श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’  

श्रीमती कृष्णा राजपूत ‘भूमि’ जी  एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू,  हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आज प्रस्तुत है  एक अत्यंत विचारणीय , मार्मिक एवं भावुक लघुकथा  “एक नारियल की खातिर। श्रीमती कृष्णा जी की यह लघुकथा नर्मदा तट पर बसे  उन परिवारों के जीवन का कटु सत्य बताती है जो भुखमरी की कगार पर जी रहे हैं साथ ही बच्चे  जो  अपना जीवन दांव पर लगा कर  चन्द   सिक्कों या नारियल के लिए  गहरी  नदी  में कूद जाते हैं। इस अतिसुन्दर रचना के लिए श्रीमती कृष्णा जी बधाई की पात्र हैं।)

☆ साप्ताहक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य  # 17 ☆

☆ लघुकथा – एक नारियल की खातिर ☆

 

नर्मदा की यात्रा के लिए आसपास की खोज के अन्तर्गत  शाला के विद्यार्थी ले जाये गए। सभी ने आसपास की खोज की। बहुत बातें पढ़ी लिखी और कुछ जानी पहचानी।

बहुत सारे बच्चे नदी तट पर खड़े थे।  तट से या नाव से पानी मे कूदते बच्चे आसानी से देखे जा सकते हैं। उनके शरीर पर मैले कुचैले बदबूदार कपड़े थे। वे पानी में तब छलांग  लगाते  जब कोई सिक्के डालता। सिक्के निकालने की होड़ सी लग जाती। बहुत सारे ऐसे बच्चे वहाँ यही काम करते बल्कि यूँ कहे कि उनका घर इन्हीं पैसो से चल रहा था।

किसी ने नारियल  पानी में उछाल दिया।  अचानक बहुत सारे गरीब बच्चे एक साथ वहां नदी किनारे आ गए और उस नारियल को पकड़ने दौड़ पड़े। इस ऊहापोह मे नारियल एक पतले दुबले से लड़के के हाथ लग गया। सभी बच्चे उससे खींचा तानी करने लगे, पर उस बच्चे ने वह नारियल न छोड़ा और बडे़ बड़े कदमो को पानी में मार बाहर निकल दौड़ने लगा। वही बच्चे जो नदी में थे, बाहर उसे घेर कर बाँस के बड़े बड़े लटठ लेकर मारने खड़े हो गये। वहाँ  यह बात हर रोज होती थी। वे नारियल छीनने लगे पर बच्चे ने कसकर नारियल पकड़ रखा था।

सो वे सभी उसे मारने लगे।  वह बहुत  मार खाता रहा पर नारियल न छोड़ा। किसी ने पास के तम्बु मे रहने वाली उसकी माँ को खबर दी। माँ दौड़ी दौड़ी उन बच्चों से अपने बच्चे को  अलग ले आई और रो रोकर कहने लगी- “क्यों कूदा नदी मे नारियल की खातिर? क्या होता यदि हम आज और भूखे रहते?”

बच्चा पिटने के कारण दर्द से कराह रहा था।  उसनें फिर भी नजर उठा देखा, कही वह बच्चे तो नहीं और फिर उसने पानी से उठाया नारियल अपनी माँ को दे चैन की साँस ली और अचेत हो गया। पर उसके चेहरे पर चिंता के भाव की जगह शान्ति के भाव थे और माँ नारियल हाथ मे ले सोच रही थी, आज मेरे  बच्चे भूखे न सोयेंगे।  कुछ तो पेट भरेगा उनका। और बेटे को गले लगा फफक फफक कर रो उठी।

 

© श्रीमती कृष्णा राजपूत  ‘भूमि ‘

अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश

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