हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ सामाजिक चेतना – #4 ☆ पिता का दुख ☆ सुश्री निशा नंदिनी भारतीय
सुश्री निशा नंदिनी भारतीय
(सुदूर उत्तर -पूर्व भारत की प्रख्यात लेखिका/कवियित्री सुश्री निशा नंदिनी जी के साप्ताहिक स्तम्भ – सामाजिक चेतना की चौथी कड़ी में प्रस्तुत है उनकी भावप्रवण कविता “पिता का दुख ”। अब आप प्रत्येक सोमवार सुश्री निशा नंदिनी जी के साहित्य से रूबरू हो सकते हैं।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सामाजिक चेतना – #4 ☆
☆ पिता का दुख ☆
देकर हर सुख बेटे को
पाल-पोस कर बड़ा किया
सींच अपने खून पसीने से
पढ़ा-लिखा कर खड़ा किया।
हाथ मेरा थामे रहता था
जब वो स्कूल जाता था
पापा तुम जल्दी आ जाना
रो-रो कर वो कहता था।
नहीं चाहिए मुझे खिलौने
बस पापा तुम आ जाना
गोदी में अपनी लेकर के
प्यार मुझे तुम कर लेना।
बड़ा हो गया बेटा मेरा
हाथ मेरा अब छोड़ गया
रोते-बिलखते पापा से
रिश्ता अपना तोड़ गया।
उठा न सका वो भरी बोझ
अपने अपाहिज पापा का
व्हील चेयर में बैठाकर
वृद्धाश्रम की ओर गया।
अजनबियों के बीच में
आज मुझे वो छोड़ गया
जिम्मेदारी से घबरा कर
अनाथ मुझे वो कर गया।
आशीर्वाद देता है दिल
बेटा मेरा खुश रहे
उसकी झोली के सारे दुख
मेरी झोली में पड़े रहे।
© निशा नंदिनी भारतीय
तिनसुकिया, असम
9435533394...