ई-अभिव्यक्ति: संवाद-15 – हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–15   

मैं ईश्वर का अत्यंत आभारी हूँ जिन्होने मुझे e-abhivyakti के माध्यम कई वरिष्ठ, समवयस्क एवं नवोदित साहित्यकार मित्रों से जोड़ दिया है। कई मित्रों से व्यक्तिगत तौर से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अधिकतर  मित्रों से फोन पर बात हुई और कई मित्रों से ईमेल पर।

जीवन भी अजीब पहेली है, अजीब खेल खेलता है। वह हमें जीवन में कई मित्रों से मिलाता है। कई मित्र जिनके नाम से हम परिचित होते हैं किन्तु कभी मिल नहीं पाते। कई मित्र जीवन के किसी भी मोड पर मिल जाते हैं। कई तो अंजाने ही मिल जाते हैं जिसकी हमने कभी कल्पना ही नहीं की थी।  कई मित्र तो हमारे जीवन से इतने जुड़ जाते हैं कि हम यह जान ही नहीं पाते कि वे कब मित्र से परिवार के सदस्य बन गए। कई मित्र तो किसी गलतफहमी का शिकार होकर रूठ भी जाते हैं। कई बहकावे में भी आ जाते हैं। फिर शक का तो कोई इलाज ही नहीं होता।कुछ मित्र चालाकी से अपना काम निकाल कर अपनी राह चल देते हैं। कई मित्र तो ऐसे भी होते हैं जिनसे हम जीवन में कभी भी नहीं मिले किन्तु, वे मित्र धर्म निभाना नहीं भूलते। कई मित्रों की संवेदना देखते ही बनती है। फिर संवेदनशील मित्र ही मित्र की भावना को परख लेता है। अधिकतर साहित्यकार मित्र संवेदनशील हैं अन्यथा वे अपनी कविता, कहानी, आलेखों में अनदेखे स्वप्नों को साहित्यिक स्वरूप नहीं दे पाते।

आज कविराज विजय यशवंत सातपुते जी की मराठी कविता *उन्हाळी सुट्टी* ने तो अनायास ही बचपन के कई मित्रों की याद दिला दी जिनके साथ गर्मियों छुट्टियों बिताया करते थे।

उनकी निम्न पंक्तियाँ अनायास ही हमारा गुजरा बचपन याद दिला देता है ।

आला उन्हाळा, घरी बसा रे , दटावती सारे
बैठे खेळ ते बुद्धीबळाचे ,देऊ गेमला सुट्टी.
अशी ऊन्हाळी सुट्टी आमच्या होती बालपणात
सोडून गेले  शाळू सोबती, आता नाही बट्टी. . . !

इस संदर्भ में मुझे अपनी कविता की दो पंक्तियाँ याद आ रही हैं:

 

इक दिन उस वीरान कस्बे में काफी कोशिश की तलाशने जिंदगी

खो गए कई दोस्त जिंदगी की दौड़ में जो दुबारा ना मिले मुझको। 

आज बस इतना ही

हेमन्त बावनकर

31 मार्च 2019

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – *उन्हाळी सुट्टी* – कविराज विजय यशवंत सातपुते

कविराज विजय यशवंत सातपुते

*उन्हाळी सुट्टी*

(प्रस्तुत है  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  द्वारा  रचित e-abhivyakti में प्रथम बाल गीत *उन्हाळी सुट्टी* प्रस्तुत है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपको भी अपनी गर्मियों की छुट्टी याद आ ही जाएगी। इस बालगीत के लिए हम कविराज विजय यशवंत सातपुते जी के हृदय से आभारी हैं।) 

झाली परीक्षा आता आहे अभ्यासाशी कट्टी .
हवे तसे रे वागू आता सुरू  उन्हाळी सुट्टी.
गावी जाऊ मामाच्या नी खेळू मजेचे खेळ
आट्यापाट्या, सूरपारंब्या ,जमेल अमुची गट्टी.
उशीरा  उठणे, आणि पोहणे,पाणी कापत जाणे .
दंगा मस्ती, हाणामारी,  अन् क्षणाक्षणाला कट्टी .
आमराईचा आंबा म्हणजे राजेशाही खाणे
कच्ची कैरी भेळेमधली, पावभाजीला सुट्टी.
पन्हे कैरीचे, कोकम सरबत, कधी ताक नी लस्सी
कोकणचा तो रसाळ मेवा,  कोल्ड्रिंकशी कट्टी.
आला उन्हाळा, घरी बसा रे , दटावती सारे
बैठे खेळ ते बुद्धीबळाचे ,देऊ गेमला सुट्टी.
अशी ऊन्हाळी सुट्टी आमच्या होती बालपणात
सोडून गेले  शाळू सोबती, आता नाही बट्टी. . . !

