हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य # 32 ☆ समस्या नहीं : संभावना  ☆ – डॉ. मुक्ता

डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से आप  प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का आलेख “खामोशी और आबरू”.  डॉ मुक्ता जी का यह विचारोत्तेजक एवं प्रेरक लेख हमें  जीवन के कठिन से कठिन समय  में विपरीत परिस्थितियों में भी सम्मानपूर्वक जीने का लक्ष्य निर्धारित करने हेतु प्रेरणा देता है। इस आलेख का कथन “जीवन में हम कभी हारते नहीं, जीतते या सीखते हैं अर्थात् सफलता हमें विजय देती है और पराजय अनुभव अथवा बहुत बड़ी सीख… जो हमें गलत दिशा की ओर बढ़ने से रोकती है। ” ही इस आलेख का सार है। डॉ मुक्त जी की कलम को सादर नमन।  कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें एवं अपने विचार कमेंट बॉक्स में अवश्य  दर्ज करें )    

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – # 32☆

☆ समस्या नहीं : संभावना 

‘जीवन में संभावनाएं देखिए, समस्याएं नहीं। सपने देखिए, रास्ता स्वयं मिल जाएगा’— अनुकरणीय उक्ति है। आप समस्या, उससे उपजी परेशानियों व  चिंताओं को अपने जीवन से बाहर निकाल फेंकिए, आपको मंज़िल तक पहुंचने का सीधा-सादा विशिष्ट मार्ग मिल जाएगा। आप संभावनाएं तलाशिए अर्थात् यदि मैं ऐसा करूं, तो इसका परिणाम उत्तम होगा, श्रेष्ठ होगा और झोंक दीजिए… स्वयं को उस कार्य में… अपनी सारी शक्ति अर्थात् तन, मन, धन उस कार्य को संपन्न करने में लगा दीजिए… और पथ में आने वाली बाधाओं-आपदाओं का चिंतन करना छोड़ दीजिए। सपने देखिए…रास्ता भी मिलेगा और मंज़िल भी बाहें फैलाए आपका स्वागत-अभिनंदन करेगी। हां! सपने सदैव उच्च, उत्तम व श्रेष्ठ देखिए …बंद आंखों से नहीं, खुली आंखों से देखिए…जैसा अब्दुल कलाम जी कहते हैं। आप पूर्ण मनोयोग से उन्हें साकार करने में लग जाइए…पथ की बाधाएं- आपदाएं स्वत: अपना रास्ता बदल लेंगी।

‘ए ऑटो विन विस्मार्क’ का यह वाक्य भी किसी संजीवनी से कम नहीं है कि ‘ समझदार इंसान दूसरों की गलती से सीखता है। मूर्ख इंसान गलती करके सीखता है।’ सो! बन जाइए बुद्धिमान और समझदार …दूसरों की गलती से सीखिए, खुद संकट में छलांग न लगाइये… जलती आग को छूने का प्रयास मत कीजिए ताकि आपके हाथ सुरक्षित रह सकें। इससे सिद्ध होता है कि दूसरों के अनुभव का आकलन कीजिए… उन्हें आज़माइये मत …और बिना सोचे-समझे कार्य-व्यवहार में मत लगाइए। बड़े बड़े दार्शनिक अपने अनुभवों को, दूसरों के साथ सांझा कर उन्हें गलतियां करने से बचाते हैं और कुसंगति से बचने का प्रयास करते हैं।

जो लोग ज़िम्मेवार, सरल, ईमानदार व मेहनती होते हैं, उन्हें ईश्वर द्वारा विशेष सम्मान मिलता है, क्योंकि वे धरती पर उसकी श्रेष्ठ रचना होते हैं। अब्दुल कलाम जी की यह उक्ति उपरोक्त भाव को पुष्ट करती है। ऐसे लोगों का अनुकरण कीजिए…उन द्वारा दर्शाये गये मार्ग पर चलने का प्रयास कीजिए, क्योंकि सरल स्वभाव के व्यक्ति ईमानदारी व परिश्रम को जीवन में धारण कर सबका मार्ग-दर्शन करते हैं,  उन सभी महापुरुषों के जीवन का उद्देश्य आमजन को दु:खों-संकटों व आपदाओं  से बचाना होता है। कबीर, नानक, तुलसी व कलाम सरीखे महापुरूषों के जीवन का विकास व आत्मोन्नति कीचड़ में कमलवत् था। इसलिए आज भी उनके उपदेश समसाययिक हैं और एक लंबे अंतराल के पश्चात् भी सार्थक व अनुकरणीय रहेंगे।

वे संत पुरुष सबके हित व कल्याण की कामना करते हैं तथा सबके साथ रहने का संदेश देते हैं। संत बसवेश्वर अपने घुमंतू स्वभाव के कारण गांव-गांव का भ्रमण कर रहे थे तथा वे एक सेठ के निमंत्रण पर उसके घर गए… जहां उनकी खूब आवभगत हुई। थोड़ी देर में उनसे मिलने कुछ लोग आए और उन्होंने उन लोगों को यह कह कर लौटा दिया कि ‘मैं अभी अतिथि के साथ व्यस्त हूं।’ इसके पश्चात् वे भीतर चले आये और संत से कल्याण के मार्ग के बारे में पूछने लगे। ‘जो व्यक्ति द्वार पर आये अतिथि से कटु व्यवहार करता है, उन्हें भीषण गर्मी में लौटा देता है… उसका कल्याण किस प्रकार संभव है? यह सुनते ही सेठ समझ गया कि व्यर्थ दिखावे व  पूजा-पाठ से अच्छा है,  हम सदाचार व परोपकार को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। शायद! इसीलिए वे धरती पर प्रभु की सर्वश्रेष्ठ रचना कहलाते हैं तथा लोगों को यह भी समझाते हैं कि कुदरत ने तो आनंद ही आनंद दिया है और दु:ख मानव की खोज है। हर वस्तु के दो पक्ष होते हैं। परंतु फूल व कांटे तो सदैव साथ रहते हैं। यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस का चुनाव करते हैं? हम घास पर बिखरी ओस की बूंदों को मोतियों के रूप में देख उल्लसित -आनंदित हो सकते हैं या प्रकृति द्वारा बहाये गये आंसुओं के रूप में देख व्यथित हो सकते हैं।

उसी प्रकार कांटों से घिरे गुलाब को देख, उसके सौंदर्य पर मुग्ध हो सकते हैं तथा कांटों को देख, उसकी नियति पर आंसू भी बहा सकते हैं। इसी प्रकार सुख-दु:ख का चोली दामन का साथ है… दोनों इकट्ठे कभी नहीं आते। एक के विदा होने के पश्चात् ही दूसरा दस्तक देता है, परंतु यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम सुखों को स्थायी समझ, उसके न रहने पर आंसू बहते हैं… अपने भाग्य को कोसते हैं तथा अपने जीवन को दूभर व नरक बना लेते हैं। उस स्थिति में हम भूल जाते हैं कि सुख तो बिजली की कौंध की भांति हमारे जीवन में प्रवेश करता है-और हम भ्रमित होकर अपने वर्तमान को दु:खी बना लेते हैं। सुख- दु:ख दोनों मेहमान हैं और आते-जाते रहते हैं। इसलिए सुख का लालच व दु:ख का भय हमें सदैव कष्टों व आपदाओं में रखता है और हम चाह कर भी उस व्यूह से मुक्ति नहीं पा सकते।

सो! दोस्ती व प्रेम उसी के साथ रखिए, जो तुम्हारी हंसी व गुस्से के पीछे का दर्द अनुभव कर सके मौन की वजह तक पहुंच सके। अर्थात् सच्चा दोस्त वही है, जो आपका गुरू भी है… सही रास्ता दिखलाता है और विपत्ति में सीना ताने आपके साथ खड़ा होता है। सुख में वह आपको भ्रमित नहीं होने देता तथा विपत्ति में गुरु की भांति आपको संकट से उबारता है। वह उस कारण को जानने का प्रयास करता है कि आप  दु:खी क्यों हैं? आपकी हंसी कहीं बनावटी व  दिखावे की तो नहीं है? आपकी चुप्पी तथा मौन का रहस्य क्या है? कौन-सा ज़ख्म आपको नासूर बन साल रहा है? उसके पास सुरक्षित रहता है… आपके जीवन के हर पल का लेखा-जोखा। सो! ऐसे लोगों से संबंध रखिए और उन पर अटूट विश्वास रखिए, भले ही संबंध बहुत गहरे ही न हों? इसके साथ ही वे ऐसे मुखौटाधारी लोगों से भी सचेत रहने का संदेश देते हैं, जो अपने बनकर, अपनों को छलते हैं। इसलिए उनसे सजग व सावधान रहिए, क्योंकि चक्रव्यूह रचने वाले व पीठ में छुरा घोंकने वाले सदैव अपने ही होते हैं। यह तथ्य कल भी सत्य था, आज भी सत्य है और कल भी रहेगा। इसलिए मन की बात बिना सोचे-समझे, कभी भी दूसरों से सांझा न करें, क्योंकि कुछ लोग बहुत उथले होते हैं। इसलिये वे बात की गंभीरता को अनुभव किए बिना, उसे आमजन के बीच प्रेषित कर देते हैं, जिससे आप ही नहीं, वे स्वयं भी जग-हंसाईं का पात्र बनते हैं। सो! सावधान रहिये, ऐसे मित्रों और संबंधियों से.. जो आपकी प्रशंसा कर, आपके मनोबल को गिराते हैं तथा आपको निष्क्रिय बना कर, अपना स्वार्थ साधते हैं। ऐसे ईर्ष्यालु आपको उन्नति करते देख, दु:खी होते हैं तथा आपके कदमों के नीचे से सीढ़ी खींच सुक़ून पाते हैं। तो चलिए इसी संदर्भ में जिह्वा का ज़िक्र भी कर लें, जो दांतों के घेरे में रहती है…अपनी सीमा व मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करती। इसलिए वह भीतरी षड्यंत्र व बाहरी आघात से सुरक्षित रहती है… जबकि उसमें विष व अमृत दोनों तत्व निवास करते हैं… प्रतिद्वंद्वी के रूप में नहीं, बल्कि साथी व सहयोगी के रूप में और मानव उनसे मनचाहा संबंध बनाने व प्रयोग करने में स्वतंत्र है। इसी प्रकार वह कटु वचन बोलकर दोस्त को दुश्मन बना सकता है और शत्रु को को पल भर में अपना साथी-सहयोगी, मित्र व विश्वासपात्र।

हमारी वाणी में अलौकिक शक्ति है… यह प्रयोगकर्ता  पर निर्भर करता है कि वह शर-संधान अर्थात् कटु वचन रूपी बाण चला कर हृदय को आहत करता है या मधुर वाणी से, उसके अंतर्मन में प्रवेश पाकर व  उसे आकर्षित कर अपना पक्षधर बना लेता है। इसलिये स्वयं को पढ़ने की आदत बनाइए, क्योंकि कुदरत को पढ़ना अत्यंत दुष्कर कार्य है। दुनिया बहुत बड़ी है, इसलिए सब कुछ समझना व सब की आकांक्षाओं पर खरा उतरना मानव के वश में नहीं है। सो! दूसरों से अपेक्षा मत कीजिए। अपने अंतर्मन में झांकिये व आत्मावलोकन कीजिये जो समस्याओं के निदान का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। जब आप अपने दोषों व अवगुणों से अवगत हो जाते हैं तो आप सब के प्रिय बन जाते हैं। इस स्थिति में कोई भी आपका शत्रु नहीं हो सकता। आप अनहद नाद की मस्ती में डूब, अलौकिक आनंद में अवगाहन कर सकते हैं… यही जीते जी मुक्ति है, कैवल्य है।

सो! हर समस्या के दो पहलुओं के अतिरिक्त, तीसरे विकल्प की ओर भी दृष्टिपात कीजिए… जीवन उत्सव बन जाएगा और कोई भी आपके जीवन में अंर्तमन में खलल नहीं डाल पाएगा। इसलिए जीवन में संभावनाओं की तलाश कीजिये और निरंतर अपनी राह पर बढ़ते जाइए… स्वर्णिम भोर पलक पांवड़े बिछाए आपकी प्रतीक्षा कर रही होगी। जीवन में हम कभी हारते नहीं, जीतते या सीखते हैं अर्थात् सफलता हमें विजय देती है और पराजय अनुभव अथवा बहुत बड़ी सीख… जो हमें गलत दिशा की ओर बढ़ने से रोकती है। तो आइए! जीवन में सम स्थिति में रहना सीखें…जीवन में सामंजस्यता का प्रवेश होगा और समरसता स्वत: आ जायेगी, जो आपको अलौकिक आनंद प्रदान करेगी क्योंकि संभव और असंभव के बीच की दूरी, व्यक्ति की सोच और कर्म पर निर्भर करती है।

 

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

मो• न•…8588801878

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि  – वसंत पंचमी विशेष – माँ शारदा शतश: नमन  ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – वसंत पंचमी विशेष – माँ शारदा शतश: नमन  

[1]

शुभ्र परिधानधारिणी, पद्मासना
हर शब्द, हर अक्षर तुम्हें अर्पण,
उज्ज्वल हंस पर विराजमान
दुग्धधवला महादेवी,
माँ शारदा को शतश: नमन।

[2]

मानसरोवर का अनहद
शिवालय का नाद कविता,
अयोध्या का चरणामृत
मथुरा का प्रसाद कविता,
अंधे की लाठी
गूँगे का संवाद कविता,
बारम्बार करता नमन ‘संजय’
माँ सरस्वती साक्षात कविता।

[3]

मौसम तो वही था,
यह बात अलग है
तुमने एकटक निहारा
स्याह पतझड़,
मेरी आँखों ने चितेरे
रंग-बिरंगे बसंत..,
बुजुर्ग कहते हैं,
देखने में और दृष्टि में
अंतर होता है।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(कवितासंग्रह ‘योंही’ एवं ‘मैं नहीं लिखता कविता।’)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज # 32 ☆ वसंत पंचमी विशेष – बसंत ☆ डॉ. भावना शुक्ल

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची ‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत है उनकी वसंत पंचमी  पर्व पर विशेष कविता  ‘ बसंत ।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 32 – साहित्य निकुंज ☆

☆ बसंत 

माघ माह की पंचमी,

आया है ऋतु राज,

सरस्वती को पूजते ,

लोग घरों में आज।।

 

बसंत

बसंत आता है

मन को लुभाता है

चहुँ ओर

फ़ैल रही है हरियाली

झूम रही है डाली डाली

धरती ने हरीतिमा का किया शृंगार

मन में उठी उमंग की फुहार

प्रेम प्यार की कोपलें फूटी

खिलने लगे फूल और कलियाँ

छा गई सब ओर खुशियाँ

फ़ैली है बसंत की महक

गूंज रही पक्षियों की चहक

जीवन में खिलने लगे नये रंग

लगा लिया कलियों ने अंग

देखो आ गया बसंत

आ गया बसंत।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

wz/21 हरि सिंह पार्क, मुल्तान नगर, पश्चिम विहार (पूर्व ), नई दिल्ली –110056

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]

