डॉ रानू रूही

( ई- अभिव्यक्ति में डॉ रानू रूही जी का हार्दिक स्वागत है। वर्तमान में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत। कविता, गीत, ग़ज़ल, आलेख, कहानी आदि विभिन्न साहित्यिक विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर। देश प्रदेश की विभिन्न प्रतिष्ठित राष्ट्रीय स्तर की   पत्र- पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित । अब तक 4 पुस्तकें प्रकाशित एवं 15 पुस्तकें सम्पादित। अखिल भारतीय स्तर के कवि सम्मेलनों  / मुशायरों में प्रस्तुति। राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों / अलंकरणों  से  पुरस्कृत /अलंकृत।  आज प्रस्तुत है एक भावपूर्ण गीत  बस यूं ही ,,,,,,,. हम भविष्य में आपसे ऐसे ही उत्कृष्ट रचनाओं की अपेक्षा करते हैं।)

☆ गीत – बस यूं ही ,,,,,,, ☆

सुन लो ना सुन लो ना

तुम घर पर ही हो ना

जाने  दो होने दो

जो भी होगा होना

 

सुबह की आहट से

सूरज को चुन लेना

खिड़की से छनती सी

किरणों को बो लेना

 

ना मिलना तड़पाए

दिल जो भर भर आए

चुप चुप से छुप छुप के

खुद ही से कह लेना

 

गुन गुन सी आंगन में

किरणें जो छा जाएं

चेहरे को झटपट से

आंसू से धो लेना

 

भावों की आहो से

दीवारें रंग लेना

दर पर उम्मीदों की

आंखों से सो लेना

 

यादों के सिरहाने

बातें भी रख लेना

रातों के ख्वाबों में

ग़म सारे भर लेना

 

सुन लो ना सुन लो ना

तुम घर पर ही हो ना

जाने दो होने दो

जो भी होगा होना।

 

© डॉ रानू रूही

माढ़ोताल, जबलपुर (म प्र)

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