© विजय यशवंत सातपुते, यशश्री पुणे. 

मोबाईल  9371319798

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हिन्दी साहित्य – कविता – “निश्चित हो मतदान” – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

निश्चित हो मतदान

(प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी द्वारा  रचित  “लोकतन्त्र के पर्व – मतदान दिवस” पर रचित  प्रत्येक नागरिक को जागरूक करती कविता  ‘निश्चित हो मतदान’।)

 

जो कुछ जनहित कर सके, उसकी कर पहचान

मतदाता को चाहिये, निश्चित हो मतदान ।

 

अगर है देश प्यारा तो, सुनो मत डालने वालों

सही प्रतिनिधि को चुनने के लिये ही अपना मत डालो।

 

सही व्यक्ति के गुण समझ, कर पूरी पहचान

मतदाताओ तुम करो, सार्थक निज मतदान।

 

सोच समझ कर, सही का करके इत्मिनान

भले आदमी के लिये, करो सदा मतदान।

 

जो अपने कर्तव्य  का, रखता पूरा ध्यान

मतदाता को चाहिये, करे उसे मतदान।

 

लोकतंत्र की व्यवस्था में, है मतदान प्रधान

चुनें उसे जो योग्य हो, समझदार इंसान।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

 

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (26) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

(सांख्ययोग का विषय)

 

अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्यसे मृतम्‌।

तथापि त्वं महाबाहो नैवं शोचितुमर्हसि ।।26।।

फिर फिर इसको जन्मता ओै मरता भी जान

तुम्हीं कहो हे वीर है दुख का कोई ध्यान।।26।।

      

भावार्थ :   किन्तु यदि तू इस आत्मा को सदा जन्मने वाला तथा सदा मरने वाला मानता हो, तो भी हे महाबाहो! तू इस प्रकार शोक करने योग्य नहीं है ।।26।।

 

But, even  if  thou  thinkest  of  It  as  being  constantly  born  and  dying,  even  then,  O mighty-armed, thou shouldst not grieve! ।।26।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल –Anapana Meditation: Mindfulness of Breathing – Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Anapana Meditation: Mindfulness of Breathing

Anapana meditation is simple, pure, and pristine.

“Prana” means breath. “Ana(prana)” is the breath that comes in and “apana(prana)” is the breath that goes out. Both put together and shortened for convenient usage make “anapana”. Anapanasati is concentration on breath coming in and going out.

It is believed that mindfulness of breathing, cultivated and regularly practiced, is of great fruit and great benefit. Two thousand and five hundred years ago, Buddha outlined the method in Anapanasati Sutta – the discourse on mindfulness of breathing.

He begins elucidating the method, “A monk, gone to the forest or to the root of a tree or to an empty place, sits down, having folded his legs crosswise, set his body erect, established mindfulness in front of him, ever mindful he breathes in, mindful he breathes out.”

The focus is on breath alone. The meditator observes his breath dispassionately. There is no attempt to modulate breathing. Just observation.

While breathing in a long breath, he knows, “I breathe in a long breath”; breathing out a long breath, he knows, “I breathe out a long breath.” Breathing in a short breath, he knows, “I breathe in a short breath”; while breathing out a short breath, he knows, “I breathe out a short breath.” Experiencing the body, he breathes in and out. Calming the bodily function of breathing, he breathes in and out.

The meditation takes him on an inner journey encompassing contemplations of the body, feelings, the mind, and mind-objects. During each step, he continues to observe his breath.

Experiencing rapture, or happiness, or the mental functions; he breathes in and out. Calming the mental functions, he breathes in and out. Experiencing, or gladdening, or concentrating, or liberating the mind; he breathes in and out. Contemplating impermanence, or dispassion, or cessation, or relinquishment; he breathes in and out.

The Blessed One recommends, “This concentration through mindfulness of breathing, when developed and practiced much, is both peaceful and sublime, it is an unadulterated blissful abiding, and it banishes at once and stills evil unprofitable thoughts as soon as they arise.”

