श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
एकादश अध्याय
(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )
मी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्राः सर्वे सहैवावनिपालसंघैः ।
भीष्मो द्रोणः सूतपुत्रस्तथासौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्यैः ।।26।।
वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि ।
केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु सन्दृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गै ।।27 ।।
सभी पुत्र धृतराष्ट्र के , नृपति जो रत संग्राम
भीष्म द्रोण सह कर्ण सम योद्धा कई अनाम ।। 26 ।।
दिखते घुसते मुखों में जिनमें दाँत कराल
कुछ पिस गये , कुछ अधचबे , बड़ा बुरा है हाल ।।27 ।।
भावार्थ : वे सभी धृतराष्ट्र के पुत्र राजाओं के समुदाय सहित आप में प्रवेश कर रहे हैं और भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य तथा वह कर्ण और हमारे पक्ष के भी प्रधान योद्धाओं के सहित सबके सब आपके दाढ़ों के कारण विकराल भयानक मुखों में बड़े वेग से दौड़ते हुए प्रवेश कर रहे हैं और कई एक चूर्ण हुए सिरों सहित आपके दाँतों के बीच में लगे हुए दिख रहे हैं।। 26-27 ।।
All the sons of Dhritarashtra with the hosts of kings of the earth, Bhishma, Drona and Karna, with the chief among all our warriors,।।26।।
They hurriedly enter into Thy mouths with terrible teeth and fearful to behold. Some are found sticking in the gaps between the teeth, with their heads crushed to powder.।।27 ।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर