हिन्दी साहित्य – ☆ हैवानियत – दीवारें, सड़के, पेड़ बोल उठे अब तो सुधर जा इंसान  ☆ – श्री कुमार जितेंद्र

श्री कुमार जितेन्द्र

 

(आज प्रस्तुत है  श्री कुमार जितेंद्र जी  का विशेष आलेख “हैवानियत – दीवारें, सड़के, पेड़ बोल उठे अब तो सुधर जा इंसान ”।  इस आलेख के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का अद्भुत  सन्देश दिया गया   है.

☆हैवानियत – दीवारें, सड़के, पेड़ बोल उठे अब तो सुधर जा इंसान  ☆

 

*हैवानियत* अर्थ पशुओं के समान क्रूर आचरण, अमानवीय व्यवहार जो मानव के मानव होने को कलंकित करे। अगर इसमे पशुओं को हटा दिया जाए तो कितना अच्छा रहेंगा क्योंकि वर्तमान का पशु तो क्रूर आचरण शायद ही कोई करे। ऎसा सुनने में बहुत कम आता है। और अगर सौभाग्य से सुनने को मिल जाता है तो यह बात सुनने को मिलती है कि उस पशु ने उस इंसान की जान बचाई। वर्तमान की परिस्थितिया कुछ और ही बया कर रही है। वर्तमान में मनुष्य ख़ुद अपने ही समाज मनुष्य के लिए हैवानियत बन गया है। प्रतिदिन विभिन्न प्रकार की घटनाएँ सुनने को मिल रही है। जो भविष्य के लिए एक बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकता है।

आईए विश्लेषण से समझते हैं *हैवानियत* को.

*दीवारें बोल उठी, अब तो सुधर जा इंसान* – पौराणिक कहावत है कि दीवारों के भी कान होते हैं। मतलब किसी भी बात को दूसरे को गोपनीय तरीके से बताना जिसे अन्य किसी व्यक्ति को पता नहीं चले। परन्तु वर्तमान समय कुछ ऎसी स्थितियां लेकर प्रकट हुआ है। जिससे मुकबधिर, निर्जीव दीवारे भी बोल उठी है…चिल्ला उठी….. बेटी बचाओं, बेटी बचाओं। पेड़ो ने अपनी हवा रोक ली, सूर्य ने तेज किरणें फैला दी फिर भी इंसान सोया हुआ है। जिस इंसान को जाग उठना था, वह इंसान आज रंगीन रंगो में रंगा हुआ है। फिर तो अंतर सामने आ ही गया है निर्जीव और सजीव में। आज उसका विपरीत परिणाम देखने को मिल रहा है। सजीव ख़ुद निर्जीव बनते जा रहे हैं, और निर्जीव इस वक्त सजीव बन चिल्ला रहे हैं। इस समय इस धरा पर दुष्कर्म की घटनाओं ने एक विकराल रूप धारण कर लिया है। धरा अपने आंसुओ को रोक नहीं पा रही है, जब सामने रक्त की धार बहती है। वही दूसरी ओर अख़बारों के पन्नो को पलटते ही दुष्कर्म की एक वारदात दिखाई पड़ती है, उसे ठीक से पूरा पढ़ ही नहीं पाते हैं। की टेलीविजन या सोशल मीडिया के माध्यम से दूसरी घटना घटित हो जाती है।  अपराधी बिना डर के अपराध को अंजाम दे रहे हैं। धन्य हो मनुष्य…. सड़को के चौराहे पर मोमबतिया जला के अख़बारों के पहले पन्ने पर आ जाते हैं। पर उन दीवारों की चीख, पुकार… बेटी बचाओं, बेटी बचाओं… कौन सुनेंगा। क्या अखबारों के पहले पन्ने पर मोमबतिया लेकर पंक्तिबद्ध खड़े रहने से… बेटी बचा पाओंगे? क्या एक – दूसरे पर आरोप लगाने से अपराध कम हो जाएंगे? अनगिनत प्रश्न सामने खड़े है। इंसान मूक बधिर क्यू हो गया है। हे! मनुष्य तू क्या से…. क्या हो गया है। इतना स्वार्थी जिसका आंकलन करना नामुमकिन है। जिस कोख में पला – बढ़ा… जिस कोख ने तुम्हारी पल – पल रक्षा की… आज तू उसका ही बदला ले रहा है। हे! मनुष्य तेरा अंत निश्चित है फिर भी तुझे डर नहीं। थोड़ा संभल जहां वक्त पे…. अन्यथा बह जाएंगा नदी की धार में।…. दीवारें बोल उठी… चीख उठी…. पुकार रही है… बेटी बचाओं, बेटी बचाओं।.

*फर्क’… इंसान और पशु में कितना फर्क है*….