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore
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ई-अभिव्यक्ति: संवाद-14 – हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति:  संवाद–14  

साहित्य में नित नए प्रयोग करने के लिए हम कृतसंकल्प हैं।

विगत जबलपुर प्रवास के दौरान संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध वरिष्ठ व्यंग्यकार मित्र श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी से चर्चा के दौरान पता चला कि उन्होने  साहित्य में  एक  प्रयोग करने का प्रयास किया जो कि वास्तव में सफल सिद्ध हुआ।

हमें सम्पूर्ण राष्ट्र से विभिन्न वरिष्ठ लेखकों से साहित्य के विभिन्न स्वरूपों एवं विभिन्न विधाओं में 30 से अधिक उत्तर प्राप्त हुए हैं जो अपने आप में मिसाल हैं। जिन्हें हम क्रमानुसार आपसे साझा कर रहे हैं।

इस संदर्भ में आप ई-अभिव्यक्ति संवाद-2 का अवलोकन करें। 

हम लोग बड़े सौभाग्यशाली हैं की हमारी पीढ़ी के कई साहित्यकारों का  हरीशंकर परसाईं जी से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष सरोकार रहा है। उनमें मेरे एक वरिष्ठ साहित्यकार मित्र  श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी भी हैं।  हाल ही में मुझे उनका एक संदेश मिला जो निश्चित ही मेरे मित्रों को भी मिला होगा यह संदेश मैं आपसे साझा करना चाहता हूँ ताकि आप भी उस खेल में सहभागी बन सकें।

इस खेल में आप अपना उत्तर हिन्दी, मराठी या अङ्ग्रेज़ी में प्रेषित कर सकते हैं।  

महोदय जी,

कृपया इस सवाल का जवाब कम से कम 100 शब्दों में और अधिक से अधिक 800 शब्दों में देने का कष्ट करें 

प्रश्न –  आज के संदर्भ में लेखक क्या समाज के घोड़े की आँख है या लगाम?

उत्तर –  (उत्तर के साथ अपना चित्र भी भेजें) 

 

 (उत्तर आप  [email protected] पर प्रेषित कर सकते हैं।)

फिर देर किस बात की उठाइये अपनी कलम और दौड़ा दीजिये दिमाग के घोड़े, समाज के घोड़े के लिए।

 

आज बस इतना ही

 

हेमन्त बावनकर

30 मार्च 2019

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सफरनामा- * मेरी यात्रा * – श्री राजेन्द्र कुमार भंडारी “राज” 

श्री राजेन्द्र कुमार भंडारी “राज” 

 * मेरी यात्रा *

(श्री राजेन्द्र कुमार भण्डारी “राज” जी  का e-abhivyakti में स्वागत है। श्री राजेन्द्र कुमार जी बैंक में अधिकारी हैं एवं इनकी लेखन में विशेष रुचि है। आपकी प्रकाशित पुस्तक “दिल की बात (गजल संग्रह) का विशिष्ट स्थान है। यह यात्रा  संस्मरण  “मेरी यात्रा” में  श्री राजेन्द्र कुमार भण्डारी “राज” जी ने  गुजरात, महाराष्ट्र एवं गोवा के विशिष्ट स्थानों की  यात्रा का सजीव चित्रण किया है। ) 

