मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना 

श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “

(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी  विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी  एवं दूरदर्शन में  सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती  हेमलता मिश्रा जी  की एक अत्यंत प्रेरक एवं शिक्षाप्रद लघुकथा  सबकी माई । इस सन्दर्भ में मैं मात्र इतना ही कहूंगा – निःशब्द, अतिसुन्दर लघुकथा, कथानक एवं कथाशिल्प। आदरणीया श्रीमती हेमलता जी की लेखनी को नमन। )

☆ लघुकथा – सबकी माई  ☆

हाय री मैया। बडो़ दरद उठ रहो हे। प्रभू  भगवन भली करो—चैती के स्वर में भरी वेदना से पड़ोसन माई परेशान हो रही थी, मगर अपने फ्लैट से निकल कर सामने उसके कमरे पर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। बीच-बीच में राजन की आवाज सुनाई देती – – – धीरज रख चैती–धीरज रख।।

बड़ी सी फ्लैट स्कीम के सामने एक खाली प्लाट में बने छोटे से कच्चे कमरे में चैती और राजन रहते थे। राजन रोज मजदूर था। दूर दूर तक आॅटो ढूँढ कर थक चुका था मगर संपूर्ण बंद के कारण लाचार था।बगल की दुकान से एंबुलेंस के लिए उसने फोन करवाया था।

वह चैती को समझा रहा था— बस अभी एंबुलेंस पहुँचती ही होगी। वैसे भी तेरी डिलेवरी में समय है घबरा मत – – धीरज धर चैती।

दो घंटे बीत गए। एंबुलेंस नहीं पहुँची थी। चैती की चीखें थोड़ी और व्याकुल हो रहीं थीं। आस पास फ्लैटों से लोग-बाग झाँक रहे थे।

अचानक  एंबुलेंस के रुकने की आवाज सुनाई दी मगर वह चैती के नहीं उसके ठीक सामने माई के बड़े से फ्लैट के आगे रुकी। माई ने एंबुलेंस बुलवाई थी। अब माई से और रहा नहीं गया।सोचा मैं अकेली जान। बेटी विदेश में फँसी है— किसके लिए अपनी जान की इतनी परवाह करूं। यह विचार करते ही माई उठ खड़ी हुई, घर को ताला डाल कर राजन के साथ एंबुलेंस में बैठ गई उसके साथ अस्पताल जाने के लिए और पाँच हजार रुपये की गड्डी उसके हाथ में थमा दी। चैती और राजन हैरान हो गए— पूरे मोहल्ले में झगडालू चिड़चिड़ी बुढिया के रूप में मशहूर माई का यह रूप देखकर।!

माई की पूरी कालोनी में किसी से पटती नहीं थी दूधवाले सब्जी वाले भी उससे डरते। लेकिन आज जब कोरोना के डर से सगे रिश्तेदार भी अपने अपने फ्लैटों घरोंदों में दुबके बैठे हैं वहाँ माई का यह साहस अभिभूत कर गया।

चार दिन बाद जब  माई के साथ चैती गोद में नन्हें से बच्चे को लेकर लौटी तो निवासियों के साथ साथ सभी फ्लैटों के दरो दीवार देहरी तक माई के सम्मान और स्नेह से भर उठे–दूर से ही सही सबकी तालियों से परेशान चिड़चिड़ी माई ने सबको अपनी पुरजोर आवाज में दपट दिया और जोर से दरवाजा लगा लिया लेकिन तालियाँ बजती ही रहीं – – – बजती ही रहीं।।

© हेमलता मिश्र “मानवी ” 

नागपुर, महाराष्ट्र

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