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मराठी साहित्य ☆ वार्ता ☆ शब्दांचा प्रवास हृदयपासून हृदयपर्यन्त – कविराज विजय यशवंत सातपुते ☆ वार्ताकार – श्री काशिराम खरडे

कविराज विजय यशवंत सातपुते

(समाज , संस्कृति, साहित्य में  ही नहीं अपितु सोशल मीडिया में गहरी पैठ रखने वाले  कविराज विजय यशवंत सातपुते जी  की  सोशल मीडिया  की  टेगलाइन माणूस वाचतो मी……!!!!” ही काफी है उनके बारे में जानने के लिए। जो साहित्यकार मनुष्य को पढ़ सकता है वह कुछ भी और किसी को भी पढ़ सकने की क्षमता रखता है।आप कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आज प्रस्तुत है  मोहरली लेखणी साहित्य समुह का विशेष  वार्ता कार्यक्रम  आठवांच्या हिंदोळ्यावर… काशिराम खरडे सोबत…। किसी भी विशिष्ट व्यक्ति से वार्ता एक कला है। श्री काशिराम खरडे जी वास्तव में इस कला में दक्ष हैं। हम इस विशेष वार्ता के लिए कविराज विजय यशवंत सातपुते जी, मोहरली लेखणी साहित्य समुह एवं श्री काशिराम खरडे जी  के हृदय से आभारी हैं । 

 मोहरली लेखणी साहित्य समुह प्रस्तुति –  आठवांच्या हिंदोळ्यावर… काशिराम खरडे सोबत… ☆

नमस्कार मोहरलीकर…

आज आपण _आठवांच्या हिंदोळ्यावर… काशिराम खरडे सोबत…_ या आपल्या साप्ताहिक उपक्रमाअंतर्गत एका अशा साहित्यिकांशी संवाद साधणार आहोत, जे मागिल तीन दशकांहून अधिक काळ साहित्यसेवा करत आहेत. राज्य शासनाच्या अनुदानातून ज्यांचा काव्य संग्रह रसिकांपर्यंत पोहोचला. शेतीमाती पासून चित्रपटांपर्यंत ज्यांच्या शब्दांनी रसिकमनाला भुरळ घातली. असे जेष्ठ साहित्यिक “कवीराज विजय सातपुते”…

चला तर मग… जाणून घेऊया विजयजींकडून त्यांच्या साहित्यिक प्रवासाबद्दल…

नमस्कार कवीराज

मोहरली लेखणी साहित्य समुहाच्या “आठवांच्या हिंदोळ्यावर.. काशिराम खरडे सोबत… आ उपक्रमात आपले स्वागत..

खरं तर एवढा मोठा साहित्य प्रवास, साहित्याची अस्सल जाण, साहित्यासोबतच पत्रकारीतेच्या क्षेत्रातही नावलौकिक मिळवत शब्दांची नैसर्गिकता जपणं… हे खूप कमी लोकांना जमतं. आपण ‘साहित्य’ या संकल्पनेकडे कसं बघता….

विजय सातपुतेनमस्कार, सर्व प्रथम  आपल्याला.  आणि समस्त मोहरली करांना.

कथा,  कविता, लेख यांची निर्मिती करताना मांडलेले  आशय, विषय जितके लोकाभिमुख तितके  आपले साहित्य रसिकांना जास्त भावते त्या साठी वाचन, लेखन, चिंतन आणि मनन, यांचा व्यासंग खूप  उपयोगी ठरतो  असे मला वाटते. साहित्य हे माणूस जीवंत ठेवण्याचे प्रभावी माध्यम आहे  असे मला वाटते.

काशिराम खरडे व्वाह…!!

माणसाचं जिवंतपण साहित्यात दडलेलं आहे हा अतिशय उमदा विचार आपला… बहोत खूब…!

सर, आपण १९८८ पासून लिहिताय, असं आम्हाला कळलं. हा एवढा प्रदीर्घ साहित्यिक अनुभव गाठीशी बांधून साहित्याच्या प्रांगणात वावरत असतांना बऱ्याच आठवणींच्या गाठोड्यातील एखादी अशी आठवण सांगता येईल की ज्यामुळे आपण साहित्याशी जुळले गेलात…?

विजय सातपुतेखरं तर  आज मागे वळून बघताना  इतका साहित्य प्रवास  आपला होईल हे त्या वेळी कुणी भाकीत केले  असते तर ते खोटे ठरले  असते पण दोन महत्वपूर्ण घटना घडल्या  आणि मी साहित्याशी जोडला गेलो.

1992 मध्ये राज्य स्तरीय काव्य संमेलन आणि स्पर्धा चे सूत्रसंचालन करण्याची संधी मिळाली. यावेळी राजा गोसावी, वसंत शिंदे, वसंत बापट आणि जीवन राव कीर्लोस्कर व्यासपीठावर होते. तेव्हा मी केलेले स्वागत गीत आणि मोरपीस कविता सर्वांना  अतिशय  आवडली.  वसंत बापट यांनी सभागृहातून माझ्या वडिलांना व्यासपीठावर बोलावून घेतले. त्यांच्या हातून पुष्पहार अर्पण केला व पेढे दिले आणि त्याच वेळी मला कविराज पदवी बहाल केली. हा  आनंद क्षण आणि जगदीश खेबुडकर यांनी वेळोवेळी केलेले मार्गदर्शन मला साहित्याचा नावकरी आणि गावकरी बनवून गेले.

