हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद – # 16 ☆ लघुकथा – गणेश चौथ ☆ – डॉ. ऋचा शर्मा

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी . उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं. अब आप  ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी  एक  लघुकथा  “गणेश चौथ”।  समाज में व्याप्त  भेदभावपूर्ण एवं नकारात्मक संस्कारों को भी सकारात्मक स्वरुप दिया जा सकता है। डॉ ऋचा जी की रचनाएँ अक्सर यह अहम्  भूमिकाएं निभाती हैं ।  डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को ऐसी रचना रचने के लिए सादर नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद – # 16 ☆

☆ लघुकथा – गणेश चौथ

हर साल गणेश चौथ और अहोई व्रत मुझे कचोटते हैं इसलिए नहीं कि मेरे पुत्र नहीं है।  बल्कि इसलिए कि यदि व्रत रखने और पूजा पाठ करने से पुत्र को लंबी उम्र और सुखी जीवन मिलता है तो मैं अपनी बेटियों के लिए यह व्रत क्यों न करूँ। क्या मैं नहीं चाहती कि मेरी  बेटियाँ स्वस्थ तथा दीघार्यु हों? पुत्रियों के लिए क्या कोई व्रत – पूजा नहीं ? मैं मन ही मन कलप उठती।

गणेश चौथ का दिन था।  सासू जी सुबह से ही नहा-धोकर नयी साड़ी पहनकर तैयार हो गयीं। आज उनका गणेश चौथ का व्रत था। तिल के लड्डू, तिलकूट और भी बहुत कुछ घर में बन रहा था।

सासू जी खुद तो व्रत रखती ही थीं आस-पड़ोसवालों से भी पूछती रहतीं – आज गणेश चौथ है आप भी व्रत होंगी ? नहीं या हाँ के उत्तर के बाद प्रश्न दग जाता – और आपकी बहू ? नहीं, बहू यह व्रत नहीं रखती। उसके लड़का नहीं है ना ? लड़के की माँ ही गणेश चौथ और अहोई का व्रत रखती है। ना चाहते हुए भी मेरे कानों में आवाज पड़ ही जाती थी। अब ये बातें मेरी समझदार होती बेटियों को भी सुनायी देने लगी थीं, जो मैं नहीं चाहती थीं।

तभी मैंने देखा कि मेरी छोटी बेटी आस्था अपनी दादी से उलझ रही है – दादी। लड़कों के लिए ही व्रत रखते हैं क्या ? लड़कियों के लिए कौन-सा व्रत रखा जाता है ?

अरे नहीं होता कोई व्रत, दादी झुंझलाकर बोलीं— लड़कियों के लिए भी कहीं व्रत रख जाता है क्या ?

पर क्यों नहीं रखते दादी ? – रुआँसी होती आस्था बोली |

अरे। हमें क्या पता। जाकर अपनी मम्मी से पूछो। बहुत पढ़ी-लिखीं हैं,  वही बताएंगी।

आस्था रोनी सूरत बनाए आँखों में प्रश्न लिए मेरे सामने खड़ी थी। आस्था के गाल पर स्नेह भरी हल्की चपत लगाकर मैं बोली – ये व्रत, पूजा सब संतान के लिए होती है।

संतान मतलब ?

हमारे बच्चे – बेटे, बेटी सब।

मैंने देखा आस्था के चेहरे पर भाव आँख – मिचौली खेल रहे थे। सासू जी रात में गणपति जी की पूजा करने बैठीं। उन्होंने अपने बेटे को टीका लगाया और आरती उतारी। मैंने अपनी बेटियों अदिति और आस्था को भी वहाँ बैठाया। सुंदर-सा टीका लगाकर, अक्षत के दो दाने लगा दिए, आरती उतारी और बेटियों की दीर्घायु की कामना की। दीपक की लौ में उज्ज्वल चाँदनी-सी मुस्कान ने दोनों के चेहरे पर अनोखी सुंदरता भर दी। तिलकूट की सौंधी महक घर भर में पसर गयी  थी।

 

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

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