हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 6 ☆ वाणी मीठी बोलते,करुणा-हृदय सुजान ☆ – श्री संतोष नेमा “संतोष”
श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है उनकी रचना “वाणी मीठी बोलते,करुणा-हृदय सुजान” . अब आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़ सकेंगे . )
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 6 ☆
☆ वाणी मीठी बोलते,करुणा-हृदय सुजान ☆
होती है इंसान की,वाणी से पहचान ।
वाणी मीठी बोलते,करुणा-हृदय सुजान ।।
मीठी वाणी से मिले,सामाजिक सम्मान ।
जीवन में रक्खें सदा,इसका समुचित ध्यान ।।
सोच समझ कर खोलिये,अपना मुँह श्रीमान ।
वाणी कभी न लौटती, रखें हमेशा ध्यान ।।
मीठी वाणी संग जो,रखे मधुर मुस्कान ।
दुश्मन भी अनुकूल हो, करता है सम्मान।।
वाणी से ही पनपता,सामाजिक सद्भाव।
वाणी से झगड़ा,कलह,वाणी से विलगाव ।।
मृदु वाणी ही कराती,सबसे अपना मेल ।
जिसके सहज प्रभाव से,चलते जीवन-खेल ।।
मधुर बोल ‘संतोष’ के,लगते विनत प्रणाम।
रिश्तों में भी मधुरता,आती है अभिराम।।
बिन बोले होती नहीं,बोली की पहचान ।
कोयल के हैं मधुर स्वर,कर्कश काक-समान।।
धन-दौलत फीकी समझ,होते शब्द महान ।
पीर पराई जो पढ़े जीते सकल जहान ।।
वाणी कटु जो बोलता,मिले न उसको मान ।
मधुर वचन अति प्रिय लगें,रखें हमेशा ध्यान ।।
बोलें सोच विचार कर,वाणी तत्व महान ।
इससे ही कटुता बढ़े, मिलता इससे मान ।।
कच्चा धागा प्रेम का,रहे हमेशा ख्याल।
वाणी से यह टूटता,वाणी रखे सँभाल।।
वशीकरण का मंत्र है,मीठे रखिये बोल ।
जीवन में “संतोष” नित तोल मोल के बोल ।।
© संतोष नेमा “संतोष”
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)
मोबा 9300101799