हिन्दी साहित्य – ☆ ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 3 ☆ गीत ☆ पर्यावरण को चोट ☆ – श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’
श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’
( श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू, हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है पर्यावरण संरक्षण पर एक गीत “पर्यावरण को चोट”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 3 ☆
☆ कविता/ गीत – पर्यावरण को चोट ☆
ना काटो,ना काटो, ना काटो सारे
धरती की पीर सुनो ओ काटन हारे.
– एक –
पेड़ पौधे दवाइयों के तुमने काटे,
पीपल, अश्वगंधा और बरगद सारे.
नीम ,चंदन,तुलसी के पेड़ काट डारे.
धरती की पीर सुनो,ओ काटन हारे.
– दो –
सुन्दर फूलों की बगिया उजारी
चम्पा, गुलाब, गेंदा, और चमेली
जारुल ,पलास और कमल भी उजारे.
धरती की पीर सुनो,ओ काटन हारे.
– तीन –
बांस, बबूल, शीशम, इमली निबुआ,
अमरुद, आम, केला, तरबूज तेन्दुआ,
पानी न दे पाये, सब मिट गये सारे
धरती की पीर सुनो ओ काटन हारे.
– चार –
काट सारे पेड़ दिये, हवा पानी रोक लिये
कहाँ रूके बदरा कहाँ पानी बरसे
उड़ उड़ निकर के विखर गये सारे
धरती की पीर सुनो ओ काटन हारे.
– पाँच –
धरती की बोली समझ लो सारे
पेड़ और पौधे फिर से लगाओ रे
छोटे बड़े सभी लग जाओ सारे.
धरती की पीर सुनो ओ काटन हारे.
© श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि ‘
अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश