श्री आशीष कुमार

(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में  साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब  प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे  उनके स्थायी स्तम्भ  “आशीष साहित्य”में  उनकी पुस्तक  पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय।  इस कड़ी में आज प्रस्तुत है  एक महत्वपूर्ण आलेख  “वर्णसंकर। )

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य # 35 ☆

☆ वर्णसंकर

सभी चारों वर्णों में चार मुख्य दोष या विकार भी होते हैं प्रत्येक वर्ण में एक-एक । ब्राह्मणों में मोह या लगाव नामक विकार होता है, क्षत्रियों में क्रोध विकार होता है, लोभ या लालच वैश्यों का विकार है, और शूद्रों में काम-अवैध यौन संबंध विकार होता है । अब विभिन्न वर्णों में ये दोष कहाँ से आते हैं? आप कह सकते हैं कि ये दोष या विकार प्रकृति के विभिन्न गुणों के दुष्प्रभाव हैं । मोह शरीर और मस्तिष्क में अतिरिक्त या ज्यादा सत्त्व का दुष्प्रभाव है (सत्त्व प्रकृति के तीनों गुणों में सबसे शुद्ध और श्रेष्ठ है लेकिन फिर भी यह भौतिकवाद के अधीन ही है और इसकी अति भी नकरात्मकता उत्पन्न करती है)। क्रोध शरीर और मस्तिष्क में राजस गुण की अधिकता का दुष्प्रभाव है (राजस का अर्थ गतिविधि, गति, बेचैनी है जो निश्चित रूप से क्रोध में वृद्धि करता है), और इसी तरह अन्य दो वर्णों के लिए भी । चारों वर्णों में कई अन्य मामूली दोष भी होते हैं । जब वर्ण व्यवस्था बनाई गयी थी तब ब्राह्मणों में कम से कम दोष होते थे, क्षत्रियों में ब्राह्मणों से अधिक और बाकी दो से कम, और इसी तरह से अन्य वर्णों के लिए ।

अब अंतरजातीय विवाह और वर्णसंकर को समझने की कोशिश करें। मान लीजिए कि एक ब्राह्मण लड़का वैश्य लड़की से शादी करता है । झूठ बोलना भी वैश्य वर्ण का एक दोष है, क्योंकि व्यापार में यदि आप झूठ नहीं बोलते हैं तो आपको व्यापार में लाभ नहीं मिल सकता है । अब मान लीजिए कि विवाह के परिणाम स्वरूप इस ब्राह्मण पुरुष और वैश्य लड़की के यहाँ एक लड़के का जन्म होता है । मान लीजिए कि जब यह लड़का बड़ा हो जाता है तो वह अपने वंश के अनुसार ब्राह्मण के कार्यों शिक्षक या पुजारी या ज्योतिषी आदि को अपनाकर अपने गृहस्थ जीवन को चलाने के लिए धन अर्जित करना चाहता है। अब इस लड़के में अपने पिता और माता दोनों के गुण होना स्वाभाविक हैं, इसका अर्थ है कि उसके अंदर वैश्य जैसे लालच और झूठ बोलने का दोष भी अपनी माता से आ गया होगा । तो क्या वह पुजारी के अपने कर्तव्य का पालन करने में सक्षम हो सकता है? क्या लालच उसके मस्तिष्क में नहीं आयेगा जब वह किसी व्यक्ति के लिए अनुष्ठानों और समारोहों के लिए कुछ पूजा या कर्मकाण्ड करेगा? हर बार जब भी कोई उसे यज्ञ या अन्य धार्मिक अनुष्ठानों आदि के लिए आमंत्रित करेगा तो क्या उसका लालच समय के साथ साथ नहीं बढ़ेगा? वह उन्हें पूरी श्रध्दा या ध्यान से नहीं कर पायेगा क्योंकि उसका लक्ष्य केवल धन एकत्र करना होगा । इसके अतिरिक्त, अगर किसी ने उससे पूछा कि क्या वह अनुष्ठान ठीक से कर रहा है, तो क्या वह झूठ नहीं बताएगा कि “हाँ मैं ठीक से कर रहा हूँ” क्योंकि उसमे अपनी माँ वैश्य के गुण भी प्राप्त हुए हैं । और जिन लोगों के लिए वह इन अनुष्ठानों को करेंगे, उन्हें गलत अनुष्ठानों के कारण नकारात्मक प्रभाव का सामना भी करना पड़ेगा ।