मैंने अपनी यात्रा द्वारका दिल्ली से 15 अक्तूबर 2018 को पौने तीन बजे दिल्ली शताब्दी एक्सप्रेस ट्रेन से प्रारम्भ की जो अहमदाबाद तक थी। मैं अहमदाबाद सुबह नौ  बजकर पचपन मिनट पर पहुँचा। इसके बाद जबलपुर से सोमनाथ जाने वाली ट्रेन पकड़ी, क्योंकि सबसे पहले मुझे सोमनाथ बाबा के दर्शानाथ हेतु सोमनाथ जाना था। जबलपुर-सोमनाथ एक्स्प्रेस रूक-रुक कर चल रही थी, क्योंकि यह ट्रेन अपने समय से पहले ही दो घंटे विलंब से थी और अहमदाबाद से यह ग्यारह बजकर बाईस मिनट पर चली थी। अतः यह हर गाड़ी को स्टेशन से पहले रूक कर उसे पहले जाने देती थी अपनी देरी से आने का परिणाम जो भुगतना था। इस रास्ते में बहुत अच्छे-अच्छे स्टेशन जैसे वीरपुर, सूरेन्दरनगर, राजकोट, भक्तिनगर, नवागड़, जेतलसर, जूनागड़,  केशोद, मालिना, हाटीना, चौरवाड रोड़ और वैरावल आदि-आदि आए। वैरावल में नाव यानि कि नौका ही नौका थे, जैसे कि  वैरावल  वैरावल ना होकर नौकागढ़ हो। मौसम बहुत सुहाना था। मस्त-मस्त हवा चल रही थी। ठंड का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं था। दिन में धूप भी मजेदार थी। कपास, अरण्ड, मिर्ची, जीरा और सूरजमुखी के खेत चमचमा रहे थे। वह दृश्य देखते ही बनता था। जैसै-जैसे सूरज ढ़ल रहा था मौसम की मस्ती बढ़ती जा रही थी। मौसम अपने पूरे यौवन पर था। अब शाम हो चली थी। दिन ढ़ल गया था। रात होने लगी थी। पक्षियों की तरह मैं भी अपने गन्तव्य की ओर बढ़ रहा था। जूनागढ़ के बाद गाडी़ ने अपनी रफ्तार बढ़ा दी। मानों दिन की सारी कमी अब पूरी करनी हो। अन्ततः मैं सोमनाथ पहुँच ही गया, रात के आठ बजकर इक्यावन मिनट पर।

चलने को यहाँ के लोग “हालो” बोलते हैं। हालो भई हालो मतलब “चलो भाई चलो” और “बैसो” मतलब “बैठो”,  त्रण मतलब “तीन”। जमी लिधौ मतलब “खाना खा लिया” आदि-आदि। भाषा बडी मधुर हैं लोग शांत व सुशील स्वभाव के हैं अर्थात जैसी भाषा वैसै  ही लोग,  मानस मतलब “लोग”। शुद्ध भाषा का अनुसरण ये लोग बखूबी करते हैं।  पर एक बात यहाँ ख़ास हैं रात को सब लोग अपने-अपने मुख्यः द्वार के बाहर बैठ जाते हैं जैसे कोई पंचायत कर रहे हों। घर की सारी बत्तियां बन्द करके, केवल एक मुख्य कमरे को छोडकर, इससे बिजली की बचत तो होती ही हैं पर साथ में पैसे की भी। अब मैं सोमनाथ पहुँच गया। सोमनाथ रेलवे स्टेशन से मैनें आटो-रिक्शा लिया और आशापुरा होटल नौ  बजे पहुँच गया। यह होटल सोमनाथ मंदिर के बिल्कुल पास में ही था। सुबह 17 अक्तूबर 2018 को 7 बजे सोमनाथ बाबा के दर्शन किए और समुद्र को प्रणाम किया उसके बाद  त्रिवेणी के भालसा मंदिर (यहाँ श्री कृष्ण जी के पैर में तीर लगा था।  जब श्री कृष्ण जी यहाँ विश्राम कर रहे थे तब एक भील ने उनके पग में तीर मारा था) के दर्शन किऐ।

फिर कार से ग्यारह  बजकर पाँच मिनट पर दीव के लिए निकल पड़ा। रास्ते में बड़ी गर्मी थी, परंतु समुद्र होने के कारण इसका  तनिक भी पता न चला। दीव के रास्ते में सुंदरपुरम, गौरखमडी, प्रांचि, मोरडिया, कोडियार केसरिया होते हुऐ दीव शहर सवा बजे पहुँचा। रास्ते में नारियल के पेड़ों  की भरमार थी। जौं, गन्ना और मूंगफली, बाजरा की खेती थी। भेड बकरियाँ रास्ते की शान थी। जहाँ देखो वहाँ जालाराम का होटल या ढाबा मिल जाता था। यहाँ धर्मशालायेँ भी बहुत हैं। लोग मावा व गुटका बहुत खाते हैं तथा साथ ही सोडा भी बहुत पीते हैं। मैं पहले दीव फोर्ट, दीव संग्रहालय, चक्रवर्ती बीच, आई एन एस कुकरी, गंगेशवर मंदिर, फिर नागवा बीच गया। यहाँ पानी कौटा जेल देखा जो समुंदर के बीचो बीच में है। मैं यहाँ बीच से पाँच  बजकर बीस मिनट पर चला। ताड़़ी व नारियल के पेडों की भरमार को देखते हुऐ चैक पोस्ट से छः बजे निकला और सोमनाथ, आठ बजकर अड़तालीस मिन्ट पर पहुँचा गया।  वहाँ से सवा दस बजे सोमनाथ से औखाँ के लिए ट्रैन पकडी जो सोमनाथ से दस बजकर उन्नीस मिनट पर औखाँ के लिए चल पडी।

