हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 28 ☆ कुमाऊं ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जीसुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “कुमाऊं”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 28☆
जुलाई में जब बादल फूटा था-
हर तरफ बेबसी का आलम था,
एहसास पानी के आवेग में डूब रहे थे,
भावों का नाम-ओ-निशाँ नहीं था,
ख्वाहिशें लाश की तरह टपक रही थीं|
कुछ महीनों बाद
बेबसी को सब भूल चुके थे,
एहसास फिर उभर आये थे,
और ख्वाहिशों का भी जनम हो चुका था-
हर तरफ ख़ुशी झरनों सी फूट रही थी!
ऐसा लगता था जैसे सब
भूल चुके हैं
जुलाई की वो शाम,
पर जिसने देखा था उसे
या जिसने महसूस किया था उसे,
उसका दिल पथरा चुका था
और शायद आंसू भी सूख चुके थे-
एक अजब सी खामोशी थी
जो हौले हौले उसे बनाती जा रही थी
जीती-जागती लाश!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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