हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – समकालीन प्रश्न  ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

☆ संजय दृष्टि  – समकालीन प्रश्न 

असंख्य आदमियों की तरह

आज एक और

आदमी मर गया,

अपने पीछे वे ही

अमर प्रश्न छोड़ गया,

समकालीन प्रश्न-

अब यह आदमी नहीं रहा

ऐसे में हमारा क्या होगा?

सार्वकालिक प्रश्न-

जन्म से पहले

आदमी कहाँ था,

मृत्यु के बाद

आदमी कहाँ जाएगा?

लगता है जैसे

कई तरह के प्रयोगों का

रसायन भर है आदमी,

जीवन की थीसिस के लिए

शोध और अनुसंधान का

साधन भर है आदमी।

©  संजय भारद्वाज, पुणे

(कवितासंग्रह ‘मैं नहीं लिखता कविता’ से)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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हिन्दी साहित्य – ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 30 ☆ बंच आफ ट्राई कलर बैलून्स इन स्काई ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं. अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्री विवेक जी के चुनिन्दा  रचनाओं को “विवेक साहित्य ”  शीर्षक के अंतर्गत पढ़ सकेंगे.  आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का  एक सामायिक  आलेख  “बंच आफ ट्राई कलर बैलून्स इन स्काई”.  श्री विवेक जी को धन्यवाद इस सामयिक किन्तु  शिक्षाप्रद  आलेख  के लिए। इस आलेख  को  सकारात्मक दृष्टि से पढ़कर कमेंट बॉक्स में बताइयेगा ज़रूर। श्री विवेक रंजन जी ऐसे बेहतरीन आलेख के लिए निश्चित ही बधाई के पात्र हैं. )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 31 ☆ 

☆ बंच आफ ट्राई कलर बैलून्स इन स्काई

 

तिरंगे की छाया में खडे, बंद गले का जोधपुरी सूट पहने, सफेद टोपी लगाये गर्व से अकड़े हुये मुख्य अतिथि  ने परेड की सलामी ली. उद्घोषणा हुई आकाश की असीम उंचाईयों तक ट्राई कलर का संदेश पहुंचाने के लिये गैस के गुब्बारे “बंच आफ ट्राई कलर बैलून्स” छोड़ कर हर्ष व्यक्त किया जावेगा. सजी सुंदर दो लडकियां ने केसरिया, सफेद, हरे गुब्बारो के गुच्छे मुख्य अतिथि की ओर बढ़ाये. शौर्य, देश भक्ति और साहस के प्रतीक ढ़ेर सारे केसरिया गुब्बारे सबसे अधिक उंचाई पर थे, सफेद गुब्बारो के धागे कुछ छोटे थे. उद्घोषक की भाषा  में सफेद रंग के ये गुब्बारे शांति, सदभावना और समन्वय को प्रदर्शित करते इठला रहे थे. इन्हीं सफेद गुब्बारो में एक गुब्बारा गहरे नीले रंग का भी था जो तिरंगे के अशोक चक्र की अनुकृति के रुप में गुच्छे में बंधा था. वही अशोक चक्र जो सारनाथ के अशोक स्तंभ से समाहित किया गया है हमारे तिरंगे में. यह चक्र राष्ट्र की गतिशीलता, समय के साथ प्रगति तथा अविराम बढ़ते रहने को दर्शाता है. सबसे नीचे हरे रंग के खूब सारे फुग्गे थे. देश के कृषि प्रधान होने, विकास और उर्वरता के प्रतीक का रंग है तिरंगे का हरा रंग.  मुस्कुराते हुये मुख्य अतिथि जी ने बंच आफ ट्राई कलर बैलून्स छोड दिये. कैमरा मैन एक्शन में आ गया, लैंस जूम कर, आकाश में गुब्बारो के गुम होते तक जितनी बन पड़ी उतनी फोटो खींच ली गईं. समाचार के साथ ऐसी फोटो न्यूज को आकर्षक बना देती है. नीले आसमान के बैकग्राउंड में, सूरज की सुनहली धूप के साथ, बंच आफ ट्राई कलर बैलून्स इन स्काई की फोटो खबर में देशभक्ति का जज्बा पैदा कर देती है. जब ओजस्वी उद्घोषणा होती है “झंडा उंचा रहे हमारा, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा” तो सचमुच स्टेडियम में उपस्थित हर किसी का सीना थोड़ा बहुत जरूर फूल जाता है.