यह ख़ुद इंसान ने साबित कर दिया है….ऎसा तो कभी इंसान के बारे में पशु ने सोचा तक भी नहीं था। उदाहरण देख ही लीजिए……. एक बेजुबान जीव, तेज गर्मी के मौसम में सड़क के किनारे पर मृत अवस्था में पड़ा हुआ था। धरा रक्त से रंगीन हो गई थी, लग रहा था किसी ने टक्कर मार गिरा दिया है। पास से होकर दुनिया के रईस लोगो की बड़ी गाड़ियां गुजर रही है, किसी का ध्यान उस मृत बॉडी की तरफ नहीं गया क्योकि वह बॉडी जब जिंदा थी तब बोल नहीं सकी..और…… न दुनिया छोड़ देने के बाद… उसके कोई परिवार वाले है जो उसकी पैरवी कर सके…. जहां है वही है… सुरज भी अपनी किरणो को समेटे हुए शाम की आंचल में छिप गया। धीरे – धीरे… धरा पर लालीमा चाहने वाली….सड़क के आँसू बह रहे थे। बार बार उस पशु को देखते हुए…क्या यह मेरी ही कोख में समा गया……..अगर उस पशु की जगह कोई इंसान होता तो… न.. जाने अब तक उस हाइवे पर.. भीड़ जमा हो गई होती।   न जाने कितने बड़े बड़े बोलने वाले … चिल्लाते हुए नजर आते… कितनी जांच एजेंसियों ने हाइवे को घेर लिया होता… पता नहीं कितने फैसले लिए होते.. पर इस जीव के कोई सामने तक नहीं देख रहा है। रोजाना ऎसे पशु मौत के घाट उतार दिया दिए जाते हैं सड़को पर.. फिर उनकी कोई देखभाल तो दूर सामने तक नहीं देख पाते हैं। ….इंसान रंगीन रंगो में रंगा हुआ पास से गुजर रहा है.l  क्या मनुष्य और जानवर में इतना बड़ा फर्क… जबकि जानवर तो मनुष्य के किसी न किसी रूप में जरूर सहयोग दिया है। जितने पशु मनुष्यों के उपयोगी है उतने तो इंसान भी आज पशुओं की देखभाल नहीं कर रहे हैं। वर्तमान स्थिति में देखा जाए सड़को के इर्दगिर्द व चौराहे के मार्ग पर बहुत सारे बेजुबान जीव विचरण  करते हुए नजर आते हैं। पर उनकी तरफ देखने वाला कोई नहीं है। केवल बड़ी बड़ी बाते करने के लिए सोशल नेटवर्किंग पर व्याख्यान देते नजर आते हैं। वास्तविक धरातल पर मनुष्य आज जीव जंतुओं के लिए समय नहीं दे रहा है। मनुष्य अपने स्वार्थ की पूर्ति करने में लगा हुआ है। हें! प्राणी….. समय रहते तुम्हें बदलना होगा…. पशु को अपना परिवार मानना होगा…. उसका जीवन भर साथ देना होगा…. तभी तुम्हारा जीवन सार्थक होगा…

*खुद के विकास से – पेड़ो का कत्ल*….क्या यह भी हैवानियत से कम है…. कुछ वक्त पहले एक रास्ते से गुजरने दौरान दौड पड़ी नजर कटे हुए वृक्षों पर……. और कुछ पल सोचने को मजबूर कर दिया……. पेड़ है, तो यही जाना कि वह रहेगा नहीं……. सुनने में भले ही अजीब लगे… पर यह हकीकत है…. जो निस्वार्थ मनुष्य के जीवन को जिंदा बनाए रख रहे हैं…निःशुल्क ऑक्सिजन उपलब्‍ध करा रहे हैं… जहरीली गैसों को ग्रहण कर रहे हैं… फिर भी आज वही मनुष्य अपने खुद के विकास के लिए…खुद के जीवन के लिए उन पेड़ो का जीवन समाप्‍त कर रहे हैं…. क्या दोष उन पेड़ो का…. जो अपनी युवा अवस्था में ही जिंदगी खो रहे हैं। उन्हें न पता था कि इस जगह जन्म लेने से अपनी जिंदगी युवा अवस्था में ही चली जाएंगी।….. जब किसी मनुष्य की दुर्घटना होती है तो पता नहीं कितना बवाल खड़ा कर देता…..विभिन्न प्रकार की जांच की मांग कर देता है…. न जाने कितने तरीको का इस्तेमाल कर लेता है…. पर आज इन बेजुबान पेड़ो पर जब तीव्र गति से जे सी बी दौड पड़ती है…. एक पल में जिंदगी समाप्‍त कर दी जाती है…. मनुष्य देख रहे यह सब… फिर वह कुछ नहीं कर पाता… पेड़ बेचारे निःशब्द है… एक तरफा पेड़ लगा रहे हैं… दूसरी तरफ युवा पेड़ो की जिंदगी दाँव पर लगी है..

  *आओ मिलकर हैवानियत का संधि विच्छेद कर एक अच्छा प्रण ले* आओ इस धरा पर जहर रूपी फैल रहा शब्द हैवानियत का संधि विच्छेद कर उसमे से *हैवा* को अलग कर देते हैं। और अपने आसपास के वातावरण में अच्छी *नियत* को प्रकाशमान करे। ताकि भविष्य के लिए अच्छी नियत वाले मनुष्य के बीच रहने का सौभाग्य मिले। हें! प्राणी मनुष्य जीवन बड़ा अनमोल है, इस अनमोल रत्न को अनमोल ही रहने दें।.

 

©  कुमार जितेन्द्र

साईं निवास – मोकलसर, तहसील – सिवाना, जिला – बाड़मेर (राजस्थान)

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