श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं. अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्री विवेक जी के चुनिन्दा  रचनाओं को “विवेक साहित्य ”  शीर्षक के अंतर्गत पढ़ सकेंगे.  आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का व्यंग्य  “मिस्सड़ के मजे”.  श्री विवेक रंजन जी का यह  सामयिक व्यंग्य  बेशक असामयिक लग रहा होगा किन्तु, मैं इसे सामयिक के दर्जे में ही रखता हूँ। ब्रेकिंग न्यूज़ तो कभी भी रिपीट होती रहती है।  तो मिस्सड के मजे तो कभी भी लिए जा सकते हैं।यह तो सिद्ध हो  ही  गया  कि  श्री विवेक जी  पुरे देश की राजनीति को किचन से जोड़ने में भी माहिर हैं। किससे किसकी और किसको उपमा  देना तो कोई  श्री विवेक जी से सीखे। इस व्यंग्य को पढ़कर कमेंट बॉक्स में बताइयेगा ज़रूर। श्री विवेक रंजन जी ऐसे बेहतरीन व्यंग्य के लिए निश्चित ही बधाई के पात्र हैं.  )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक के व्यंग्य – # 23 ☆ 

☆ मिस्सड़ के मजे ☆

 

मैं और मेरी पत्नी एक समारोह से दोपहर में घर लौटे थे,खाना बनाने वाली घर बंद देखकर लौट चुकी थी  मैने पत्नी से कहा डायटीशियन की दाल दलिया, उबली सब्जी, सूप, अंडे का भी केवल एग व्हाईट, खाते खाते मैं बोर हो चुका हूं , पत्नी की मिन्नत करते हुये मैंने प्यार से फरमाईश की कि बरसों हो गये हलवा नही खाया, क्यो न आज हलवा बनाया खाया जावे. हलवा ऐसा व्यंजन है जो किसी होटल में भी सहजता से नही मिलता, वह माँ, बहन या पत्नी के एकाधिकार में घर की रसोई में ही सुरक्षित है.

हमारी फरमाईश पर पत्नी ने भी पूरा पत्नित्व बताते हुये झिड़क कर  कहा बहुत चटोरे हो आप. फिर इस आश्वासन के बाद कि मैं चार किलोमीटर अतिरिक्त वाक पर जाउंगा, वह मेरे लिये कम घी का हलुआ बनाने को राजी हो ही गई. घर में लम्बे अरसे के बाद हलुआ बनना था, मौका महत्वपूर्ण था. रवे की तलाश हुई, डब्बे खोले गये, रवा था तो पर वांछित मात्रा से कम, वैसे ही जैसे महाराष्ट्र में बीजेपी के विधायक.

दलिया छानकर निपुण, गृहकार्य में दक्ष पत्नी ने किंचित मात्रा और जुटा ली, मुझे उसके अमित शाही गुण का अंदाजा हुआ. शक्कर के डब्बे में शक्कर भी तलहटी में ही थी, महीना अपने अंतिम पायदान पर था, और वैसे भी हम दोनो ही बगैर शक्कर की ही चाय पीते हैं. शक्कर तो काम वाली बाई की चाय के लिये ही खरीदी जाती है. मै हलुआ निर्माण की इस फुरसतिया रविवारी दोपहरी की प्रक्रिया में पूरी सहभागिता दे रहा था, पत्नी ने एक प्लेट में डब्बे से शक्कर उलट कर रख दी, तो अनजाने ही मुझे बचपन याद हो आया जब मैं माँ के पास किचन में बैठा बैठा शक्कर फांक जाया करता था, अनजाने ही मेरे हाथ चम्मच भर शक्कर फांकने के लिये बढ़े, पत्नी ने मेरी मंशा भांप ली और तुरंत ही शक्कर की प्लेट मेरी पहुंच से दूर अपने कब्जे में दूसरी ओर रख दी, मुझे लगा जैसे दल बदल के डर से कांग्रेस ने अपने विधायको को किसी रिसोर्ट में भेज दिया हो.

अब घी की खोज की गई तो पता चला कि बैलेंस डाईट के चक्कर में घी केवल भगवान के सामने दिया जलाने के लिये ही आता है, भोजन व ब्रेकफास्ट में हम मख्खन खाते हैं. याने सीधे तौर पर हलवा खाने की योजना पर पानी फिर गया. चटोरे मूड में हम अन्य विकल्प तलाशने लगे.

पत्नी ने प्रस्ताव रखा कि नमकीन उपमा बनाया जावे, पर मीठी नीम और धनिया पत्ती नही थी सो विचार के बाद भी उपमा बनने की बात बनी नही. जैसे महाराष्ट्र में सरकार गठन के अलग अलग विकल्प दिल्ली में की जा रही चर्चाओ में तलाशे जा रहे थे, वैसे ही हम किचिन से उठकर टी वी के सामने ड्राइग रूम में आ बैठे थे और मंत्रणा चल रही थी कि आखिर क्या खाया जावे, क्या और कैसे बनाया जावे, जो मुझे भी पसंद हो और पत्नी को भी. अस्तु काफी विचार विमर्श, चिंतन मनन, सोच विचार के बाद  पत्नी ने न्यूनतम साझा कार्यक्रम तय कर डाला.

इसके आधार पर  नमकीन या मीठे के विरोधाभासी होने  की परवाह किये बगैर  उपलब्ध बिस्किट, खटमिट्ठा नमकीन और मीठे खुरमें के तीन डब्बो में  जो भी थोड़ा थोड़ा चूरा सहित जो भी कुछ बचा हुआ  उसे मिला वह सब  एक प्लेट में निकाल लाई, और बिना शक्कर की चाय के साथ हम भूखे पेट इस मिस्सड़ का आनंद लेने में मशगूल हो गये.

टी वी पर ब्रेकिंग न्यूज की पट्टी चल रही थी महाराष्ट्र में कांग्रेस, शिवसेना और पवार कांग्रेस की मिली जुली सरकार बनने वाली है. सोते सोते तक यही स्थिति थी, सोकर उठे तो दूसरे ही शपथ ले चुके थे, शाम होते होते उनके बहुमत पर कुशंका के बादल मंडरा रहे थे, सचमुच हम रॉकेट युग मे पहुंच चुके हैं ।

 

विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

 

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