हिन्दी साहित्य ☆ ग़ज़ल – माँ ☆ – सुश्री शुभदा बाजपेई

सुश्री शुभदा बाजपेई

(सुश्री शुभदा बाजपेई जी  हिंदी साहित्य  की गीत ,गज़ल, मुक्तक,छन्द,दोहे विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं/ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती  रहती हैं। सुश्री शुभदा जी कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं एवं आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर  कई प्रस्तुतियां। आज प्रस्तुत है आपकी  एक  बेहतरीन ग़ज़ल  “माँ ”. )

☆  ग़ज़ल – माँ  ☆

 

आज दौलत के लिए माँ को सताता  क्यों है,

माँ तेरी है तो निगाहें तू चुराता क्यों है।

 

जान देता था कभी मुझपे मेरे लख्ते जिगर,

आज हर बात पे तू माँ को रुलाता क्यों है।

 

मैंने ग़ुरबत में मुसीबत से तुझे पाला है,

ऐ मेरे लाल कहर मुझपे तू ढाता क्यों है।

 

वास्ते तेरे दुआ मैने किया शामो सहर,

इस तरह माँ को बता छोड़ के जाता क्यों है ।

 

तेरी खुशियों में तेरी माँ की दुआएँ शामिल ,

छोड़ के माँ को तू ये आँसू पिलाता क्यों है।

 

“शुभदा” बच्चों से यही कहती है ऐ मेरे लाल,

सारा पर काट कर ममता को उडाता क्यों है।

 

© सुश्री शुभदा बाजपेई

कानपुर, उत्तर प्रदेश