हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक के व्यंग्य – #1 ☆ बाबा ब्लैक शीप ☆ – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के हम हृदय से आभारी हैं, जिन्होने हमारे आग्रह पर साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक के व्यंग्य” शीर्षक से लिखना स्वीकार किया। आप वर्तमान में अतिरिक्त मुख्य इंजीनियर के पद पर म.प्र.राज्य विद्युत मंडल, जबलपुर में कार्यरत हैं। संभवतः आपको साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन की कला शिक्षा के क्षेत्र में ख्यातिनाम माता-पिता से संस्कार में मिली है। आपने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन कार्य किया है। आप समय के साथ स्वयं को डिजिटल मीडिया में ढाल कर एक प्रसिद्ध ब्लॉगर की भूमिका भी निभा रहे हैं। आप काई साहित्यिक सम्मनों से पुरुस्कृत / अलंकृत हैं । श्री विवेक रंजन जी की साहित्यिक यात्रा की विस्तृत जानकारी के लिए >> श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ << पर क्लिक करने का कष्ट करें। अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्री विवेक जी के व्यंग्यों को “विवेक के व्यंग्य “ शीर्षक के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का व्यंग्य “बाबा ब्लैक शीप” ।
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक के व्यंग्य – #1 ☆
☆ बाबा ब्लैक शीप ☆
कष्टो दुखो से घिरे दुनिया वालो को बाबाओ की बड़ी जरूरत है. किसी की संतान नहीं है, किसी की संतान निकम्मी है, किसी को रोजगार की तलाश है, किसी को पत्नी पर भरोसा नही है, किसी को वह सब नही मिलता जिसके लायक वह है, कोई असाध्य रोग से पीड़ित है तो किसी की असाधारण महत्वाकांक्षा वह साधारण तरीको से पूरी कर लेना चाहता है, वगैरह वगैरह हर तरह की समस्याओ का एक ही निदान होता है ” बाबा”. इसलिये हमें एक चेहरे की तलाश है, जो किंचित कालिदास की तरह का गुणवान हो, कुछ वाचाल हो, टेक्टफुल हो, थोड़ा बहुत आयुर्वेद और ज्योतिष जानता हो तो बात ही क्या, हम उसे बाबा के रूप में महिमा मण्डित कर सकते हैं, कोई सुयोग्य पात्र मिले तो जरूर बताईये.
यूँ बचपन में हम भी बाबा हुआ करते थे ! हर वह शख्स जो हमारा नाम नहीं जानता था हमें प्यार से बाबा कह कर पुकारता था. इस बाबा गिरी में हमें लाड़, प्यार और कभी जभी चाकलेट वगैरह मिल जाया करती थी. यह “बाबा” शब्द से हमारा पहला परिचय था. अच्छा ही था. अपनी इसी उमर में हमने “बाबा ब्लैक शीप” वाली राइम भी सीखी थी. जब कुछ बड़े हुये तो बालभारती में सुदर्शन की कहानी “हार की जीत” पढ़ी. बाबा भारती और डाकू खड़गसिंग के बीच हुये संवाद मन में घर कर गये. “बाबा” का यह परिचय संवेदनशील था, अच्छा ही था. कुछ और बड़े हुये तो लोगों को राह चलते अपरिचित बुजुर्ग को भी “बाबा” का सम्बोधन करते सुना. इस वाले बाबा में किंचित असहाय होने और उनके प्रति दया वाला भाव दिखा. कुछ दूसरे तरह के बाबाओ में कोई हरे कपड़ो में मयूर पंखो से लोभान के धुंयें में भूत, प्रेत, साये भगाता मिला तो कोई काले कपड़ो में शनिवार को तेल और काले तिल का दान मांगते मिला. कुछ वास्तविक बाबा आत्म उन्नति के लिये खुद को तपाते हुये भी मिले पर इन बाबाओ पर भी तरस खाने वाली स्थिति थी.
