हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 11 ☆बेनजीर भुट्टो..मेरी आप बीती”  ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जिन्होने  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा”  शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे।  अब आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है पुस्तक “बेनजीर भुट्टो..मेरी आप बीती”  पर  श्री विवेक जी  की चर्चा ।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 11  ☆ 

☆ पुस्तक चर्चा – बेनजीर भुट्टो..मेरी आप बीती

पुस्तक – बेनजीर भुट्टो..मेरी आप बीती

हिन्दी अनुवाद –  अशोक गुप्ता और प्रणय रंजन तिवारी

मूल्य –  225 रु

प्रकाशक – राजपाल प्रकाशन, दिल्ली

☆ डाटर आफ द ईस्ट – बेनजीर भुट्टो- मेरी आप बीती– चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆

पाकिस्तान से हमारी कितनी भी दुश्मनी क्यो न हो, हमेशा से वहाँ की राजनीति, लोगों और संस्कृति भारतीयो की रुचि के विषय रहे हैं. यही वजह है कि  बेनजीर भुट्टो की आत्मकथा का हिन्दी रूपांतर राजपाल पब्लिकेशन्स ने प्रकाशित किया. काश्मीर के नये हालात ने मुझे अपने बुकसेल्फ से यह पुस्तक निकाल कर एक बार पुनः नये सिरे से पढ़ने के लिये प्रेरित किया. मूलतः अंग्रेजी में लिखी गई इस किताब का हिन्दी अनुवाद अशोक गुप्ता और प्रणय रंजन तिवारी ने किया है. पब्लिक फिगर्स द्वारा आत्मकथा लिखना पुराना शगल है, डाटर आफ द ईस्ट, शीर्षक से  बेनजीर भुट्टो ने अपनी आत्मकथा १९८८ में लिखी थी, जिसमें मार्क सीगल ने उनके साथ मिलकर १९८८ से २००७ तक के घटनाक्रम को जब वे पाकिस्तान वापस लौटी को जोड़ा. अंततोगत्वा उनकी हत्या हुई. किताब बताती है कि पाकिस्तान के हालात हमेशा से अस्थिर व चिंताजनक रहे हैं. मेरे पिता की हत्या, अपने ही घर में बंदी, लोकतंत्र का मेरा पहला अनुभव, बुलंदी के शिखर छूते आक्सफोर्ड के सपने, जिया उल हक का विश्वासघात, न्यायपालिका के हाथो मेरे पिता की हत्या, मार्शल ला को लोकतंत्र की चुनौती, सक्खर जेल में एकाकी कैद, कराची जेल में अपनी माँ की पुरानी कोठरी में बंद, सब जेल में अकेले दो और वर्ष, निर्वासन के वर्ष, मेरे भाई की मौत, लाहौर वापसी और १९८६ का कत्लेआम, मेरी शादी, लोकतंत्र की नई उम्मीद, जनता की जीत, प्रधानमंत्री पद और उसके बाद, उपसंहार, इन उपशीर्षको में बेनजीर भुट्टो ने अपनी पूरी बात रखी है.  पुस्तक में वे लिखती हैं कि आतंकवादी इस्लाम का नाम लेकर पाकिस्तान को खतरे में डाल रहे हैँ… फौजी हुकूमत छल कपट और षडयंत्र के खतरनाक खेल खेलती है.. किंबहुना बेनजीर के वक्त से अब पाकिस्तान में आतंक और पनपा है, वहां के हालात बदतर हो रहे हे हैं, जरूरत है कि कोई पैगम्बर आये जो  जिहाद को सही तरीके से वहां के मुसलमानो को समझाये, अमन और उसूलो की किताब  कुरान की मुफीद व्याख्या दुनियां की जरूरत बन चुकी है.

 

चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर

मो ७०००३७५७९८