पर कौन से अदृश्य हाथ हैं जो तिरंगे की तीनो रंग की पट्टियो की सिलाई उधाड़कर उन्हें अलग अलग करने पर आमादा है ? कौन सी ताकतें हैं जो जगह जगह बाग उजाड़ने में जुटी हुई हैं ? कौन है जो कहला रहा है कि  इस हिस्से को उस हिस्से से अलग कर दो ? तिरंगे का साया तो हमेशा से समता का पाठ पढ़ाता आया है. संविधान में केवल अधिकार नहीं कर्तव्य भी तो दर्ज हैं. देश का जन गण मन तो वह है, जहां फारूख रामायणी अपनी शेरो शायरी के साथ राम कथा कहते हैं. जहां मुरारी बापू के साथ ओस्मान मीर, गणेश और शिव वंदना गाते हैं. फिल्म बैजू बावरा का  भजन है मन तड़पत हरि दर्शन को आज, इस अमर गीत के संगीतकार नौशाद, गीतकार शकील बदायूंनी हैं,  तथा गायक मोहम्मद रफी हैं. तिरंगे ने कभी भी इन संगीत के महारथियों से उनकी जाति नही पूछी. आज के हालात पर बेचैन तिरंगे ने उस भीड़ से पूछा जो उसे हिला हिला कर आजादी की मांग कर रही थी कि मेरे साये में यह जातिगत भीड़ क्यों ? तो किसी से उत्तर मिला कि ऐसा केवल सोशल मीडीया पर दिख रहा है, जन गण मन तो आज भी वैसा ही है. आसमान के अनंत सफर पर ट्राईकलर बैलून बंच  ने कहा  आमीन ! काश सचमुच ऐसा ही हो ! यदि ऐसा है तो समझ लो कि इस भ्रामक सोशल मीडिया की उम्र ज्यादा नही है. क्योकि झूठ की जड़े नही होती, यह शाश्वत सत्य है.  बंच आफ ट्राई कलर बैलून्स इन स्काई साहस, शांति अविराम प्रगति और विकास का संदेशा लिये कुछ और ऊपर उड चला. आयोजन में बच्चे ड्रिल कर रहे थे और बैंड बजा रहा था इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के.

 

विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर .

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र # 11 ☆ कविता/गीत – वाग्देवी माँ मुझे स्वीकार लो☆ डॉ. राकेश ‘चक्र’

डॉ. राकेश ‘चक्र’

(हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. राकेश ‘चक्र’ जी  की अब तक शताधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  जिनमें 70 के आसपास बाल साहित्य की पुस्तकें हैं। कई कृतियां पंजाबी, उड़िया, तेलुगु, अंग्रेजी आदि भाषाओँ में अनूदित । कई सम्मान/पुरस्कारों  से  सम्मानित/अलंकृत।  इनमें प्रमुख हैं ‘बाल साहित्य श्री सम्मान 2018′ (भारत सरकार के दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड, संस्कृति मंत्रालय द्वारा  डेढ़ लाख के पुरस्कार सहित ) एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा ‘अमृतलाल नागर बालकथा सम्मान 2019’। अब आप डॉ राकेश ‘चक्र’ जी  का साहित्य प्रत्येक गुरुवार को  उनके  “साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र” के माध्यम से  आत्मसात कर सकेंगे । इस कड़ी में आज प्रस्तुत हैं  वसंत पंचमी के अवसर पर एक अतिसुन्दर रचना   “वाग्देवी माँ मुझे स्वीकार लो.)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – समय चक्र – # 11 ☆

☆ वाग्देवी माँ मुझे स्वीकार लो ☆ 

 

वाग्देवी माँ मुझे

स्वीकार लो

भाव सुमनों -सा

सजा संसार दो

 

शब्द में भर दो मधुरता

अर्थ दो मुझको सुमति के

मैं न भटकूँ सत्य पथ से

माँ बचा लेना कुमति से

 

भारती माँ सब दुखों से

तार दो

वाग्देवी माँ मुझे

स्वीकार लो

भाव सुमनों -सा सजा

संसार दो

 

कोई छल से छल न पाए

शक्ति दो माँ तेज बल से

कामनाएँ हों नियंत्रित

सिद्धिदात्री कर्मफल से

 