फिर बाबा बाजी वाले बाबाओ से भी रूबरू हुये. जिनके रूप में चकाचौंध थी. शिष्य मंडली थी. बड़े बड़े आश्रम थे. लकदक गाड़ियों का काफिला था. भगवा वस्त्रो में चेले चेलियां थे. प्रवचन के पंडाल थे. पंडालो के बाहर बाबा जी के प्रवचनो की सीडी, किताबें, बाबा जी की प्रचारित देसी दवाईयां विक्रय करने के स्टाल थे. टी वी चैनलो पर इन बाबाओ के टाईम स्लाट थे. इन बाबाओ को दान देने के लिये बैंको के एकाउंट नम्बर थे. कोई बाबा हवा से सोने की चेन और घड़ी निकाल कर भक्तो में बांटने के कारण चर्चित रहे तो कोई जमीन में हफ्ते दो हफ्ते की समाधि लेने के कारण, कोई योग गुरु होने के कारण तो कोई आयुर्वेदाचार्य होने के कारण सुर्खियो में रहते दिखे. बड़े बड़े मंत्री संत्री, अधिकारी, व्यापारी इन बाबाओ के चक्कर लगाते मिले. ही बाबा और शी बाबा के अपने अपने छोटे बड़े ग्रुप आपकी ही तरह हमारा ध्यान भी खींचने में सफल रहे हैं.
बाबाओ के रहन सहन आचार विचार के गहन अध्ययन के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि किसी को बाबा बनाने के लिये प्रारंभिक रूप से कुछ सकारात्मक अफवाह फैलानी होगी. लोग चमत्कार को नमस्कार करते आये हैं. अतः कुछ महिमा मण्डन, झूठा सच्चा गुणगान करके दो चार विदेशी भक्त या समाज के प्रभावशाली वर्ग से कुछ भक्त जुटाने पड़ेंगे. एक बार भक्त मण्डली जुटनी शुरु हुई तो फिर क्या है, कुछ के काम तो गुरु भाई होने के कारण ही आपस में निपट जायेंगे, जिनके काम न हो पा रहे होंगे बाबा जी के रिफरेंस से मोबाईल करके निपटवा देंगे.
हमारे दीक्षित बाबा जी को हम स्पष्ट रूप से समझा देंगे कि उन्हें सदैव शाश्वत सत्य ही बोलना है, कम से कम बोलना है. गीता के कुछ श्लोक, और रामचरित मानस की कुछ चौपाईयां परिस्थिति के अनुरूप बोलनी है. जब संकट का समय निकल जायेगा और व्यक्ति की समस्या का अच्छा या बुरा समाधान हो जावेगा तो बोले गये वाक्यो के गूढ़ अर्थ लोग अपने आप निकाल लेंगे. बाबाओ के पास लोग इसीलिये जाते हैं क्योकि वे दोराहे पर खड़े होते हैं और स्वयं समझ नहीं पाते कि कहां जायें, वे नहीं जानते कि उनका ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो कोई बाबा जी भी नही जानते कि कौन सा ऊंट किस करवट बैठेगा, पर बाबा जी, ऊंट के बैठते तक भक्त को दिलासा और ढ़ाड़स बंधाने के काम आते हैं. यदि ऊंट मन माफिक बैठ गया तो बाबा जी की जय जय होती है, और यदि विपरीत दिशा में बैठ गया तो पूर्वजन्मो के कर्मो का परिणाम माना जाता है, जिसे बताना होता है कि बाबा जी ने बड़े संकट को सहन करने योग्य बना दिया, इसलिये फिर भी बाबा जी की जय जय. बाबा कर्म में हर हाल में हार की जीत ही होती है भले ही भक्त को बाबा जी का ठुल्लू ही क्यो न मिले. बाबा जी पर भक्त सर्वस्व लुटाने को तैयार मिलते हैं भले ही बाबा ब्लैक शीप ही क्यो न हों.
© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव
ए-1, एमपीईबी कालोनी, शिलाकुंज, रामपुर, जबलपुर, मो ७०००३७५७९८