रास्ते में वेरावल, कसौद,  जूनागढ़, राजकोट, जामनगर, खमबाडिया, भोगाथ, भाटिया से होते हुऐ  द्वारका से सात  बजकर पचपन मिनट पर पहुँचा। खाने के पैकेट को यहाँ पार्सल बोलते है द्वारका में जुलेलाल गेस्ट में ठहरा। मगर वहाँ से 18 अक्तूबर 2018 दोपहर के दिन बेट द्वारका के लिए निकला। सबसे पहले रुक्मणी माता  मंदिर के दर्शन किए। उसके बाद 16 किलेमीटर दूर  नागेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन किए। इसके बाद 5 किलोमीटर दूरी पर गोपी तलाब था वहाँ  गोपी तलाब के दर्शन किए। अंत में चार बजकर बीस  मिनट पर औखाँ यानि कि बेट द्वारका गया। वहाँ पाँच बजकर बीस मिनट पर द्वारिकाधीश श्री कृष्ण जी के दर्शन करने के बाद बेट द्वारिका से छः बजकर चालीस मिनट  पर द्वारिका के लिए वापस हो लिया और सात  बजकर पचपन मिनट पर द्वारिका पहुचँ गया।

अगले सफ़र के लिए मैंने अपने तरक्क़ी के पहले पडाव़ व मेरी मनचाही जगह पौरबन्दर   को चुना। मैंने जुलेलाल होटल को खाली किया। होटल ठीक नौ बजे छोड़ कर नौ बजकर दो मिनट पर पोरबन्दर की बस पकडी़ और चल पडा़ अपनी  मनपसन्द राह यानि मंजिल की ओर। जय श्रीकृष्णा। जय सुदामाजी की।

पोरबन्दर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी और श्री कृष्णजी के सखा श्री सुदामाजी की जन्म स्थली हैं। रास्ते में, भोगात, लामबा, हरसद, वीसावडा, पालकडा, रातडी आवीयो नतलब आया। यहाँ हऱसद माताजी का चर्चित मंदिर हैं। कुछ शब्द जैसे बे वी गयो, आ वी गयो, चालो, सू नाम छै, क्या जाओ छौ, तमारो देश मतलब गावँ के गुजराती भाषा के शब्द बडे़ मधुर लगते थे। पोरबन्दर में कीर्ती मंदिर यानी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के दर्शन किए बाद में सुदामा  मंदिर के दर्शन, राऩावाव में जामुवंत गुफा के जो पोरबन्दर से 12 किलोनीटर की दूरी पर है। (जामवंत की गुफा की मिट्टी में सोना पाया जाता हैं ऐसा यहाँ के लोग कहते हैं, परंतु यह मिट्टी घर तक ले जाते जाते गायब हो जाती हैं केवल कुछ नसीब वालों के घर तक पहुंचती हैं।)

माधोपुर में माँ रानी रुक्मणी के मंदिर के दर्शन किये। माधोपुर पोरबन्दर से 40 किलोमीटर दूर है। यह माँ रुक्मणी का जन्म स्थल हैं जहाँ से भगवान श्री कृष्ण रुक्मणी को भगा कर ले गये थे। इसके बाद चौपाटी गया तथा शाम को राम मंदिर शांतिपनी मंदिर गया वहाँ लक्ष्मी-नारायण  के दर्शन किए। और रात को सूरत के लिये  ट्रेन पकड़ी जो पोरबन्दर से नौ बजकर सात  मिनट पर मुंबई के लिये रवाना हुई। पोरबन्दर की छवि निराली है। पुरानी यादें ताजा हो गईं। कुछ पुराने मित्र मिल गये। बडा़ मजा आया। अब सूरत से मुझे शिरडी जाना था जो नासिक से कुछ आगे है। रास्ते में बड़े-बडे़ स्टेशन जैसे जामनगर, राजकोट, सुरेन्द्रनगर, नडियाड, कणजरी बोरीवली, आनन्द, वसाद, बडोदरा (बरोडा), विश्वामित्री, ईटोला, मियागाम, करजन, भरूच, अंकलेश्वर, पानौली, कौसम्मभा, कीम, सायण, गोठनगाम आदि-आदि  फिर सूरत आया। यहाँ की भाषा वाह क्या कहने- आ बाजू मतलब “इस तरफ”। पग मतलब “पैर”, हम सपिड बधारी मतलब “रफ्तार तेज कर ली”, हम जौईयो का मतलब “चाहना”, जलसा करो मतलब “आनंद हो”, तपास मतलब “ढूँढना”, बांधौ नथी मतलब “कोई ऐतराज नहीं” आदि-आदि।