ऐन वसंती,  बहर संगती

वसंत बापट नाव गाजते

भावनेच्या शिशिरालाही

वसंत वैभव देऊन जाते

धन्य लेखणी नरोत्तमाची

स्वागत करतो तिचे

स्वागतम शुभ स्वागतम सुस्वागतम.

 

राजा राजा काय चीज ही

वाचून पाहून सांगा मजला

गोष्ट राजा गोसावींची

धन्य धन्य त्या  अभिनयाची

स्वागत करतो  अभिनयाचे

स्वागतम शुभ स्वागतम सुस्वागतम.

 

असे त्यातील ददोन कडवी होती.

काशिराम खरडे खरंच किती भाग्यवान आहात आपण इतक्या उत्तुंग व्यक्तीमत्वांकडून कौतुकाची थाप मिळणं, ही खूप मोठी गोष्ट आहे.

आपल्या एकंदरीत साहित्य प्रवासाबद्दल सांगावं…

विजय सातपुतेसाहित्यिक, नाट्य, संगीत, आणि तमाशा कलावंतांना जवळून पाहण्याची संधी या साहित्य प्रवासाने दिली. 1993 ते 2013 पर्यत डिफेन्स अकौंट मध्ये सर्व्हिस केली.  अनेक कविता लिहिल्या.  2005 मध्ये पहिला कविता संग्रह प्रकाशित झाला.  अक्षरलेणी या कवितासंग्रहाला महाराष्ट्र राज्य शासनाच्या साहित्य संस्कृती मंडळाचे  अनुदान मिळाले.  अनेक शासकीय  आणि राज्यस्तरीय पुरस्कार प्राप्त झाले.  अक्षरलेणीकार म्हणून  ओळख मिळाली. प्रस्तावना कार,  मानपत्र लेखन  आणि वृत्त पत्र स्तंभलेखन यातून संपूर्ण महाराष्ट्रात मित्रपरीवार रसिक वर्ग निर्माण झाला.

2012 मध्ये अक्षरलेणी संग्रहाची द्वितीय आवृत्ती प्रकाशित झाली.  या संग्रहास महाकवी कालिदास पुरस्कार प्राप्त झाला.

आजपर्यंत कवितेच्या प्रत्येक काव्य प्रकारात लेखन केले आहे. विविध काव्य प्रकारात प्रविण्य संपादन करून अनेक पुरस्कार कवितानी मिळवून दिले आहेत.  गझल, हायकू,  चारोळी,  छंदोबद्ध रचना, मुक्त छंद रचना,   अभंग ,ओवी,  अष्टाक्षरी आणि नवकाव्य प्रकारात आजवर विपुल लेखन केले आहे. कथा लेखन,  ललित लेख लेखन दिवाळी अंकासाठी दरवर्षी केले जाते.  बालसाहित्य देखील लिहिले आहे.  अनेक शाळातून मुलांसाठी काव्य सादरीकरण केले आहे. आकाशवाणी पुणे केंद्रावरून माझ्या जास्तीत जास्त कथांचे  अभिवाचन झाले आहे.  अनेक काव्य लेखन स्पर्धा, काव्य वाचन स्पर्धा  आणि सांस्कृतिक कार्यक्रमांचे यशस्वी  आयोजन केले आहे.  अनेक कार्यक्रमांचे निवेदन केले आहे .या प्रवासात  वीस हून अधिक संस्थेत विविध पदांवर कार्यरत आहे ही संधी साहित्य क्षेत्राने दिली.

काशिराम खरडे आजवरच्या वाचनात सर्वात जास्त आडलेली साहित्याकृती….

विजय सातपुतेवाचनाचा वारसा  आईकडून मिळाला.  माझी आई 1967 सालची जगन्नाथ शंकर शेठ स्काॅलरशीप मिळालेली विदुषी आहे.  माझ्या दुप्पट वाचन तिचे आहे.  माझे वडील सरकारी कर्मचारी. पण वाचन संस्कृतीचा प्रचार  आणि प्रसार करण्यासाठी होम सर्व्हिस लायब्ररी भाग्यश्री वाचनालय सुरू केले. त्यामुळे विपुल वाचन केले  आहे. छावा कादंबरी, कुसुमाग्रज यांचा विशाखा कविता संग्रह  आणि शांता शेळके यांचा रेशीमरेघा कविता संग्रह या  आवडत्या साहित्य कलाकृती  आहेत.  डिटेक्टिव्ह कथा देखील खूप वाचायला  आवडतात.

काशिराम खरडे आपण पुणेकर आहात. पुणे हि खरंतर आपली सांस्कृतिक राजधानी. पण वेगळ्या अर्थाने विचारायचे झाल्यास पुणेरी पाट्या, पुणेरी टोमणे, पुणेरी लहेजा या व अशा इतर तत्सम गोष्टींमधूनही साहित्य डोकावतच असतं. पुण्याला साहित्याचा वारसाही खूप मोठा आहे. पुणेरी साहित्याबद्दल काय सांगाल…?