बुद्धिदात्री ज्ञान का

भंडार दो

वाग्देवी माँ मुझे

स्वीकार लो

भाव सुमनों -सा सजा

संसार दो

 

भेद मन के सब मिटा दो

प्रेम की गंगा बहा दो

राग-द्वेषों को हटाकर

हर मनुज का सुख बढ़ा दो

 

शारदे माँ! दृष्टि को

आधार दो

वाग्देवी माँ मुझे

स्वीकार लो

भाव सुमनों-सा सजा

संसार दो

 

डॉ राकेश चक्र

(एमडी,एक्यूप्रेशर एवं योग विशेषज्ञ)

90 बी,  शिवपुरी, मुरादाबाद 244001, उ.प्र .

मोबाईल –9456201857

e-mail –  [email protected]

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हिन्दी साहित्य ☆ कविता ☆ वसंत पंचमी विशेष – सरस्वती वन्दना ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

(प्रस्तुत है  हमारे आदर्श  गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा वसंत पंचमी  पर्व पर विशेष कविता  ‘सरस्वती वन्दना‘। ) 

 

 ☆ वसंत पंचमी विशेष – सरस्वती वन्दना ☆ 

शुभवस्त्रे हंस वाहिनी वीण वादिनी शारदे ,
डूबते संसार को अवलंब दे आधार दे !
हो रही घर घर निरंतर आज धन की साधना ,
स्वार्थ के चंदन अगरु से अर्चना आराधना
आत्म वंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है,
चेतना जग की जगा मां वीण की झंकार दे !
सुविकसित विज्ञान ने तो की सुखों की सर्जना
बंद हो पाई न अब भी पर बमों की गर्जना
रक्त रंजित धरा पर फैला धुआं और औ” ध्वंस है
बचा मृग मारिचिका से , मनुज को माँ प्यार दे
ज्ञान तो बिखरा बहुत पर , समझ ओछी हो गई
बुद्धि के जंजाल में दब प्रीति मन की खो गई
उठा है तूफान भारी , तर्क पारावार में
भाव की माँ हंसग्रीवी , नाव को पतवार दे
चाहता हर आदमी अब पहुंचना उस गाँव में
जी सके जीवन जहाँ , ठंडी हवा की छांव में
थक गया चल विश्व , झुलसाती तपन की धूप में
हृदय को माँ ! पूर्णिमा सा मधु भरा संसार दे

 

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

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हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ वसंत पंचमी विशेष – वसंत पंचमी के पांच रहस्य ☆ – डॉ उमेश चंद्र शुक्ल

डॉ उमेश चन्द्र शुक्ल  

(डॉ उमेश चंद्र शुक्ल जी की  वसंत पंचमी पर विशेष प्रस्तुति  वसंत पंचमी के पांच रहस्य।) 

☆ वसंत पंचमी विशेष – वसंत पंचमी के पांच रहस्य ☆ 

बसंत ऋतु में होली, धुलेंडी, रंगपंचमी, बसंत पंचमी, नवरात्रि, रामनवमी, नव-संवत्सर, हनुमान जयंती और गुरु पूर्णिमा उत्सव मनाए जाते हैं। इनमें से रंगपंचमी और बसंत पंचमी जहां मौसम परिवर्तन की सूचना देते हैं वहीं नव-संवत्सर से नए वर्ष की शुरुआत होती है। इसके अलावा होली-धुलेंडी जहां भक्त प्रहलाद की याद में मनाई जाती हैं वहीं नवरात्रि मां दुर्गा का उत्सव है तो दूसरी ओर रामनवमी, हनुमान जयंती और बुद्ध पूर्णिमा के दिन दोनों ही महापुरुषों का जन्म हुआ था।

श्रीकृष्ण ने कहा था ऋ‍तुतों में मैं वसंत हूं :

क्यों कहा ऐसा कृष्ण ने? क्योंकि प्रकृति का कण-कण वसंत ऋतु के आगमन में आनंद और उल्लास से गा उठता है। मौसम भी अंगड़ाई लेता हुआ अपनी चाल बदलकर मद-मस्त हो जाता है। प्रेमी-प्रेमिकाओं के दिल भी धड़कने लगते हैं। जो लोग ‘जागरण’ का अभ्यास कर रहे हैं उनके लिए वसंत ऋतु उत्तम है।