भरूच में सिंगदाना (मूंगफली) बहुत मिलता है। वैसे समस्त गुजरात में मूंगफली, अरणड, बाजरा, मिर्च, सौप, सूरजमुखी, जौ, नारियल, कैसर आम, आलू, अदरक, लहसुन, सिरडी (ईख मतलब गन्ना), चना, मुँग दाल, अरहर दाल आदि-आदि बहुत होता हैं। यहाँ ज़मीन में आयल (तेल) बहुत निकलता है। सूरत में डायमंड यानी हीरा और साडि्यों का काम ज्यादा होता हैं। राजकोट में मशीनरी का जिस मशीन का पार्ट कहीं नहीं मिलता वह यहाँ जरूर मिल जाएगा। साढ़े बारह बजे सूरत पहुँचा और सूरत बस अड्डे से नासिक के लिए बस पकड़ी जो डेढ़ बजे नासिक के लिए रवाना हुई।  नवसार, धर्मपुरा और पेठा से होती हुए नासिक पौने नौ बजे पहुँची। धर्मपुरा में नाश्ते के लिए एक होटल पर रुकी जो बहुत ही बेकार था केवल भजिया चाय और कोल्ड ड्रिंक के अलावा यहाँ कुछ नहीं था। रास्ता भी काफी खराब था।

नासिक से शिर्डी के लिए बस ली जो नौ बजे शिर्डी के लिए रवाना हुई। नासिक बहुत खूबसूरत शहर है। शिर्डी ग्यारह बजकर बीस मिनट पर पहुँच गया। और होटल ग्यारह बजकर चालीस मिनट पर पहुँच गया। सुबह बाबा साईनाथ के दर्शन किए। रविवार की वजह से मंदिर में बहुत भीड़ थी। यहाँ पहले दर्शन पास लेना पडता हैं फिर दर्शन की लाईन में लगना पडता है। लाईन से ही बाबा के दर्शन होते हैं। हर अच्छी और पक्की व्यवस्था है। बड़े आराम से दर्शन दिए बाबा साईनाथ जी महाराज ने। दिल और मन दोनों गदगद हो गया। थोडा बाजार घूमा और फिर खाना खाकरवापस होटल आ गया। और थोडा सा आराम किया। उसके बाद ट्रैवल एजेंसी से गोवा जाने वाली बस की टिकट कराई जो चार बजे की थी। होटल से सवा तीन बजे निकला और बस पकडी। बस ठीक चार बजे गोवा के लिए चल पड़ी। शिर्डी छोडने का दिल तो नहीं कर रहा था, परन्तु आध्यात्मिकता में ज्यादा न पड़ कर बाकी कार्य भी पूरे करने थे क्योंकि काफी दिनों से मेरी इच्छा गोवा देखने की थी, तो मैने सोचा यह अच्छा अवसर हैं क्योंकि की गोवा यहाँ से नजदीक भी  था अत: इस अवसर का लाभ लिया जाए इसलिए मैने आनन-फानन में चार  बजे गोवा की टिकट कराई और चल दिया गोवा   बच्चों को बोला तो वे भी बड़े खुश हुए और उन्होंने गोवा से दिल्ली वापसी की 24 तारीख की चार बजकर पैंतीस मिनट की एयर एशिया की टिकट की बुकिंग करा दी ।

