श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”
(प्रत्येक रविवार हम प्रस्तुत कर रहे हैं श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी द्वारा रचित ग्राम्य परिवेश पर आधारित एक धारावाहिक उपन्यासिका “पगली माई – दमयंती ”।
इस सन्दर्भ में प्रस्तुत है लेखकीय निवेदन श्री सूबेदार पाण्डेय जी के ही शब्दों में -“पगली माई कहानी है, भारत वर्ष के ग्रामीण अंचल में पैदा हुई एक ऐसी कन्या की, जिसने अपने जीवन में पग-पग पर परिस्थितिजन्य दुख और पीड़ा झेली है। किन्तु, उसने कभी भी हार नहीं मानी। हर बार परिस्थितियों से संघर्ष करती रही और अपने अंत समय में उसने क्या किया यह तो आप पढ़ कर ही जान पाएंगे। पगली माई नामक रचना के माध्यम से लेखक ने समाज के उन बहू बेटियों की पीड़ा का चित्रांकन करने का प्रयास किया है, जिन्होंने अपने जीवन में नशाखोरी का अभिशाप भोगा है। आतंकी हिंसा की पीड़ा सही है, जो आज भी हमारे इसी समाज का हिस्सा है, जिनकी संख्या असंख्य है। वे दुख और पीड़ा झेलते हुए जीवनयापन तो करती हैं, किन्तु, समाज के सामने अपनी व्यथा नहीं प्रकट कर पाती। यह कहानी निश्चित ही आपके संवेदनशील हृदय में करूणा जगायेगी और एक बार फिर मुंशी प्रेमचंद के कथा काल का दर्शन कराती है ।” )
इस उपन्यासिका के पश्चात हम आपके लिए ला रहे हैं श्री सूबेदार पाण्डेय जी भावपूर्ण कथा -श्रृंखला – “पथराई आँखों के सपने”
? धारावाहिक उपन्यासिका – पगली माई – दमयंती – श्रद्धांजलि ?
(जब लेखक किसी चरित्र का निर्माण करता है तो वास्तव में वह उस चरित्र को जीता है। उन चरित्रों को अपने आस पास से उठाकर कथानक के चरित्रों की आवश्यकतानुसार उस सांचे में ढालता है। रचना की कल्पना मस्तिष्क में आने से लेकर आजीवन वह चरित्र उसके साथ जीता है। श्री सूबेदार पाण्डेय जी ने इस चरित्र को पल पल जिया है। रचना इस बात का प्रमाण है। उन्हें इस कालजयी रचना के लिए हार्दिक बधाई। )
जिस बरगद के पेड़ के नीचे से पगली माई की अर्थी उठी थी, उसी जगह उसकी समाधि कुछ संभ्रांत लोगों ने मिलकर बनवा दी थी।
पगली माई का शव, उसकी इच्छा के अनुसार एनाटॉमी विभाग में छात्रों के शोध कार्य के लिए रख दिया गया था।
उसके नेत्र से दो अंधों की आंखों को रोशनी का उपहार मिला था, जिसका श्रेय पगली की सकारात्मक सोच को जाता है।
इस प्रकार अपने जीवन के अंतिम क्षणों में लिए गये संकल्प को पगली माई ने साकार कर समाज के सामने एक अनूठी पहल की थी, जिसकी सर्वत्र सराहना हो रही थी।
उसकी प्रेरणा उस मेडिकल कालेज के हर छात्र की प्रेरणा श्रोत बन उभरी थी।
अब उस समाधि स्थल पर पहुचने वाला हर इंसान उसकी समाधि पर श्रद्धा के पुष्प बिखेरता है।
लोगों के दिल में अनायास यह विश्वास घर कर गया था कि पगली माई सबकी मनोकामना पूर्ण करती है सबका मंगल करती है।
अब कभी कभी उस समाधि से उठने वाली ध्वनि तरंगें रात्रि की नीरवता भंग करती है, उसकी समाधि पर कभी कभी ये आवाज उभरती है —-
करम किये जा फल की इच्छा
मत कर ओ इंसान।
अब पगली माई को महा प्रयाण किये एक वर्ष गुजर गया। अस्पताल परिसर में आज उनकी प्रथम पुण्य तिथि मनाई जा रही है। हजारों की भीड़ श्रद्धा सुमन अर्पित कर रही हैं। उन्ही लोगों के बीच बैठे बादशाह खान, राबिया तथा गोविन्द का सिर सिजदा करने के अंदाज में झुका हुआ है, इस प्रकार पगली माई यादें ही लोगों के जहन में शेष रह गई थी।
यद्यपि पगली माई दुर्गा माई, काली माई का स्थान भले न ले पाई हो, लेकिन उस लड़ी की एक कड़ी का फूल बन मेरी स्मृति के किसी कोने से झांकती मुस्कुराती नजर आती है।।
-सुबेदार पांडेय “आत्मानंद”
संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208
मोबा—6387407266