इसी तरह कल्पना करें कि यदि वह ज्योतिषी के पेशे का विकल्प चुनता है, तो क्या वह पैसे कमाने के लिए गलत भविष्यवाणी नहीं करेगा और वह अपने ग्राहकों को कुछ अंधविश्वास पूर्ण अनुष्ठान या दान देने के लिए मजबूर भी कर सकता है ।

इसी प्रकार एक शूद्र लड़की के साथ एक क्षत्रिय लड़के के अंतरजातीय विवाह की परिस्थिति लें । मान लीजिए कि ऐसे विवाह के पश्चात एक लड़की का जन्म हुआ, जिसमें क्रोध और वासना का दोष पैतृक रूप से आ जायेगा ।

क्या यह समाज में अवैध यौन संबंध और अपराध (क्रोध और वासना के कारण) नहीं बढ़ाएगा? इस प्रकार के अवैध यौन संबंध जातियों और वर्णो के नियमों से परे हैं जो अवश्य ही शादी के लिए लड़के और लड़की के गुणों को मेल करके करने चाहिए (यहाँ शादी में लड़के और लड़की की जन्म कुंडली और शादी समारोह में किये जाने वाले अनुष्ठानों और कर्मकांडो के आलावा उनके प्रकृति के तीन गुणों सत्व, राजस और तामस के संयोजन का मिलान भी है) ।

इस तरह के वर्णसंकर से दुनिया की वर्तमान स्थिति की कल्पना करें, जो वास्तव में सभी के लिए अराजक हो चुकी है । मैंने आपको एक स्तर का उदाहरण दिया है । अब आप कल्पना करें कि अभी तक जातियों के बीच कितना मिश्रण और अंतर-मिश्रण हो चूका है । तो जरा सोचिये मानव शरीर और मस्तिष्क के अंदर प्रकृति के तीनों गुण सत्त्व, राजस और तामस कितने पतले (dilute) हो चुके हैं । यही कारण है कि कलियुग नरक से भी बुरा है । यहाँ राजनेता जनता के पैसे को उड़ा रहे हैं । ब्राह्मण माँसाहारी भोजन तक कर रहे है यहाँ तक की लोग परिवारों के भीतर भी अवैध यौन संबंध स्थापित कर रहे हैं । लोग छोटी छोटी बातों के लिए एक-दूसरे की हत्या कर रहे हैं । और आप जानते हैं कि यह सब शुरू हुआ केवल वर्णसंकर की वजह से ।

आशीष एक पत्थर की मूर्ति की तरह खड़ा था । उन्होंने अपनी चेतना एकत्र की और विभीषण से कहा, “महोदय, क्या इसका कोई समाधान नहीं है? इस परिदृश्य के अनुसार, भविष्य में परिस्थितियाँ और भी बदतर हो जाएंगी?”

कहा, “मेरे प्रिय मित्र, यह कलियुग का भविष्य है और यह ऐसा ही है । यहाँ तक ​​कि अगर हम लोगों को इसके विषय में बताने की कोशिश करते हैं, और कहते हैं कि वे गलत कर रहे हैं, तो वे हमारी बात नहीं सुनेंगे । मैंने आपको बताया कि प्रत्येक युग के अपने नियम हैं और भगवान विष्णु प्रत्येक युग में पृथ्वी के लोगों की सहायता के लिए आते हैं और उस युग की आवश्यकताओं के अनुसार धर्म को फिर से स्थापित करते हैं । त्रेतायुगमें भगवान राम के रूप में आये थे, जिन्होंने कभी कोई नियम नहीं तोड़ा और पक्षियों, बंदरों, आदि जैसे ब्रह्मांड के छोटे जीवों की सहायता से रावण जैसे राक्षस का अंत किया और शारीरिक बल के उपयोग से नकारात्मकता समाप्त की । द्वापर युग में भगवान कृष्ण के रूप में आये जिन्होंने हमें सिखाया कि पारिवारिक जीवन का आनंद भोगते हुए भगवान की प्राप्ति कैसे की जाये और हमें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ भगवद गीता दिया । लेकिन कलियुग में यदि हम भगवद गीता के ज्ञान को आम लोगों को देने का प्रयास करेंगे, तो वे इसे सुनेंगे लेकिन अपने अमल में नहीं लायेंगे । कलियुग के लिए, भगवान की अलग योजना हैं, बस प्रतीक्षा करें और आपको याद रखना चाहिए कि भगवान विष्णु के कलियुग का अवतार अपने हाथों में तलवार के साथ आयेगा”

© आशीष कुमार  

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