प्रेम दिवस :

वसंत पंचमी को मदनोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। कामदेव का ही दूसरा नाम है मदन। इस अवसर पर ब्रजभूमि में भगवान श्रीकृष्ण और राधा के रास उत्सव को मुख्य रूप से मनाया जाता है। औषध ग्रंथ चरक संहिता में उल्लेखित है कि इस दिन कामिनी और कानन में अपने आप यौवन फूट पड़ता है। ऐसे में कहना होगा कि यह प्रेमी-प्रेमिकाओं के लिए इजहारे इश्क दिवस भी होता है।

प्रकृति का परिवर्तन :

इस दिन से जो-जो पुराना है सब झड़ जाता है। प्रकृति फिर से नया श्रृंगार करती है। टेसू के दिलों में फिर से अंगारे दहक उठते हैं। सरसों के फूल फिर से झूमकर किसान का गीत गाने लगते हैं। कोयल की कुहू-कुहू की आवाज भंवरों के प्राणों को उद्वेलित करने लगती है। गूंज उठता मादकता से युक्त वातावरण विशेष स्फूर्ति से और प्रकृति लेती हैं फिर से अंगड़ाइयां।

देवी सरस्वती का जन्मदिन :

मूलत: यह पर्व ज्ञान की देवी सरस्वती के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। कवि, कथाकार, चित्रकार, गायक, संगीतकार और विचारकों के लिए इस दिन का महत्व है। सरस्वती देवी का ध्यान और पूजन ज्ञान और कला की शक्ति को बढ़ाता है।

प्राणायाम और ध्यान :

जिन्हें प्राणायाम का ज्ञान है वे जानते हैं कि इस मौसम में प्राणायाम करने का महत्व क्या है। इस मौसम में शुद्ध और ताजा वायु हमारे रक्त संचार को सुचारु रूप से चलाने में सहायक सिद्ध होती है। मन के परिवर्तन को समझते हुए ध्यान करने के लिए सबसे उपयोगी ऋतु सिद्ध हो सकती है।?

 

प्रस्तुति – डॉ.उमेश चन्द्र शुक्ल

अध्यक्ष हिन्दी-विभाग परेल, मुंबई-12
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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं # 33 – व्यवहार  ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

 

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है उनकी  मानवीय आचरण के एक पहलू को दर्शाती लघुकथा  “व्यवहार  । )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं – #33☆

☆ लघुकथा – व्यवहार ☆

माँ बेटी से परेशान थी और बेटी माँ. दोनों को एक दूसरे की आदतें नहीं सुहाती थी. इस से दोनों को नींद में चलने व बोलने की बीमारी हो गई थी.

“यह बूढ़िया भी न जाने कब तक जीएगी. यह मर क्यों नहीं जाती. ताकि इस की टोका टोकी से मुक्ति मिलें. यह जब तब मेरे मोबाइल में तांक झांक करती रहती है. मैं किस से बात करती हूँ,  क्या करती हूँ. कहां जाती हूँ. इसे मुझसे से क्या लेना देना है. ………..’’ यह बड़बड़ाते हुए बेटी बरामदें में टहल रही थी.

इधर माँ कह रही थी, “इस लड़की को न जाने क्या रोग लग गया. न जाने किस किस से बातें करती रहती है. कहीं किसी लड़के के साथ भाग गई या उस से मुंह काला करवा लिया तो मेरी नाक कट जाएगी. भगवान ! मैं क्या करूं ताकि इस नासपीटी को इस बीमारी से छुटकारा मिल जाए”,  कहते हुए माँ भी बरामदे में टहलते टहलते आ गई.

दोनों नींद में टहल रही थी. तभी दोनों एक दूसरे से टकरा गई.

अचानक हड़बड़ा कर माँ बेटी की नींद खुल गई.

“मां ! तू यहाँ क्या कर रही है? ”

“अरे ! तू यहां क्या कर रही है ?”’’ दोनों हड़बड़ा कर एक दूसरे से बोली.

“माँ! मैं तो जल्दी उठ कर पानी भरना चाहती थी ताकि तू परेशान न हो. तुझे आराम मिले. हर माँ की सेवा करना बेटी का फर्ज होता है.”

“अच्छा नासपीटी”, माँ ने मन ही मन बड़बड़ाते हुए कहा,  “बेटी ! तू सो जा चिंता मत कर. मैं पानी भर लूंगी. तू दिन भर पढ़ लिख कर थक जाती है. इसलिए तू आराम कर.” मां ने बुरा सा मुंह बना कर कहा. मगर, यह ध्यान रखा कि उस का मुंह बेटी न देख ले.

“अच्छा  माँ,  मेरी प्यारी माँ,  “बुरासा मुंह बनाते हुए बेटी अपनी मां से लिपट गई. मगर,  दोनों नींद में कही गई अपनी अपनी भावनाएं दबा गई. आखिर व्यवहारिकता का यही सलीका है.

 

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) मप्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

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हिन्दी साहित्य ☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 3 ☆ चिड़चिड़ी खिचड़ी* ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एकअतिसुन्दर व्यंग्य रचना “चिड़चिड़ी खिचड़ी*। अब आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 3☆

☆ चिड़चिड़ी खिचड़ी

 

सुबह – सुबह  से खिचड़ी खाने  को  मिल  जाए तो  दिमाग़ ख़राब हो जाता है । ऐसी बीमारी लगी  है जिसका कोई इलाज ही नहीं ।  शक लाइलाज  बीमारी  होती  है सुना  था  पर आजकल तो रोग और रोगी दोनों ही बदल गए हैं तकनीकी का युग है सो बीमारी भी  चार कदम आगे बढ़ गयी  ।

बातों ही बातों में स्वीटी से पूछा  कि बेटा कोई नयी खबर तो नहीं आयी,  आजकल सबसे पहले  युवा पीढ़ी ही  खबर सुनाती है । अब तो सारे विद्वान  विश्लेषक बन अपनी राय ट्विटर व , फेसबुक पर ही पोस्ट करते हैं । सभी अपने – अपने कारनामे इसी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से प्रदर्शित कर लाइक , कमेंट और शेयर की अनोखी चाह रखते हैं ।

अरे दादा कल सारा दिन मोबाइल डब्बा था न खुल  रहा था न ही बन्द हो रहा था शाम को कलाकारी करके सुधार डाला बड़ी मुश्किल से सुधरा,   जैसे  ही खुला लग रहा था क्या पढ़ूँ और क्या छोड़ दूँ ??  कुछ दिमाग काम ही नहीं कर रहा था, इतने मैसेज आ चुके थे । बड़ी मुश्किल से कुछ पढ़ा कुछ हटाया तब कहीं जाकर मोबाइल सही हुआ  फिर रात में नींद ही न आये तो मैनें सोचा कुछ काम ही कर लिया जाए  वैसे भी बड़े बूढ़े कहते हैं काल से सो आज कर ।

स्वीटी को छेड़ते हुई भाभी  ने  कहा *ननद रानी इसमें इंफेक्शन हो जाता है, जब ऐसा हो  तो इसको स्प्रिट में डुबोकर रखा करो और साथ ही ओ आर एस  घोल  भी पिला दिया करो……*

मुस्कुराते हुए  स्वीटी ने कहा स्प्रिट की जरूरत नहीं उसे थोड़ा सुकून से  रहने की जरूरत पड़ती है ।

बुजुर्ग हो गया  है क्या छोटे भाई ने छेड़ते हुए कहा ?

ज्यादा बुजुर्ग तो नहीं है लेकिन इसकी तबियत ठीक नहीं रहती  है ।

बिन माँगी सलाह देने में होशियार अम्मा जी ने कहा  योगशाला  में भेजो, नियमित प्राणायाम व आसन से चमत्कारिक लाभ होगा ।

वाह, अब सही हो गया,  काम-वाम मत बताया करो इन्हें , कौन बोला ??

इतनी फिक्र करके वही काम करता है जो घर को अपना समझता है , बहना  को घर  प्रमुख होना चाहिए बड़े भाई ने कहा ।

जी दादा सही कहा आपने ।

नमन है इनकी कर्मठता और लगनशीलता को छोटे भाई ने कहा ।

झूठ बोलने की आदत नहीं गयी बचपन से, सच बोलना कब सीखोगी । किसी ने सिखाया नहीं क्या ? बड़े भाई ने मुस्कुराते हुए बहना  से कहा ।

मैनें ये कब कहा कि नहीं  सिखाया गठबन्धन की सरकार ऐसे ही चलती है । आपने सत्य बोलना कहाँ से सीखा  स्वीटी ने पूछा ।