अब मै सुबह पाँच बजे गोवा पहुँच गया था। रास्ते में गाडी कोपरगाँव, अहमदनगर टोल पर रुकी। पणजी से होते हुए गोवा सवा दस बजे पहुँच गया। वहाँ से कोलुआ बीच के लिए टैक्सी ली और सीधा जिम्मी कॉटेज पहुँचा। ग्यारह बजे कमरा लिया। थोड़ा आराम किया और एक बजे कोलुआ बीच गया। पूरे दिन मौज मस्ती की। खाना खाया। शाम को मार्केटिंग की। अगले दिन उतर (नौर्थ) गोवा घूमने गया। फिर पणजी आया। यहाँ कैसिनो बहुत हैं  यहाँ जुआ खेलना अलाउड है। यहाँ के लोग जुआ बहुत खेलते हैं।  गोवा में नारियल, काजू बहुत होता है। और यहाँ शराब भी बहुत बनती है। ख़ासकर काजू और नारियल की। मंगलवार 23 अक्तूबर 2018 को बस से नौर्थ गोवा घूमा। सिन्कूरियम डॉलफिन ट्रिप पर गया। सनो पार्क घूमा। रास्ते में रिवर जुआरी और रिवर मांडवी, रॉक बीच आए। 24 अक्तूबर 2018 को दाबोली विमानतल से चार  बजकर पैंतीस  मिनट पर एयर एशिया की फ्लाइट पकड़ी ।  सात बजकर अठारह मिनट पर दिल्ली हवाई अड्डा पहुँच गया और 8 बजकर 40 मिनट पर वापस अपने आशियानें मतलब घर पहुँच गया। आखिर में जमानें की खाक़ छान कर “राज़” वापस अपने द्वार।

© श्री राजेन्द्र कुमार भंडारी “राज”

(श्री राजेन्द्र कुमार भंडारी ” राज” बैंक में अधिकारी है। आपकी लेखन में  विशेष अभिरुचि है। आपकी प्रकाशित पुस्तक “दिल की बात (गजल संग्रह) है।) 

फ्लैट नम्बर-317
प्लैटिनम हाइट्स , सेक्टर- 18 बी
द्वारका , नई दिल्ली-110078
मोबाइल नंबर–9818822263

 

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ☆  आक्रोश  ☆ – डॉ. रवींद्र वेदपाठक

डॉ. रवींद्र वेदपाठक

☆  आक्रोश  ☆

(प्रस्तुत है डॉ रवीन्द्र वेदपाठक जी की एक आक्रोशात्मक अभिव्यक्ति इस मराठी कविता  “आक्रोश” में।) 
आता नकोय मला
ती अश्रुंची किनार
चंडी होवुन आक्रोशाचा
मीच करणार आहे संहार….!! १ !!
अशोकवनातील सीता जरी
संयमाने बांधली होती
आक्रोशाचा बांध फुटताच
सारी धरती फाटली होती…..!! २ !!
मोहमयी सत्तेच्या गांधारीला
आंधळेपणाने जरी बांधले होते
द्रौपदीचे केस सुध्दा
दुशा:सनाचे रक्त प्यायले होते…..!! ३ !!
दिसत असली शांती तरी
हि युध्दाची नांदी समजावी
आमच्या गळणाऱ्या आक्रोशातुन
ज्वालामुखीची ठिणगी भडकावी…..!! ४ !!
आता मी सहन करणार नाही
ते अपमानाचे विखारी घोट
आता मी विझणार नाही
बनुन नुसतेच राखेचे गरम लोट…….!! ५ !!
आता मी फोडणार आहे
ज्वालामुखी माझ्या अंतरातील
ज्यातुन उसळुन येतील
लाव्हा होवुन अश्रु माझ्या डोळ्यातील….!! ६ !!
आता नकोय मला
ती अश्रुंची किनार
चंडी होवुन आक्रोशाचा
मीच करणार आहे संहार….!! १ !!
© डॉ. रवींद्र वेदपाठक
*तळेगाव*
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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (25) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

(सांख्ययोग का विषय)

अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते ।

तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि।।25।।

अविकारी,अव्यक्त है,तथा अचिन्त्य अपार

इससे इसके शोक का नहीं कोई आधार।।25।।

 

भावार्थ :   यह आत्मा अव्यक्त है, यह आत्मा अचिन्त्य है और यह आत्मा विकाररहित कहा जाता है। इससे हे अर्जुन! इस आत्मा को उपर्युक्त प्रकार से जानकर तू शोक करने के योग्य नहीं  है अर्थात्‌तुझे शोक करना उचित नहीं है।।25।।

 

This (Self)  is  said  to  be  unmanifested,  unthinkable  and  unchangeable.  Therefore, knowing This to be such, thou shouldst not grieve. ।।25।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल – My Experiments with Happiness – Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

My Experiments with Happiness

Meditation, Yoga, Laughter Yoga, The Science of Happiness, Spirituality

Can we be happy on a continuous basis? 

