श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(आज प्रस्तुत है श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी द्वारा रचित बदलते हुए ग्राम्य परिवेश पर आधारित एक अतिसुन्दर भोजपुरी कविता – रोटी । इस रचना के सम्पादन के लिए हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी के हार्दिक आभारी हैं । )
(प्रत्येक रविवार श्री सूबेदार पाण्डेय जी की धारावाहिक उपन्यासिका “पगली माई – दमयंती“ पढ़ना न भूलें)
☆ भोजपुरी कविता – रोटी ☆
रोटी में जान हौ रोटी में परान हौ,
गरीबन के भूख मिटावत बा रोटी।
लड़िका सयान हो या बुढ़वा जवान हो,
सबके पेटे क आग बुझावत बा रोटी।
चाहे दाता हो, या भिखारी हो,
चाहे बड़कल अधिकारी हो
या नामी-गिरामी नेता हो ,
सबही के देखा नचावत हौ रोटी।
गेहूं क रोटी औ मडुआ क रोटी,
बजड़ी क रोटी अ घासि क रोटी।
रोटी के रूप अनेकन देखा,
अपमान क रोटी त मान क रोटी।
रोटी खातिर रात दिन बुधई, किसानी करें,
रोटी खातिर राजा-रंक घरे-घरे भरै पानी।
नित नया इतिहास बनावत हौ रोटी,
भूखि क मतलब समझावत हवै रोटी।
देखा केहू सबके बांटत हौ रोटी,
न केहू के तावा पर आंटत हौ रोटी ।
रोटी की चाह में सुदामा द्वारे-द्वारे घूमें,
राणा खाये नाही पाये घासि क रोटी।
जब से जहान में अन्न क खेती भईल,
तब से ही बनत बा बाड़ै में भोजन रोटी।
काग भाग सराहल जाला,
छिनेले जो हरि हाथ से रोटी।
इंसान रोटी क रिस्ता पुराना बाड़ै,
सुबह शाम दूनौ जून खाये चाहै रोटी।
जीवन क पहिली जरूरत हौ रोटी,
जीवन क पहिली चाहत बा रोटी
-सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208
मोबा—6387407266