हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 13 ☆ मेलुहा के मृत्युंजय ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के आभारी हैं जिन्होने साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक से यह स्तम्भ लिखने का आग्रह स्वीकारा। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं । आप प्रत्येक मंगलवार को श्री विवेक जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक समीक्षाएं पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है विश्वप्रसिद्ध पुस्तक “मेलुहा के मृत्युंजय ” पर श्री विवेक जी की पुस्तक चर्चा . श्री विवेक जी द्वारा प्रेषित विगत पुस्तक चर्चाएं वास्तव में “बैक टू बैक ” पढ़ने लायक पुस्तकें हैं ।श्री विवेक जी का ह्रदय से आभार जो वे प्रति सप्ताह एक उत्कृष्ट एवं विश्व प्रसिद्ध पुस्तक की चर्चा कर हमें पढ़ने हेतु प्रेरित करते हैं। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा – # 13 ☆
☆ पुस्तक चर्चा – मेलुहा के मृत्युंजय ☆
पुस्तक – मेलुहा के मृत्युंजय
हिन्दी अनुवाद – The Immortals of Meluha
लेखक – अमीष त्रिपाठी
मूल्य – 195 रु
प्रकाशक – वेस्टलैंड लिमिटेड
ISBN 978-93-80658-82-7
☆ मेलुहा के मृत्युंजय – चर्चाकार…विवेक रंजन श्रीवास्तव ☆
पौराणिक साहित्य पर अनेक उपन्यास , महाकाव्य आदि लिखे गये हैं. अमीश त्रिपाठी ऐसे महान लेखक हैं जिन्होने भारतीय जनमानस में व्याप्त आध्यात्मिक कथाओ को एक सूत्र में पिरोकर अपनी लेखनी से चित्रमय झांकी बनाकर प्रस्तुत करने में सफलता पाई है.
उनके लिखे उपन्यास मेलूहा के मृत्युंजय भगवान शिव की भारतीय कल्पना को साकार रूप देकर एक महानायक के रूप मे वर्णित करती है. आज का अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत का पश्चिमोत्तर भाग जहां सरस्वती नदी बहा करती थी मेलूहा भू भाग के रूप में वर्णित है. इस कथानक में अमीश जी ने साहसिक लेखन करते हुये शिव को भावुक प्रेमी, भीषण योद्धा, चमत्कारी मार्गदर्शक, प्रबल नर्तक के रूप में एक सच्चरित्र शक्तिमान व्यक्ति के रूप में केंद्र में रखते हुये ३ उपन्यास लिख डाले हैं. इसी श्रंखला के अन्य दो उपन्यास हैं नागाओ का रहस्य व वायुपुत्रो की शपथ. किताबें मूलतः सरल अंग्रेजी में लिखी गई थी फिर उनके अनुवाद हिन्दी सहित कई भाषाओ में हुये और पुस्तकें बेस्ट सेलर रही हैं.
मैंने गहराई से तीनो ही पुस्तकें पढ़ी. १९०० ई पू की देश काल परिस्थिति में स्वयं को उतारकर धार्मिक विषय पर लिख पाना कठिन कार्य था जिसे अमीश ने बखूबी कर दिखाया है.
आज जब अदालतें ये सबूत मांगती हैं कि राम हुये थे या नही? ये उपन्यास एक जोरदार जबाब हैं, जिनमें ४००० वर्ष पहले शिव को एक भगवान नही एक महान व्यक्ति के रूप में कथानायक बनाया गया है. पुस्तक पठनीय व संग्रहणीय है
चर्चाकार.. विवेक रंजन श्रीवास्तव, ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर
मो ७०००३७५७९८