असल में मैंने खिचड़ी की तरह सीखा। मिक्चर होकर, कई जगह ,कई लोगों से और अभी भी खिचड़ी ही चल रही है।

मुझे भी लगता है खिचड़ी की तरह ही सत्य सीखना पड़ेगा । पर मुझे ये कैसे पता चलेगा का कि कहाँ- कहाँ सत्य के पकवान व खिचड़ी पकी ताकि मैं भी वहीं जा कर सीख सकूँ ।

खिचड़ी  ज्यादा दिनों तक लोग पसंद नहीं करते कोई विशिष्ट व्यंज्जन बनना ही श्रेयस्कर होता है आप तो मालपुआ बनाना सीखें ।  *माल संग पुआ* वाह क्या बात है ?  छोटे भाई ने कहा ।

तुम्हे  खिचड़ी पकानी भी है और खानी भी है,

कहीं जाने की जरूरत नहीं बस चुपचाप पेट भरती  रहो दादा ने  कहा ।

मुझे खिचड़ी पकाना नहीं आता,

सही कहा…. कुछ अच्छा सा आइटम बताइए ।

पसंद अपनी अपनी, मेरी कभी खाने में कोई चीज पसंद की रही ही नहीं जो मिल गया सो खा लिया,  इस घर में आने के बाद पसंद क्या होती है ये मैंने जाना भाभी ने कहा ।

मतलब बहुत जल्द ही हम भी पसंद की चीजें खाने लगेंगे ।

केवल सर्वोत्तम ही पसंद आयेगा । भाभी ने हँसते हुए कहा ।

काहे मेहनत कर रही हो बिटिया जिसके यहां भी अच्छा बने खा आओ । कोई भी तुम्हे मना  नहीं करेगा ,अम्मा जी ने कहा ।

गलत राय मत दो अम्मा जी , जिसने भी खिचड़ी पकाई उसमें से आधे से ज्यादा को तो दादा ने  परेशान किया बाकी को  आपने भाभी ने गम्भीर होते हुए कहा ।

बिल्कुल अम्मा जी कभी- कभी तो मैं ऐसा ही करती हूँ, बगल में आंटी रहती हैं जब कुछ अच्छा बना होता है जाकर खा आते हैं । मतलब मुझे खिचड़ी नहीं पकानी है ।

आपने सच बोलना नहीं सिखाया बस । बाकी तो सब आपने ही सिखाया ,फिर झूठ  मेरे नहीं तुम्हारे बड़के भैया के शब्दों में ,मानना पडे़गा, भाभी ने कहा ।

सबको खुश रखती हैं भाभी। सकारात्मकता कहेंगे इसे छोटा भाई कहने लगा ।

बहुत से वाक्य व्यंग्य के उल्कापात की तरह गिर रहे हैं । इऩके चक्कर में मत पड़ो । कहीं की नहीं रहोगी । उड़ीसा में खिचड़ी प्रसाद होता है । कहीं जाने की जरूरत नहीं पड़ती खिचड़ी वाले खुद प्रसाद/ज्ञान बाँटते घूमते हैं दादा ने कहा ।

तभी पिताजी ने  बात को  समाप्त  करने के उद्देश्य से कहा खिचड़ी हमारा राष्ट्रीय व्यंजन है स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक… तुम खाने से मतलब रखो ।

दादा लोग हैं न ,मुझे पकानी नहीं आती मैं तो प्रचारक हूँ ।

बहुत हो  गयी चर्चा ,अब करो खर्चा ।

हींग का देय बघार, कम  डाल  मिर्चा ।।

सब खिलखिला कर हँस पड़े ।

 

छाया सक्सेना ‘ प्रभु ‘

 

© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

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मराठी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुजित साहित्य # 32 – मराठी क्षणिकाएं ☆ श्री सुजित कदम

श्री सुजित कदम

 

(श्री सुजित कदम जी  की कवितायेँ /आलेख/कथाएँ/लघुकथाएं  अत्यंत मार्मिक एवं भावुक होती हैं. इन सबके कारण हम उन्हें युवा संवेदनशील साहित्यकारों में स्थान देते हैं। उनकी रचनाएँ हमें हमारे सामाजिक परिवेश पर विचार करने हेतु बाध्य करती हैं. मैं श्री सुजितजी की अतिसंवेदनशील  एवं हृदयस्पर्शी रचनाओं का कायल हो गया हूँ. पता नहीं क्यों, उनकी प्रत्येक कवितायें कालजयी होती जा रही हैं, शायद यह श्री सुजितजी की कलम का जादू ही तो है!  आज प्रस्तुत है  एक तीन मराठी “मराठी क्षणिकाएं ” )

☆ साप्ताहिक स्तंभ – सुजित साहित्य #33☆ 

☆ मराठी क्षणिकाएं ☆ 

 

लेकराला कुशीत घेतल्यावर

मिळणार सुख हे

कित्येक वेळा

निःशब्द करून जातं…..!