विजय सातपुते साहित्य जेव्हा लोकाभिमुख होते तेव्हा प्रांतनिहाय त्याचे वर्गीकरण लोकवैशिष्ट्ये पाहून केले जाते.  यात मनोरंजन,  प्रबोधन या बरोबरच स्वभाव प्रणित शब्द चित्र, व्यक्ती चित्रण देखील तुम्हाला लोकाभिमुख करतात. पुणेरी पाट्या, पुणेरी टोमणे याबरोबरीने  अभिजात साहित्यिक पुण्याने दिले आहेत.   वसंत बापट यांनी कित्येक संस्थाची घोषवाक्ये,  जाहिराती स्लोगन लिहिलेली आहेत. घेतलेल्या  अनुभवांच प्रगटीकरण करताना माणूस माणसाशी जोडला जावा हा लेखन  उद्देश मनात ठेऊन  आजवर चे लेखन  आणि साहित्यिक वाटचाल झाली आहे.  अजूनही सुरू आहे.

काशिराम खरडे कवितेबद्दल काय सांगाल…?

विजय सातपुते शब्दांचा प्रवास ह्रदयापासून ह्रदयापर्यत होताना होणारी कविता स्वतः जगते आणि  आपल्यातल्या माणसाला जगवते . कवितेने  मला  आजवर जे काही दिले आहे त्यात रसिकांचा  आशिर्वाद आणि दैनंदिन लेखन कला व्यासंग माझ्या दृष्टीने  अत्यंत महत्त्वाचा आहे.

जन्मणारी आपली प्रत्येक कलाकृती ही नवजात किंवा नवोदित  असते ती रसिकांसमोर स्पर्धा,  सादरीकरण या माध्यमातून  आली पाहिजे.  आपण  आता ज्येष्ठ झालो अमुक स्पर्धेत सहभागी होऊ नये हे मला पटत नाही. हा पण पुरस्कार मिळाले की लेखन  अधिक जबाबदारीने करावेसे वाटते त्यामुळे लेखन काळजीपूर्वक केले जाते. नाविन्य  आणि विविधता लेखनात  असावी त्या शिवाय लिखाण समृद्ध होत नाही  असे माझे मत आहे.  अनेक विषयांवर लेखन  आत्ता पर्यंत वृत्त पत्रातून कैले आहे.

काशिराम खरडे आणखी काय सांगाल…?

विजय सातपुते निवेदन, वृत्त पत्र लेखन,  काव्य लेखन,  कथा, कादंबरी,   आणि चित्रपट पटकथा लेखन  असा साहित्य प्रवास झाला आहे. दक्ष या  चित्रपटाची पटकथा व तीन गाणी लिहिली आहेत. मार्च 2020 मध्ये शुटिंग सुरू होईल. जय जवान, जय किसान या विषयावर सदर चित्रपट आहे.

प्रकाश पर्व हा कविता संग्रह जून 2019 मध्ये प्रकाशित झाला आहे. महाराष्ट्र भूषण  अष्टपैलू व्यक्ती मत्व म्हणून पुरस्कार डॉ  श्रीपाल.  सबनीस यांच्या हस्ते  आजवरच्या साहित्यिक वाटचालीकरता प्रदान करण्यात आला आहे.

निवेदन, वृत्त पत्र लेखन,  काव्य लेखन,  कथा, कादंबरी,   आणि चित्रपट पटकथा लेखन  असा साहित्य प्रवास झाला आहे. दक्ष या  चित्रपटाची पटकथा व तीन गाणी लिहिली आहेत. मार्च 2020 मध्ये शुटिंग सुरू होईल. जय जवान, जय किसान या विषयावर सदर चित्रपट आहे.

धन्यवाद विजय सातपुते जी. मोहरली लेखणी साहित्य समुहाला वेळ आणि मुलाखत दिली. आपल्या आगामी साहित्य प्रवासाला अनेक शुभेच्छा

प्रस्तुति – मोहरली लेखणी साहित्य समुह – आठवांच्या हिंदोळ्यावर… काशिराम खरडे सोबत…

साभार – विजय यशवंत सातपुते, यशश्री, 100 ब दीपलक्ष्मी सोसायटी,  सहकार नगर नंबर दोन, पुणे 411 009., मोबाईल  9371319798.

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English Literature – Poetry ☆ Thoonth –The Tree Stump ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Captain Pravin Raghuvanshi, NM

(We are extremely thankful to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for sharing his literary and artworks with e-abhivyakti.  An alumnus of IIM Ahmedabad, Capt. Pravin has served the country at national as well international level in various fronts. Presently, working as Senior Advisor, C-DAC in Artificial Intelligence and HPC Group; and involved in various national-level projects.

We present an English Version of Shri Sanjay Bhardwj’s Hindi Poetry “ठूंठ” published previously as☆ संजय दृष्टि  – ठूँठ   We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation.)

