डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
आज मैं आपको एक अत्यन्त साधारण एवं मिलनसार व्यक्तित्व के धनी मेरे अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सुरेश कुशवाहा जी से उनके ही शब्दों के माध्यम से मिलवाना चाहता हूँ।
उनका परिचय या आत्मकथ्य उनके ही शब्दों मेँ –
अन्तस में जीवन के अनसुलझे,
सवाल कुछ पड़े हुये हैं
बाहर निकल न पाये,
सहज भाव के ताले जड़े हुये हैं।
फिर भी इधर-उधर से
कुछ अक्षर बाहर आ जाते हैं,
कविताओं में परिवर्तित,
हम जंग स्वयं से लड़े हुये हैं।
अनुभव चिन्तन मनन,
रोजमर्रा की आपाधापी में
अक्षर बन जाते विचार,
मन की इस खाली कॉपी में,
कई विसंगत बातें,
आसपास धुंधुवाती रहती है,
तेल दीये का बन जलते,
संग जलने वाली बाती में।
अ आ ई से क ख ग तक,
बस इतना है ज्ञान मुझे
कवि होने का मन में आया
नहीं कभी अभिमान मुझे
मैं जग में हूं जग मुझमें है,
मुझमें कई समस्याएं हैं,
इन्हीं समस्याओं पर लिखना,
इतना सा है भान मुझे।
अगर आपको लगे,
अरे! ये तो मेरे मन की बातें हैं
या फिर पढ़कर अच्छे बुरे
विचार ह्रदय में जो आते हैं,
हो निष्पक्ष सलाह आपकी,
भेजें मेरे पथ दर्शक बन
आगे भी लिख सकूं,
कीमती ये ही मुझको सौगातें हैं।
आपकी प्रिय विधा है – साहित्य।
डॉ सुरेश जी के शब्दों मेँ –
जैसा दिखा वैसा लिखा, कहीं मीठा कहीं तीखा।
उपर्युक्त पंक्ति के अनुसार ही मेरा प्रयास रहा है कि कविता एवं लघुकथा विधाओं में अपने विचार तथा मनोभावों को प्रगट कर सकूं। साहित्य के प्रति बचपन से ही अभिरूचि रही, घर में पठन-पाठन का अनुकूल वातावरण था। बचपन में ही पिताजी के माध्यम से गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित अनेक किताबों व ग्रंथों को पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ। इस प्रकार साहित्य के प्रति लगाव बढ़ता गया। वर्ष 1969 से छिटपुट लेखन तुकबंदियों के रूप में प्रारंभ हुआ, प्रोत्साहन के फलस्वरूप लेखन के प्रति गंभीरता बढ़ती गई और मुख्य झुकाव छांदस कविता के प्रति हुआ। वर्ष 1971 से भोपाल में नौकरी के दौरान कवि-गोष्ठियों के माध्यम से आकाशवाणी भोपाल से कविताओं का प्रसारण एवं स्थानीय अखबारों में प्रकाशन” का सिलसिला प्रारंभ हुआ, जो आज तक अनवरत रूप से जारी है।
मुख्य रूप से साहित्य में काव्य विधा में प्रमुख रूप से गीत व लघुकथा के माध्यम से वैचारिक अभिव्यक्ति सृजित होती रही। मुझे लगता है कि जहां कविता के माध्यम से रूपक व अलंकारों के द्वारा रचनाकार अपनी श्रेष्ठ अभिव्यक्ति देता है वहीं लघुकथा के द्वारा कम शब्दों में बड़ी बात सरलता से कह दी जाती है। यूं तो साहित्य की सभी विधाओं का व्यापक क्षेत्र है तथा सभी का अपना महत्व है, फिर भी मेरी प्रिय विधाओं में गीत काव्य एवं लघुकथा सम्मिलित है।
विशेष – आपकी एक लघुकथा “रात का चौकीदार” महाराष्ट्र शासन के शैक्षणिक पाठ्यक्रम कक्षा 9 की “हिंदी लोक भारती” पाठ्यपुस्तक में सम्मिलित है।
यह परिचय डॉ सुरेश ‘तन्मय’ जी की मात्र साहित्यिक आत्माभिव्यक्ति है। विस्तृत परिचय हमारे Authors लिंक पर उपलब्ध है।