हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद – # 7 ☆ लघुकथा – गलत सवाल ? ☆ – डॉ. ऋचा शर्मा

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है.  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी . उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं.  अब आप  ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे. आज प्रस्तुत है उनकी एक विचारणीय  लघुकथा “गलत सवाल ?”)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद – # 7 ☆

☆ लघुकथा – गलत सवाल ? ☆ 

 

बेटी कंप्यूटर इंजीनियर। प्रतिष्ठित कॉलेज से बी.ई.। मल्टीनेशनल कंपनी में चार वर्ष से साफ्टवेअर इंजीनियर के पद पर कार्यरत। छह महीने के लिए ऑनसाइट ड्यूटी पर मलेशिया भी जा चुकी है। पैकेज सालाना आठ लाख। अपनी सुंदर, संस्कारी लड़की को इंजीनियर बनाने में आठ–दस लाख तो खर्च कर दिए होंगे माता-पिता ने ?

शादी की विभिन्न वेबसाइट पर उनकी लड़की के योग्य जो लड़का ठीक लगता तो वे उसके माता–पिता का फोन नं. लेकर बातचीत शुरू करते। लड़की के पिता के प्रश्न होते – “लड़के का पैकेज कितना है? आपका अपना मकान है या किराए पर रहते हैं? लड़के की शादी कैसी करेंगे आप?”

“मतलब …………… ?”

“मतलब साफ है साहब – 20 लाख, 25 लाख, कितना खर्च करेंगे आप अपने लड़के की शादी में? मेरी बेटी इंजीनियर है बहुत खर्च किया है मैंने उसकी पढाई-लिखाई पर” – लडकी के पिता ने विनम्रता से कहा।

“क्या …………….?” और झटके से लड़केवालों का फोन कट जाता। किसी एक ने गुस्से से कहा – “ये कैसे बेहूदे  सवाल कर रहे हैं आप? लड़कीवाले हैं ना? भूल गए क्या?”

लड़की के पिता सकते में, यही सवाल तो पिछले दो साल से हर लड़के के माता–पिता उनसे पूछ रहे थे, मैंने पूछा तो क्या गलत किया?

 

© डॉ. ऋचा शर्मा,

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