डॉ. ऋचा शर्मा
(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में अवश्य मिली है. किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी . उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं. अब आप ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे. आज प्रस्तुत है उनकी एक सामयिक, सार्थक एवं मानसिक रूप से विकृत पुरुष वर्ग के एक तबके को स्त्री शक्ति से सतर्क कराती सशक्त लघुकथा “दुःख में सुख”. डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को ऐसी रचना रचने के लिए सादर नमन। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद – # 10 ☆
☆ लघुकथा – दुःख में सुख ☆
माँ की पीठ पहले की अपेक्षा अधिक झुक गयी थी । डॉक्टर का कहना है कि माँ को पीठ सीधी रखनी चाहिए वरना रीढ़ की हड्डी पर असर पड़ता है साथ ही याददाश्त भी कमजोर हो जाती है।
गर्मी की छुट्टियों में मायके गयी तो देखा कि माँ थोड़ी ही देर पहले कही बात भूल जाती है। आलमारी की चाभी और रुपए पैसे रखकर भूलना तो हर समय की बात हो गयी थी। कई बार परेशान होकर वह खुद ही कह उठती- पता नहीं क्या हो गया है ? लगता है मैं पागल होती जा रही हूँ। कुछ याद ही नहीं रहता- कहाँ- क्या रख दिया ?
झुकी पीठ के साथ माँ दिन भर काम में लगी रहती। सुबह की एक चाय ही बस आराम से पीना चाहती। उसके बाद झाड़ू, बर्तन, खाना, कपड़े-धोने का जो सिलसिला शुरू होता वह रात ग्यारह बजे तक चलता रहता। रात में सोती तो बिस्तर पर लेटते ही कराह उठती। झुकी पीठ में टीस उठती। फिर वही सिलसिला दूसरे दिन का……..
बेटियों के मायके आने पर माँ की झुकी पीठ कुछ तन जाती। अपनी आयु और स्वास्थ्य भूलकर वह और तेजी से काम में जुट जाती। उसे चिंता होती कि बेटे-बहू का कोई कड़वा बोल बेटियों के कानों में न पड़ जाए। उपेक्षा का भाव बेटियों को नजर ना आ जाए। माहौल खुशनुमा बनाने के लिए और खुद को प्रसन्न दिखाने के लिए वह गुनगुनाती, नाती-नातिन के साथ हँसती, खेलती, खिलखिलाती…….. ?
वह गर्मी की रात, थकी-हारी माँ छत पर लेटी थी। इलाहबाद की गर्मी, हवा का नाम नहीं। माँ नाती-पोतों से घिरी लेटी है। हवा चले, इसके लिए वह बच्चों से जोर-जोर से बुलवा रही है- चिडिया ,कौआ ,तोता सब उड़ो, उड़ो, उड़ो, हवा चलो, चलो, चलो बच्चे चिल्ला- चिल्लाकर बोल रहे थे। बच्चों के लिए अच्छा खेल था। माँ मानों अपने-आप से बोलने लगी- बेटी खुश रहा करो। बातों को भूलने की कोशिश किया करो। हम औरतों के लिए बहुत जरुरी है यह। जब से हर बात भूलने लगी हूँ मन बड़ा शांत है। किसी की तीखी कड़वी बात थोड़ी देर असर करती है फिर कुछ याद ही नहीं रहता। किसने क्या कहा, क्यों कहा, क्या ताना मारा……. कुछ नहीं। यह कहकर माँ ने लंबी साँस भरी।
बोलते-बोलते माँ कब सो गयी पता नहीं चला। चाँदनी उसके चेहरे पर पसर गयी थी। माँ के विश्वास ने ठंडी हवा भी चला दी थी। मुझे डॉक्टर की कही बात याद आ रही थी लेकिन माँ ने दु:ख में भी सुख ढूंढ लिया था।
© डॉ. ऋचा शर्मा
अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.
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परेशानियों से घिरा होकर भी अगर हम छोटी- छोटी खुशियां ढूंड लें तो मुश्किल जीवन भी आसान लगने लगता है।
सही बात है , सकारात्मकता जरूरी है जीवन के लिए
Hello maam, i really like to read your stories every week, i think u do a great job!!
thank you Shabnam
❤️
खुश रहो .
बहुत सुंदर कहानी है मैडम ?
धन्यवाद चेतन
दुख में सुख कहानी गहरी असरकारक नहीं लगी सामान्य रूप से वृद्व अवस्था का वर्णन है इसके पीछे कोई खास उद्देश्य नजर नहीं आ रहा। कोई घटना जो प्रेरित करती हो
धन्यवाद मधुलता जी
Very Nice mam
धन्यवाद शकीरा