श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
एकादश अध्याय
(भयभीत हुए अर्जुन द्वारा भगवान की स्तुति और चतुर्भुज रूप का दर्शन कराने के लिए प्रार्थना)
त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम् ।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ।। 38 ।।
आदि देव इस जगत के , परम विश्व आधार
तुम्हीं व्याप्त सब सृष्टि में तुमसे जग विस्तार ।। 38 ।।
भावार्थ : आप आदिदेव और सनातन पुरुष हैं, आप इन जगत के परम आश्रय और जानने वाले तथा जानने योग्य और परम धाम हैं। हे अनन्तरूप! आपसे यह सब जगत व्याप्त अर्थात परिपूर्ण हैं।। 38 ।।
Thou art the primal God, the ancient Purusha, the supreme refuge of this universe, the knower, the knowable and the supreme abode. By Thee is the universe pervaded, O Being of infinite forms।। 38 ।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर