श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पालना (Cradle)…“।)
अभी अभी # 445 ⇒ पालना (Cradle)… श्री प्रदीप शर्मा
जसोदा हरि पालनैं झुलावै।
हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-जोइ कछु गावै॥
माता यशोदा कहां जानती है, जिस नंद के लाल को वह पालने में झुला रही है, वे संसार को पालने वाले पालनहार और तारनहार साक्षात योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं।
पालने को पलना भी कहा जाता है। मां की गोद से और मां के आंचल से बड़ा दुनिया का कोई पलना नहीं। पालने का एक अर्थ पालन पोषण करना भी होता है। इसी मां का पेट कभी बालक के लिए एक ऐसा पालना होता है, जिसमें वह जीव जन्म के पहले ही, लगातार नौ महीने तक आराम से खाता पीता, और पुष्ट होता रहता है।
पहले मां के पेट में पलना और जन्म के बाद पालने में माता यशोदा की लोरी सुनना। ।
एक मां के लिए उसका बालक किसी कृष्ण से कम नहीं, और हर बालक के लिए उसकी मां ही यशोदा है। हर बच्चा पलने में पलकर ही बड़ा होता है।
आजकल यह काम तो आया और घर की मेड भी कर लेती है। बच्चा झूले में सो रहा है, मां दफ्तर में काम करने गई है।
पाल पोसकर जब हमें बड़ा किया जाता है, तो हम खुद ही बगीचे में झूला झूलने लग जाते हैं। पालने का सुख हमें झूले में मिलने लगता है। पालने में पले बच्चे को आप झूले से कैसे दूर रख सकते हैं। गुजरात में आपको हर घर में एक झूला मिलेगा, जिसमें बड़े बूढ़ सभी, अवकाश के पलों में, पालने का सुख लेते नजर आएंगे। ।
एक मां अपने बच्चे को कितने कष्ट से पालती है। मजदूरों के बच्चे भी पालने में झूलते हैं। उनकी माएं, मजदूरी करते करते, किसी पेड़ की छांव में, अपनी साड़ी से ही झूला तैयार कर, उसमें बच्चे को सुला, काम करती रहती हैं। मां वसुन्धरा इतनी दयावान और कृपालु है कि किसी मां को मातृत्व सुख से वंचित नहीं रखती, और हर बालक के जीवन में मां का प्यार और आंचल की छांव सुरक्षित है।
हरी भरी हमारी वसुंधरा क्या किसी मां से कम है। जगत माता और परम पिता ही सारी सृष्टि में व्याप्त हैं। कोई बालक अनाथ नहीं। सर पर आशा का आसमान, उसकी हरी भरी गोद और मंद मंद समीर क्या किसी पालने से कम है। उसका पालना बहुत बड़ा है और उसकी गोद में सभी ऋषि, मुनि, सन्यासी और गृहस्थ दिन रात खेलते रहते हैं ;
ओ पालनहारे, निर्गुण और न्यारे
तुम्हरे बिन हमरा कौनो नाहीं।
हमरी उलझन सुलझाओ भगवन
तुम्हरे बिन हमरा कौनो नाहीं। ।
© श्री प्रदीप शर्मा
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