☆ Thoonth –the Tree Stump☆

 

Every tree stump

can grow

Green shoots

Innocent sprouts

Blossoming buds

Rainbow hues flowers,

With chirping birds

perched on them…

All it needs

A little manure

A little water

And plenty of love…

 

*Similarly*

Every person desires

An assuring pat on the back,

Soothing delectable fingers,

Soulful affectionate  eyes,

And, encouraging words,

Everyone has his own definite role…

You all stick together *In drive to green*  the stumps

And I will make sure

*No one ever becomes a* stump.

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM
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Poetry,
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हिन्दी साहित्य☆ साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 23 ☆ वसंत पंचमी विशेष – सरस्वती वंदना ☆ श्री संतोष नेमा “संतोष”

श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है वसंत पंचमी  पर विशेष  कविता / गीत “सरस्वती वंदना”. आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 23 ☆

☆ वसंत पंचमी विशेष – सरस्वती वंदना ☆

 

चारु      हासिनी     वाग्वादिनी।

जयति जयति जय हंस वाहिनी।।

 

शीश मुकुट मोहक मणि सोहे।

गल  मोतिन  की  माला  मोहे।।

ज्ञान-बुद्धि   दे   ज्ञान   दायिनी।

जयति जयति जय हंस वाहिनी।

 

धूप-दीप, फल  मेवा  अर्पित।

भक्ति-भाव से विनय समर्पित।।

महका  दे  उर  पुष्प  वाहिनी।।

जयति जयति जय हंस वाहिनी।।

 

शब्द-शब्द,कविता-आराधन।

नव गीतों का करे सृजन मन।।

रस भावों की सुभग स्वामिनी।

जयति जयति जय हंस वाहिनी।।

 

ब्रम्हा-विष्णु,महेश उपासक।

शब्द-शिल्प,स्वर-लय आराधक।।

शशिवदना हे कमल वासिनी।

जयति जयति जय हंस वाहिनी।।

 

आन विराजो कलम दृष्टि में।

शब्द-नाद  संगीत-सृष्टि  में।।

माँ विमला”संतोष” दायिनी

जयति जयति जय हंस वाहिनी।।

 

चारु     हासिनी     वाग्वादिनी।

जयति जयति जय हंस वाहिनी।

 

© संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Three HAPPINESS Mantras – Video #6 ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

 ☆ Three HAPPINESS Mantras  ☆ 

Video Link >>>>

LAUGHTER YOGA: VIDEO #6

We are sharing three happiness mantras for creating instant joy.

If you feel low at any time, you may chant and enact these mantras and feel instant cheer.

Chant the mantras with children, seniors or peers at home, workplace or in your community to share happiness and joy.

Happiness Mantra #1:

Very Good, Very Good, Yay!

Happiness Mantra #2:

I am good, very good, yay!

Happiness Mantra #3:

hoho haha..

Mantra #1 in other languages:

Japanese: Yatta yatta yay!

Russian: Harasho harasho yay!

Italian: Molto bene molto bene yay!

Spanish: Mui bien mui bien yay!

Hindi: Bahut achche bahut achche yay!

Mantra #2, other versions:

I am healthy, very healthy, yay!

I am strong, very strong, yay!

I am good, very good, yay!

I am smart, very smart, yay!

 

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.
We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.
Email: [email protected]

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (6) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( विभूति योग)

महर्षयः सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा ।

मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमाः प्रजाः ।।6।।

 

पुरा सप्त ऋषि चार मनु उपजे मम संकल्प

जिनसे इस संसार में वर्णित सृष्टि अकल्प।।6।।

 

भावार्थ :  सात महर्षिजन, चार उनसे भी पूर्व में होने वाले सनकादि तथा स्वायम्भुव आदि चौदह मनु- ये मुझमें भाव वाले सब-के-सब मेरे संकल्प से उत्पन्न हुए हैं, जिनकी संसार में यह संपूर्ण प्रजा है।।6।।

 

The seven great sages, the ancient four and also the Manus, possessed of powers like Me (on account of their minds being fixed on Me), were born of (My) mind; from them are these creatures born in this world.।।6।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद # 18 ☆ लघुकथा – साजिश ☆ डॉ. ऋचा शर्मा

डॉ. ऋचा शर्मा

(डॉ. ऋचा शर्मा जी को लघुकथा रचना की विधा विरासत में  अवश्य मिली है  किन्तु ,उन्होंने इस विधा को पल्लवित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी . उनकी लघुकथाएं और उनके पात्र हमारे आस पास से ही लिए गए होते हैं , जिन्हें वे वास्तविकता के धरातल पर उतार देने की क्षमता रखती हैं. अब आप  ई-अभिव्यक्ति में  प्रत्येक गुरुवार को उनकी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है उनकी एक लघुकथा  “साजिश”।  समाज में व्याप्त इस कटु सत्य को पीना इतना आसान नहीं है किन्तु,  सत्य आखिर सत्य तो है और नकारा नहीं जा सकता।  डॉ ऋचा जी की रचनाएँ अक्सर यह अहम्  भूमिकाएं निभाती हैं । डॉ ऋचा शर्मा जी की लेखनी को ऐसी रचना रचने के लिए सादर नमन। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संवाद – # 18 ☆

☆ लघुकथा –साजिश 

बुढ़ापा … उम्र के इस दौर में वे दोनों किसी तरह जी रहे थे। एक बेटी और दो बेटों का भरा-पूरा परिवार था। वह घर जिसमें हमेशा चहल-पहल, हो-हल्ला मचा रहता था अब सन्नाटे में डूबा रहता। वृद्ध  दंपति के पास करने को कुछ नहीं था, करते क्या, शरीर भी तो साथ नहीं देता। सोचने को था बहुत कुछ बच्चों की बेशुमार यादें। पहले बेटी फिर ढ़ेरों मन्नतों के बाद दो बेटे  — कुलदीपक ?

