हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 21 ☆ भोर ☆ – श्री संतोष नेमा “संतोष”
श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है उनकी अतिसुन्दर कविता “भोर ”. आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़ सकते हैं . )
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 21 ☆
☆ भोर ☆
रात अंधेरी छट गई, हुई सुनहरी भोर
गम के साये से निकल, चल प्रकाश की ओर
☆ प्रभात ☆
नई उमंगें ला रहा, लेकर नया प्रभात
कोने में दुबकी खड़ी, वही अंधेरी रात
☆ ऊषा ☆
ऊषा की यह लालिमा, भरती मन उत्साह
नई सोच नव जोश से, नई दिखाती राह
☆ उजास ☆
अंधकार के इरादे, कभी न रहते नेक
बाधित करे उजास को, बुरा काम यह एक
☆ सूरज ☆
सूरज से जीवन चले, है प्रकाश का पुंज
चलते रहना सिखाता, कभी न होना लुंज
© संतोष नेमा “संतोष”
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)
मोबा 9300101799