How can we attain and sustain a tranquil mind? 

Is it possible for us to develop a simple routine that can keep us charged throughout the day? 

Can we prevent stress from arising in our daily life? 

Is there a way to be child-like once again in body, mind and spirit?

These are some of the questions I have been pondering over for more than two decades now. Not just pondering but researching and experimenting. I feel happy and fulfilled that years of hard work has borne fruit and I can now share something worthwhile which will be of great benefit to many.

I began my journey as a behavioural science trainer facilitating people to discover their real self. Sometimes I was with them for long hours and felt satisfied that I was able to help them. But when I went back home, I found it difficult to share the experience I had during the day with my wife. It felt sad as some of them were valuable experiences indeed.

We, therefore, decided to take up an activity that we could do together. It proved to be our wisest decision ever.

Laughing together

We went to learn laughter yoga and thereafter conducted sessions to bring smiles on the faces around. It was our way of giving back. We had never imagined that we would go so deep into it and engage with participants coming from almost the whole world.

Laughter yoga is one of the happiest activities that one can imagine of. It generates a lot of positivity. It is good for health and generates instant joy.

Unconditional laughter many a times leads you to a deep meditative state freeing you of all stress and worries of life. It is also a sweet spiritual experience when you can make the depressed ones laugh and the tough ones crack like kids.

Despite numerous positives, we felt that it had its own limitations. It was like a pudding and human beings need wholesome meal for mind and body, heart and soul.

We started exploring yoga nidra – a systematic method for inducing complete physical, mental and emotional relaxation. As we went deeper and deeper, we unearthed hidden treasures. That lead us to the ancient techniques of meditation and subsequently to Buddha’s mindfulness and insight meditation.

The Science of Happiness 

Concurrently, I was following the latest developments in positive psychology. Per its founder, Martin Seligman, the five elements of well-being are positive emotions, engagement, relationships, meaning and accomplishment. Being a student of science myself, I have all the reverence for Seligman but, having delved a bit into spirituality, I believe that well-being is not only a construct but is multi-dimensional and much more complex.

Sonja Lyubomirsky, professor of psychology, describes the most effective happiness activities in her book entitled ‘The How of Happiness’. It is interesting that these activities include: practicing religion and spirituality, taking care of your body (meditation), taking care of your body (physical activity), taking care of your body (acting like a happy person).

Mihaly Csikszentmihalyi, psychologist, finds great similarities between yoga and flow. He considers yoga as a “thoroughly planned flow activity” as both try to achieve a joyous, self-forgetful involvement through concentration, which in turn is made possible by a discipline of the body.

Stephen Covey, Daniel Goleman, Matthieu Ricard and Richard Gere, to name just a few of the luminaries, practice meditation and have deep faith in meditation as a contributing factor for enduring happiness.

Experiments with happiness

Based on our study, we carried out some experiments with happiness. We created and administered four programmes to different sets of participants in different environment.

The first programme is named ‘The Wheel of Happiness and Well-Being’ for participants in a formal set-up like workplace or educational institution. It includes inputs of positive psychology, meditation, yoga, laughter yoga and spirituality. The sessions are well appreciated and the audience find great value in it.

Some people seek peace and serenity. For them we conduct a programme named ‘Meditate like Buddha’ once a week early in the morning. It’s only ingredient is meditation – pure meditation, nothing else. All the participants desire to have the programme daily.

We conduct ‘Happiness boot camp’ on weekends for families in a park. It includes yoga, meditation, laughter yoga and fun activities. The response has been getting better and better.

Then, we also have a longish, multi-dimensional retreat of a week’s duration named ‘East meets West’ which blends the best of modern science with ancient wisdom. Here you learn to make your life happier, meaningful and worthwhile and also train to be a versatile and multi-faceted Happiness and Well-Being Facilitator.

It has plentiful inputs from Positive Psychology, Yoga, Meditation, Laughter Yoga and Spirituality along with special offerings of Yoga Nidra, Surya Namaskara, Anapana Meditation, Sufi Meditation and Happiness Activities.

We have planned one such retreat on the bank of Ganga in the Himalayas at Rishikesh, India.

Having conducted sessions and interacted with thousands of people for years now, we feel that we have the recipe for happiness and well-being with us. Being able to touch lives is the ultimate fulfillment.

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
Courtesy – Shri Jagat Singh Bisht, LifeSkills, Indore

 

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