श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है उनकी रचना “जब होता जीवन का अस्त ” . अब आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़ सकेंगे . )
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 3 ☆
☆ जब होता जीवन का अस्त ☆
राम नाम कहते हैं सत्य,
जब होता जीवन का अस्त।
जीवन अहंकार में जीते।
अंतिम समय छोड़ सब रीते।
लोभ-मोह,आसक्ति न छोड़ा।
सदा सत्य से मुँह को मोड़ा।।
ढली उमरिया साँसें पस्त…….जब होता
झूठ बोल कर माया जोड़ी।
साथ गई न फूटी कौड़ी।।
रिश्ते-नाते रखे ताक पर।
अहम् झूलता रहा नाक पर।।
बीमारी से तन-मन ग्रस्त……जब होता
दान-धरम का ध्यान नहीं था।
अपनों का भी मान नहीं था।।
पल-छिन डूबे रहे स्वार्थ में।
लिप्त वासनाएँ यथार्थ में।।
चूर नशे में हैं अलमस्त… जब होता
धर्म आचरण नहीं निभाते।
अंत समय सब खेद जताते।।
पंडित आ कर गीता पढ़ता।
जबरन खुद ही मन को भरता ।
शिखर सत्य के सारे ध्वस्त…..जब होता
आंखे जब होती हैं बंद।
याद तभी आते छल-छंद।।
रखते गर मन में “संतोष”
यह जीवन रहता निर्दोष।।
मिट जाते दुख,पाप समस्त…..जब होता
राम नाम कहते हैं सत्य ।
जब होता जीवन का अस्त ।।
© संतोष नेमा “संतोष”
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)
मोबा 9300101799