जीवन पर्यंत जिम्मदारियों का निर्वाह, यथासंभव ……जी तोड़ कोशिश कर और अब …. अमावस की घोर कालिमा-सी वृद्धावस्था।

शुक्ल जी बड़े ही स्वाभिमानी व्यक्ति थे। बेटी को तो पराया धन मानते ही थे। बेटों के आगे भी कभी हाथ नहीं फैलाया। यह बात दूसरी है कि बेटी की शादी और बेटों को पढाने-लिखाने में तन और धन दोनों से खाली हो चुके थे। संतान के लिए जितना करो उतना कम।

अब बारी बेटों की। गेंद उनके पाले में – देखें कैसी खेलते हैं जीवन की यह पारी। दिनेश तो पढाई पूरी होते ही विदेश चला गया था। राहुल शहर में होकर भी पास नहीं था। कई बार शुक्ल जी ने फोन करके कहा – एक बार देख जा माँ को, दिन-पर-दिन तबियत बिगड़ती जा रही है। तुझे देखने को तरसती है। व्यस्त हूँ, जरूर आऊँगा – जैसे टालू उत्तर फोन पर शुक्ल जी सुनते रहे। मोबाईल युग है – सुख-दुःख फोन पर बँटते हैं। आवाजें पास, दिल दूर-दूर।

शुक्ल जी की बेटी रंजना को आज भी याद हैं पापा के वे शब्द – ‘बेटी ! हम पति-पत्नी मर जाएंगे लेकिन बेटों के सामने दया की भीख नहीं मांगेगे।’ माँ की भीगी आँखों की निरीहता भूली नहीं जाती। कैसी अकथनीय वेदना छिपी थी उन बूढी आँखों में।

माँ के अंतिम संस्कार की तैयारी चल ही रही थी कि ‘पापा नहीं रहे’ – वाक्य उसके कानों में पड़ा, दो उल्टियां हुई और सब खत्म। वह सन्न रह गयी।

पड़ोस की स्त्रियां बोली – ‘कितनी सौभाग्यशाली है सुहागिन मरी’ पुरुष बोले – ‘अच्छा हुआ शुक्ल जी पत्नी के जाते ही चल दिए, बहुओं का राज नहीं देखना पड़ा’, रंजना सच जानती थी। स्वाभिमान से जीने की इच्छा रखनेवाले माता-पिता को उनके बेटों ने बेमौत मार डाला।

रंजना अपना दुःख कहे भी तो किससे ???

 

© डॉ. ऋचा शर्मा

अध्यक्ष – हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर.

122/1 अ, सुखकर्ता कॉलोनी, (रेलवे ब्रिज के पास) कायनेटिक चौक, अहमदनगर (महा.) – 414005

e-mail – [email protected]  मोबाईल – 09370288414.

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Weekly column ☆ Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 22 – A Plea to Santa ☆ Ms. Neelam Saxena Chandra

Ms Neelam Saxena Chandra

 

(Ms. Neelam Saxena Chandra ji is a well-known author. She has been honoured with many international/national/ regional level awards. We are extremely thankful to Ms. Neelam ji for permitting us to share her excellent poems with our readers. We will be sharing her poems on every Thursday. Ms. Neelam Saxena Chandra ji is  an Additional Divisional Railway Manager,Indian Railways, Pune Division. Her beloved genre is poetry. Today we present her poem “A Plea to Santa.  This poem  is from her book “The Frozen Evenings”.)

☆ Weekly column  Poetic World of Ms. Neelam Saxena Chandra # 20

☆  A Plea to Santa ☆

 

Santa, Santa

Do not deny my wish,

Give me a Christmas gift

And let this Christmas eve be different please…

 

Santa, Santa

I want everyone to be happy and glee:

No tears, no sorrow;

Only contentment and ecstasy…

 

Santa, Santa

Let there be no gloom;

Please grant me a boon,

Let joy and prosperity bloom…

 

Santa, Santa

Let there be love and care;

No biases of caste, creed and race,

Let peace prevail everywhere…

 

Santa, Santa

Let us all join hands;

Form a human chain

Of affection that shall never end….

 

Santa, Santa

This is what I seek

Let this Christmas be

Different and unique!

 

© Ms. Neelam Saxena Chandra

(All rights reserved. No part of this document may be reproduced or transmitted in any form or by any means, or stored in any retrieval system of any nature without prior written permission of the author.)

 

 

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