हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक के व्यंग्य – # 7 ♥ जा तुझे माफ किया! ♥ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक के व्यंग्य”  में हम श्री विवेक जी के चुनिन्दा व्यंग्य आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्री विवेक जी के चुनिन्दा व्यंग्यों को “विवेक के व्यंग्य “ शीर्षक के अंतर्गत पढ़ सकेंगे।  आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का व्यंग्य “जा तुझे माफ किया!”)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक के व्यंग्य – # 7 ☆ 

 

♥ जा तुझे माफ किया! ♥

 

जब उन्होने बिना साक्ष्य के आरोप लगाये तब भी वे सुर्खियो में थे, अब जब माफी मांग रहे हैं तब भी सुर्खियो में हैं. सुर्खियो में रहना उनकी मजबूरी है, क्योकि वे अच्छी तरह समझते हैं कि जो दिखता है वही बिकता है. माफी मांगने से भी उदारमना होने वाली विनम्र छबि बनती ही है. जो माफ करता है उसकी भी और जो माफी मांगता है उसकी भी. क्षमा बड़न को चाहिये छोटन को उत्पात. उत्पात मचाना छोटे का जन्म सिद्ध अधिकार होता है. बचपन से हमने यही संस्कार पाये हैं. छोटी बहन कितनी भी शैतानी करे, माँ मुझे ही घुड़कती थीं और उनके आँख दिखाते ही मुझे मनमसोस कर बहन को माफ कर देना पड़ता था.

वैसे राजनीति में ये फार्मूला थोड़ा नया है. जब वोट चाहिये हों तो अनाप शनाप कुछ भी वादे कर डालो मंच से, तालियां पिटेंगी, वोट मिलेंगें. और तो और घोषणा पत्र में तक कभी पूरी न की जा सकने वाली लिखित घोषणायें करने से भी राजनैतिक दल बाज नही आते. यह अपनी लाइन बड़ी करने वाली तरकीब है. वोटर के मन में अपने निशान के प्रति आकर्षण पैदा करने की दूसरी तरकीब होती है, सामने वाले की छबि खराब करना. इसके लिये बेबुनियाद आरोप भी लगाना पड़े तो “एवरी थिंग इज फेयर इन लव वार एण्ड राजनीति”.

जनता कनफ्यूज हो जाती है, कयास लगाती है कि बिना आग के धुंआ थोड़े ही उठता है,सोचती है कुछ न कुछ चक्कर तो होगा. आधे से ज्यादा लोग तो नादान समझकर सह लेते हैं या स्वयं भी उससे बढ़कर कोई आरोप लगाकर या मानहानि का मुकदमा दायर करने की धमकी देकर ही बदला ले लेते हैं. जो इतने संपन्न होते हैं कि अदालत में केस दाखिल कर सकते हैं वे जब तक मानहानि का मुकदमा दायर करते हैं तब तक वोट मिल चुके होते हैं. मतलब निकल जाता है. फिर यदि मानहानि का मुकदमा गले की हड्डी बन ही गया तो माफी मांगकर गोल्डन शेक हैण्ड करके फिर से सुर्खियां बटोरी जा सकती हैं.

गलत झूठे आरोप लगाने के लिये किसी वेबसाइट से मोटे मोटे दस्तावेज डाउनलोड किये जा सकते हैं जिनमें क्या लिखा है आरोप लगाने वाले  को भी नही मालूम होता. पर प्रेस कांफ्रेन्स करके टी वी कैमरे के सामने हवा में लहराकर आरोप लगाया जाता है. पत्रकार और जनता सब आरोप ढ़ूंढ़ते रह जाते है, चुनाव निकल जाते हैं. यदि किसी की व्यक्तिगत चारित्रिक कोई कमजोरी हाथ लग जाये तो फिर क्या है, कई साफ्टवेयर हैं जो हू बहू आरोपी की आवाज में जो चाहें वह बोलने वाली सीडी बना सकते हैं. जब फारेंसिक जांच में सीडी की सत्यता प्रमाणित न हो सके तो माफी मांगने वाला फार्मूला इस्तेमाल किया ही जा सकता है. आई एम सारी सर कहकर मुस्कराते हुये पूरी बेशर्मी से कहा जा सकता है,  क्षमा बड़न को चाहिये छोटन को उत्पात.

 

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव 

ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो. ७०००३७५७९८