♦ ♦ ♦ ♦ ♦ ♦ ♦ ♦

माझ्या

कमावत्या हातात

जेव्हा मी .. .

लेकराचा इवलासा

हात पकडतो ना.. .

तेव्हा खरंच

श्रीमंत झाल्यासारखं वाटतं….!

♦ ♦ ♦ ♦ ♦ ♦ ♦ ♦

हल्ली हल्ली शब्दांचाही

विसर पडू लागलाय

हे आयुष्या तुला संभाळता संभाळता….,

अक्षरांचा हात सुटू लागलाय..

 

© सुजित कदम, पुणे

7276282626

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ How to Laugh: Taught by Anupam Kher, Veteran International Actor  – Video #5 ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

 ☆ How to Laugh: Taught by Anupam Kher, Veteran International Actor  ☆ 

Video Link >>>>

LAUGHTER YOGA: VIDEO #5

In this video, veteran international actor, Anupam Kher, teaches you how to breathe in and laugh. It’s lucid, technically sound and beautifully demonstrated.

Laughing is a valuable life skill that drives all the stress away. We are especially bringing this video for all beginners, laughter lovers/ practitioners/therapists and Laughter Yoga Leaders/ Teachers/ Master Trainers across the globe.Use this technique freely for the benefit of all in laughter therapy and laughter clubs.

We express our deep gratitude to Anupam Kher whom we all admire and adore!

Our Fundamentals:

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga.
We conduct talks, seminars, workshops, retreats, and training.
Email: [email protected]

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

Please feel free to call/WhatsApp us at +917389938255 or email [email protected] if you wish to attend our program or would like to arrange one at your end.

Jagat Singh Bisht : Founder: LifeSkills

Master Teacher: Happiness & Well-Being; Laughter Yoga Master Trainer
Past: Corporate Trainer with a Fortune 500 company & Laughter Professor at the Laughter Yoga University.
Areas of specialization: Behavioural Science, Positive Psychology, Meditation, Five Tibetans, Yoga Nidra, Spirituality, and Laughter Yoga.

Radhika Bisht ; Founder : LifeSkills  
Yoga Teacher; Laughter Yoga Master Trainer

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – दशम अध्याय (4-5) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

दशम अध्याय

( विभूति योग)

 

बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोहः क्षमा सत्यं दमः शमः ।

सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ।।4।।

 

अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः ।

भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः ।।5।।

 

बुद्धि ज्ञान शम दम क्षमा सत्य मोह व्यामोह

सुख दुख भावाभाव भय अभय काम ओै” क्रोध।।4।।

 

तुष्टि तपस्या दान यश अयश अहिंसा साम्य

होते मन में भाव ये मुझसे काम्य अकाम।।5।।

 

भावार्थ :  निश्चय करने की शक्ति, यथार्थ ज्ञान, असम्मूढ़ता, क्षमा, सत्य, इंद्रियों का वश में करना, मन का निग्रह तथा सुख-दुःख, उत्पत्ति-प्रलय और भय-अभय तथा अहिंसा, समता, संतोष तप (स्वधर्म के आचरण से इंद्रियादि को तपाकर शुद्ध करने का नाम तप है), दान, कीर्ति और अपकीर्ति- ऐसे ये प्राणियों के नाना प्रकार के भाव मुझसे ही होते हैं।।4-5।।

 

Intellect, wisdom, non-delusion, forgiveness, truth, self-restraint, calmness, happiness, pain, birth or existence, death or non-existence, fear and also fearlessness.।।4।।

 

Non-injury, equanimity,  contentment,  austerity,  fame,  beneficence,  ill-fame-(these) different kinds of qualities of beings arise from Me alone.।।5।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

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