सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जीसुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “जोश”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 26 ☆
जब सीली रात के झरोखे से
पूनम का चाँद मुस्कुराया,
चांदनी की जुस्तजू ग़ज़ब थी!
मैं भी उड़कर
पहुँच गयी आसमान की गोद में
और पी ली मैंने भी
दूधिया चांदनी!
तब से न जाने
मेरे ज़हन में जोश की
कई शाखाएं उग आयीं
और बन गयी मैं एक हरा दरख़्त
जो अपनी ख़ुशी ख़ुद ही ढूँढ़ लेता है!
अब तो इस दरख़्त में
कई गुल खिल उठे हैं
और ये सारे जहां को महकाते हैं
और देते हैं छाँव
उन सारे मुसाफिरों को
जो तनिक भी ग़म से पीड़ित हो उठते हैं!
कभी-कभी
मैं भी बैठ जाती हूँ
उसी दरख़्त के नीचे
और चूसने देती हूँ उमंग के फल
अपने ही जिगर को,
कि कहीं मेरी शाखाएं
कोई तोड़ न दे!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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