, ताकि उच्चारण शुद्ध हो. रफी साहब ने समर्पित होकर पूरी तन्मयता से हर शब्द को अपने जेहन में उतर जाने तक रियाज किया और अंततोगत्वा यह भजन ऐसा तैयार हुआ कि आज भी मंदिरों में उसके सुर गूंजते हैं, और सीधे लोगो के हृदय को स्पंदित कर देते हैं.

भजन  “मन तड़पत हरि दर्शन को आज” भारत की गंगाजमुनी तहजीब का जीवंत उदाहरण बन गया है जहां गीत संगीत आवाज सब कुछ उन महान कलाकारो की देन है जो स्वयं हिन्दू नही हैं. सच तो यह है कि कलाकार धर्म की संकीर्ण सीमाओ से बहुत  ऊपर होता है, पर जाने क्यों देश फिर उन्ही संकीर्ण, कुंठाओ के पीछे चल पड़ता है, ऐसी पुस्तके इस कट्टरता पर शायद कुछ काबू कर सकें. 

 

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८