श्री जय प्रकाश पाण्डेय
पिता की याद
पिता बैठते हैं कभी
कभी इधर कभी उधर,
कभी अमरूद के नीचे
कभी परछी के किनारे
कभी खोलते हैं कुण्डी
कभी बंद करते हैं किवाड़
गाय को डालते हैं चारा
बछिया को पिलाते दूध
लौकी की बेल पकड़ लेते
फिर खीरा तोड़ ले आते
अम्मा पर चिल्लाने लगते
आंगन के कचरे से चिढ़ते
चिड़ियों को दाना डाल देते
कभी चिड़चिड़े रोने लगते
बरसते पानी में भीगने लगते
पिता हर जगह मौजूद रहते
सूरज की रोशनी के साथ
पिता जब भी याद आते
तन मन में भूकंप भी लाते
© जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जय प्रकाश पाण्डेय, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा हिन्दी व्यंग्य है। )