सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्रकृति के आँचल में लिखी हुई एक अतिसुन्दर भावप्रवण  कविता  “अब के पतझड़ में ”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 32 ☆

☆ अब के पतझड़ में ☆

अब के पतझड़ में

कौन कौन झरेगा?

कौन जाने?

कौन कौन टूटेगा ?

कौन जाने?

 

शाख से या घर से?

डर से या दर्द से !!

दर से दरबदर होगा

या दर्द से बेदर्द होगा?

बेदर्द इलाज लाएगा

या खुद लाइलाज

बन जाएगा।

अब के पतझड़ में

कौन कौन झरेगा?

कौन जाने?

कौन कौन टूटेगा ?

कौन जाने?

 

ज़मीं से मिलेगा?

या ज़मीं ही बन जाएगा!!

दरख्त से बिछड़कर

धूल बन जाएगा,

या गर्द में फूल बनकर

डाली पर छा जाएगा!!

अब के पतझड़ में

कौन कौन झरेगा?

कौन जाने?

कौन कौन टूटेगा ?

कौन जाने?

 

एक राह चलेगा

या बेराह हो जाएगा ?

राह चलते चलते

गुमराह बन जाएगा

या गुमराह बनकर

गुमनाम हो जाएगा।

अब के पतझड़ में

कौन कौन झरेगा?

कौन जाने?

कौन कौन टूटेगा ?

कौन जाने?

 

फूलों सा बिखरेगा

या पत्ते सा झड़ जाएगा

डाली पर मलूल बनेगा

या सुर्ख हो जाएगा ।

मकाम को पाएगा

या खुद ही मकाम

बन जाएगा ।

अब के पतझड़ में

कौन कौन झरेगा?

कौन जाने?

कौन कौन टूटेगा ?

कौन जाने?

 

पतझड़ को जाएगा

तो बसंत में आएगा

या पतझड़ का गया

बारिश में आएगा ।

सावन में मिल पाएगा

या खुद सावन

बन जाएगा ।

अब के पतझड़ में

कौन कौन झरेगा?

कौन जाने?

कौन कौन टूटेगा ?

कौन जाने?

26/2/20

© सुजाता काले

पंचगनी, महाराष्ट्रा, मोबाईल 9975577684

[email protected]

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