सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी कविता “दरवाज़े”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 35☆
कौन जाने
कितने दरवाज़े हैं
ज़िंदगी के इन रास्तों पर?
कहाँ खुलते हैं
यह तिस्लिमी दरवाज़े?
क्या यह किसी टूटे हुए किले की
दफनाई हुई दास्तानों को छुपाये बैठे हैं?
या फिर यह
किसी सुकून के रास्तों पर
ले जाने वाले खुशनुमा रास्ते हैं?
या फिर यह दरवाज़े
एक से दूसरे तक पहुंचाते हुए
बस उलझाकर रख देते हैं वक़्त को?
मन तो बहुत करता है
कि रुक जाऊँ पल दो पल को
और खोजूं इन रास्तों का मुकाम,
पर मैं इतना उलझ के रह जाती हूँ
सीढ़ियों पर ही
कि तह खोल ही नहीं पाती!
शायद तुम कभी आओ
और थामकर मेरी बाहें
ले चलो मुझे किसी एक दरवाज़े के भीतर
तो ए खुदा!
मैं पा लूंगी हर ख़ुशी!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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