हिन्दी साहित्य – ☆ ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 4 ☆ कविता ☆ वतन के सिपाही ☆ – श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’
श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’
( श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू, हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है वतन के सिपाही पर एक कविता / गीत “ वतन के सिपाही ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य # 4 ☆
☆ कविता/ गीत – वतन के सिपाही ☆
वतन के सिपाही फना हो गए हैं.
वो धरणी को शैय्या समझ सो गए हैं.
देती है माँ पुत्र, बेटा व भाई भी
सुहागिन का सिंदूर तक ले गए हैं.
तपे खूब चिंगारी, अंगार सह कर
मिले घाव सरहद पै’ सब सह गए हैं
अपमान, की मौन पीड़ा सही है
बनाकर वो इतिहास खुद खो गए हैं
बिछड़े हैं वे, देशवासी दुखी हैं
गए, आँसुओं से वो मुख धो गए हैं
© श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि ‘
अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश