सुश्री प्रतिभा स बिळगी “प्रीति”
(ई- अभिव्यक्ति में सुश्री प्रतिभा स बिळगी “प्रीति”जी का हार्दिक स्वागत है। हिंदी एवं मराठी भाषा की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर सुश्री प्रतिभा स बिळगी “प्रीति”वर्तमान में रामय्या इन्स्टिट्यूट ऑफ बिजनेस स्टडीज , डिग्री कालेज, बैंगलोर के हिंदी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं । आपका प्रथम काव्य संकलन ‘जिंदगी की दास्तान‘ 2008 में प्रकाशित। 15 से अधिक लेख राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में प्रस्तुत एवं प्रकाशित। कई रचनाएँ हिन्दी एवं मराठी भाषाओं में राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित। कई प्रादेशिक/राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत जिनमें प्रमुख है ‘सहोदरी हिन्दी सम्मान‘. आज प्रस्तुत है उनकी एक अत्यंत भावपूर्ण एवं संवेदनशील कविता ‘बस्ती’।)
☆ बस्ती ☆
आलिशान मकानों के बीच
मैली अंधेरी एक बस्ती
जहाँ एक ओर ऐशोआराम
वहीं दूसरी ओर तड़प भूख की
फटे सिले कपड़े धुलने के बाद
सूखाए जाते है लकड़ियों के ढेर पर
यहाँ ईटों का रंग उड़ा हुआ है
टपकती हैं बारिश में छत भी
गंदगी से भरा पानी का बहता नाला
मन को बेचैन करती गंध उसकी
दिनभर की थकान के बावजूद
बस्तीवालों पर अपना असर न छोड़ पाती
खूंटे से बंधे जानवर
आँगन में मिट्टी से खेलते बालक
कुत्ता भी जहाँ निश्चिंत सोता
और बंटता सब में निवाला बराबर
एक तरफ चेहरे की झुर्रियाँ
उनके हालातों को बयान करती
वहीं चैन और सुकून से भरी
नींद भी बड़े अच्छे से आती
रहते है यहाँ इन्सान ही मगर
क्या यह इन्सानों की बस्ती है कहलाती ॽ
कैसा विपर्यास, यह न्यायशीलता कैसी
एक जैसी क्यों नहीं हम सबकी बस्ती ॽ
© प्रतिभा “प्रीति”
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