हिन्दी साहित्य – ☆ ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 2 ☆ कविता ☆ कृष्णा के दोहे ☆ – श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है इस  कड़ी में  आपके दोहे  “कृष्णा के दोहे ”।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य  # 2 ☆

☆ कविता – कृष्णा के दोहे  ☆ 

चंचला
द्युति भर चंचल चंचला,  दमक रही पुर जोर।
रिमझिम बरसे घन-घटा, पुरवा दे झकझोर।
पिपीलिका
चलती सदा पिपीलिका, मिलजुल साध कतार।
धैर्य कभी खोती नहीं, मन में साहस धार।।
वागीश
भानु दृष्टि भी कम पड़े, देखें जो वागीश।
अक्षर-अक्षर देव के, रखते पग रज शीश।
राघव
आत्मसात कर लिजिए, राघव के सब त्याग।
वनवासी सिय-राम ने, निर्मित किये प्रयाग।।
कुंचन
घने केश कुंचन किये, चली चंचला गाँव।
कितनीआँखें तक रहीं, लिए सुरुचि सा ठाँव।

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश